Keshaw Ram Sahu

कविता के थरहा- विसम्भर यादव ‘मरहा’

(सुरता 'मरहा' के) अवसान दिवस 10-09-2011 बिना पढ़े-लिखे अउ बिना लिखित संग्रह के अनगिनत रचना मुंह अखरा होना बड़ अचरज… Read More

3 years ago

नान्‍हे कहिनी : आवस्यकता

जब ले सुने रहिस,रामलाल के तन-मन म भुरी बरत रहिस। मार डरौं के मर जांव अइसे लगत रहिस। नामी आदमीं… Read More

5 years ago

समे-समे के बात

बदलाव होवत रहिथे संगी, जिनगी के सफर म, कोनों धोका म झन रहै, बपौती के,न अकड़ म। काल महुँ बइठे… Read More

5 years ago