जयति जय जय छत्तीसगढ़ देस, चेतावनी, लावनी – पं. लोचन प्रसाद पाण्डेय

4 जनवरी 1887 को रायगढ़ ज़िले में बालपुर नामक ग्राम में जन्मे लोचन प्रसाद पाण्डेय हिन्दी के प्रसिद्ध साहित्यकार थे। इन्होंने हिन्दी, संस्कृत एवं उड़िया दोनों भाषाओं में काव्य रचनाएँ भी की हैं। सन 1905 से ही इनकी कविताएँ ‘सरस्वती’ तथा अन्य मासिक पत्रिकाओं में छपने लगी थीं। मुख्य रचनाएँ’ दो मित्र’, ‘प्रवासी’, ‘कविता कुसुम माला’, ‘मेवाड़ गाथा’, ‘पद्य पुष्पांजलि’, ‘छात्र दुर्दशा’, ‘ग्राम्य विवाह विधान’ आदि हैं।
इतिहास-पुरातत्व खोजी अभियान में वे सदा तत्पर रहे। उनके खोज के कारण अनेक गढ़, शिलालेख, ताम्रपत्र, गुफ़ा प्रकाश में आ सके। इन्होंने सन 1923 में ‘छत्तीसगढ़ गौरव प्रचारक मंडली’ की स्थापना की थी, जो बाद में ‘महाकौशल इतिहास परिषद’ कहलाया।
आप साहित्य के साथ ही कांग्रेस के प्रबल अनुयायी थे। किशोरावस्था में सन 1906 में आप कोलकाता कांग्रेस अधिवेशन में अपने पिता के साथ शिरकत करने गए थे। सन 1939 के त्रिपुरी कांग्रेस अधिवेशन में उनके द्वारा रचित स्वागत गान गुंजायमान हुआ था। लोचन प्रसाद जी की मृत्यु 8 नवंबर 1959 को हो गई।

जयति जय जय छत्तीसगढ़ देस
जनम भूमि, सुखर सुख खान ।
जयति जय महानदी परसिद्ध
सोना-हीरा के जहॉ खदान ॥
जहॉ के मोरध्वज महाराज
दान दे राखिन जुग जुग नाम ।
कृष्ण जी जहॉ विप्र के रूप
धरे देखिन श्री मनिपुर धाम ॥
जहॉ है राजिवलोचन तिरिथ
अउ, सबरीनारायण के क्षेत्र ।
अमरकंटक के दरसन जहॉ
पवित्तर होथे मन अउ नेत्र ॥
जहॉ हे ऋषभतीर्थ द्विजभूमि
महाभारत के दिन ले ख्यात् ।
आज ले जग जाहिर ऐ अमिट
जहॉ के गाउ दान के बात ॥

पं. लोचन प्रसाद पाण्डेय

आरकाईव में संग्रहित पुस्‍तकें –

कोशल कौमदी
पद्य पुष्पांजलि
मेवाड़ गाथा
रघुवंश सार
Locanaprasāda Pāṇḍe, Kōsala – Kaumudī : Pt. Lochan Prasad Pandey Sarma birth centenary volume ; studies in indology, लोचनप्रसाद पाण्डे (1886-1959) Lochan Prasad Pandey (1886-1959)

चेतावनी
रोला-
सवेच देश सिर ताज, रहिस भारत ये हमरे।
हीरा माणिक धान भरे, विद्या बल सम्हरे।
वालमीक कवि कपिल, व्यास गौतम पाराशर।
कालिदास कस रहिन, जहां पण्डित गुन आगर॥
बड़े-बड़े रनवीर रहिन, अर्जुन भीषम कस।
दें परान नहिं तजे पैरन, जे लें जगमां जस॥
भीम शिवजी अरु प्रताप गोपल्ला बण्ठा।
जिंकर जगतमां बाजत अब ले जसके घण्टा॥
जोहैं जिनकर मुहँ जग, सब टकटकी लगाके।
नाम सुनत धोती ढीलँग हो जाय इहाँके ॥
मुरुख देश हमरेच धरम माँ पण्डित हो इन।
मुह के भैंस इहँचके विद्या जलमाँ धोइन॥
कल ओऔ कारीगरी इँहचले जग भर सीखिन।
रोजगार व्यापार न अच्छा चले इहाँ विन॥
खेती वैदी अउ ज्योतिष सब विद्या के घर।
रहिस हमर भारतेच्‌ अकेला सबले सुन्दर॥
ओइच भिखारी होय आज रोवत हैं घर घर।
रतन धान धन खोय, भीख माँगत हैं दर दर॥
बल विद्या सब नार खार अब तो डारिस कर।
फटहा चिरहा ओन्‍हा घलुक न है पहिरेवर॥
लाख-लाख बेटवा ओकर अब जांय रोज मर।
‘भूख-भूख’ नरिआत, रोगमा, बूड़े जर-जर॥
‘जाग-जाग’ नरिआत हवैं भारत अब देखा।
‘नाहिं तो चकना चूर मोर होही सब देखा’॥
धरलेव रे बेटवा मन झट मोर हांथला।
निन्‍दा झनकरवाव छाड़ झन देव साथ ल॥
अम्भो ले सुखनींद के सन सूततहा तू मन।
हिजगा फूट लड़ाईमां मर फेंकत हा धन॥
हेल मेल अउ प्रेम नेम के नाक काटके।
धर्म कर्म अठ जात पांत सब बेंच बाटके ।।
आलस रिसके मन्द खूब पी मात गया सब।
खेती कारीगरी बोर बैठा निज तू अब॥
रोजगार व्यापार सबेचमां लागिंस आगी
कठपुतरी कस होय गया तूँ अरे अभागी।
भरके आस भरोसा माँ रहके दिन काय।
गहूँ दही घी दे, तूँ बासी नूनेच चाय ॥
रोजगार सब छोड़ नौकरी कर डारा।
बेंच अपन ल दास होयके दुक्ख उठाव॥
दीन दुखी परजामन के लगान के धन में।
देश कभू धनवान होयका? सोचा मनमें॥
रोज करोड़ों रुपिया चले विलायत जाथे।
सरहा चिथरा चिरकुट चेंदरा उहाँ ले आथे॥
लेथ ओइला नहीं प्यार तूं करा स्वदेशी।
परदेशी ओन्‍हान कभू जावे दिन देशी॥
शक्कर पँडरा चमकदार दाना दाना भल।
खाथा इनजाना कि ओमा हैं काका छल॥
गरुआ घुसरा रकत पीप अउ मनुख मूत मल।
डारे रथे, नहीं फेर दीखे, दिखथे निरमल ॥
धरम जात जेकर खाबे में सब्बेच जाथे।
शोक रोगराई ऊपरले घर घर लाथे॥
चेत चेत खभरदार अब सब हो जावा।
भारतवासी भाई हो झन देश बुड़ावा॥
खा खा गारी मार बिगारी रसद न देवा।
फोकट बिन पैसा के कभ्भू मदद न देवा॥
छाँडा घर घालक दलिद्र नौकरी तुरन्ते।
रोजगार खेतीकर धनी जैसे सब दन्थें॥
भुइंया सरस हमार होत है भाँठा दिन दिन।
माल गुजारी बढ़त तभोच ले हा विचार दिन ॥
घर जाके हक ले लेवत सरकार चुपे-चुप।
होके कोंदवा तम्भो ले बैठें तूँ चुप चुप॥
दोहा-हिन्दू तुरका एक हो, कुच्छू करा विचार।
दुख झनभोगा रात दिन, करा देश उद्धार॥

लावनी
खबरदार हो जाव सबेच्‌ अब छोड़ माल विदेशीगा।
प्यार करा निज देश माल तूँ लेवा सवेच स्वदेशी गा॥
छाड़ नौकरी खेती औ रोजगार करा सब मन दे के।
परके आस भरोसा छाँड़ा काम कर तन धन दे के॥
अपन भुजा के बल में रह के सब स्वतंत्र हो जावागा।
हक्‍क न अपन जान दा सोझे ‘स्वराज’ लेंगे गावा गा॥
अब जो करिहा सुना तुँह सब धरम करम बच जाहीगा।
भारत माँलामाल होय दुख दारिद पास न आहीगा॥

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