गीत : जिनगी के गाड़ा

जिनगी के गाड़ा ल, अकेल्ला कइसे तिरौं।
उल्ला धुरहा हवै रे, मुड़भसरा मैं गिरौं।

काया के पाठा, पक्ति पटनी ढिल्ला।
बेरा हा कोचे, तुतारी धर चिल्ला।
धरसा मा भरका, काँटा खूँटी हे।
बहरावत नइ हे, बाहरी ठूँठी हे।
गर्मी म टघलौं, त बरसा म घिरौं——।
उल्ला धुरहा हवै रे, मुड़भसरा मैं गिरौं।




भारा बिपत के , भराये हे भारी।
दुरिहा बियारा , दुरिहा घर बारी।
जिम्मेवारी के जूँड़ा म, खाँध खियागे।
बेरा बड़ बियापे , घर बन सुन्ना लागे।
हरहा होके इती उती, भटकत फिरौं—।
उल्ला धुरहा हवै रे, मुड़भसरा मैं गिरौं-।

सबझन बिजराथे, पाके अकेल्ला।
धरके घुमत रहिथौं, हरदी तेल ला।
दुरिहा डहर घलो, संगी संग कटही।
मया पीरा मोर, दूनो झन म बँटही।
झिरिया के पानी कस, आसा ले झिरौं–।
उल्ला धुरहा हवै रे, मुड़भसरा मैं गिरौं–।

जीतेन्द्र वर्मा “खैरझिटिया”
बाल्को(कोरबा)
09981441795

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