जिनगी मा दान दक्छिना के घातेच महत्तम हावय, असल सुख-सान्ती दान पुन मा समाय हावय। हमर देश अउ धरम मा दान अउ तियाग के सुग्घर परमपरा चले आवत हे, भले वो परमपरा मन के नाँव अलग-अलग रहय फेर असल भाव एकेच होथे- दान अउ पुन। अइसने एकठन दान पुन करे के सबले बङ़े लोक परब के नाँव हे छेरछेरा परब। लोक परब एकर सेती कहे जाथे के एहा जन-जन के जिनगी मा रचे बसे हे, समाय हे। हमर छत्तीसगढ के जीवन सइली मा तो छेरछेरा हा नस मा लहू रकत बरोबर दउङत हावय। छेरछेरा के बिना छत्तीसगढ हा अधूरा हावय। हाँसी-खुशी, उछाह के सतरंगी परब के ताना बाना हरय हमर छत्तीसगढ के छेरछेरा तिहार हा। पुस अंजोरी पुन्नी के महादान के परब छेरछेरा ला मनाय जाथे। सुनता अउ भाईचारा के भाव मा दान देवइया अउ दान लेवइया मन हा एकमई दिखथे। हमर देश राज मा छेरछेरा के बङ़ सुग्घर समाजिक समभाव दिखे ला मिलथे। लइका जवान अउ सियान मा ए तिहार के परभाव एक बरोबर परथे।
छत्तीसगढ के आतमा हा गँवई-गाँव मा बसे हे अउ गँवई-गाँव के आतमा खेती-किसानी मा बसे हावय। इही खेती-किसानी ले लोक परब छेरछेरा के जनम हा होय हे इहां। किसान बच्छर भर किसानी करथे, असाढ मा धान बोथे अउ पुस के सिरावत ले धान ला कोठार-बियारा मा मिस-सकेल डारथे। छै महीना के जाँगर टोर मिहनत के सोनहा सरी फर ला अपन कोठी-डोली मा पा के किसान अब्बङ खुश होथे। अंतस मा आनंद के भाव भर जाथे। पुस मा धान मिसई हा सिराय ला धर लेथे। पुस पुन्नी के आवत ले सरी किसान अपन खेत के धान ला मिस-बटोर के धर डारथे। जब मिसई हा आखिरी होथे ता वोला छेवर कथे, बढोना घलाव कथे। ए हा खुशी के समे होथे अउ एला घर भर उछाह ले मनाथे। सबो किसान के छेवर किसानी के हिसाब ले अलग-अलग आगू-पाछू होवत रथे फेर पुस पुन्नी के सबो झन एकमई सुनता ले छेवर ला छेरछेरा के रुप मा मनाथे। छेरछेरा हा बिसेस रुप मा किसान अउ किसानी के चिन्हारी हरय। छेरछेरा के माने सबके कलयान होथे अउ किसानी ले सरी संसार के कलयान हावय। दान पुन ले देवइया अउ लेवइया दुनो के कलयान होथे,जस अउ पुन मिलथे।
छेरछेरा लोक कथा मा
छेरछेरा परब के संबंध मा एकठन परचलित अउ परसिद्ध लोककथा हावय जउन हा अइसन हावय। एक समे के गोठ हे के किसान मन (भुँईयाँ मालिक) किसानी ले उपजाय धान-पान ला पोगरी अपन कोठी-डोली मा भर लँय,धर लँय किसान (बनिहार/कमिया) मन भूखन-लाँघन मरय। धरती दाई हा अपन सपूत कमिया किसान मन के दुखदायी दशा ला देख के दुखी होगे अउ अपन कोंख ले अन्न उपजाना बन्द कर दीस। घोर अकाल परगे, चारो डहर हाहाकार मातगे। अकाल ले उबरे बर, पार पाय बर भुँईयाँ के मालिक किसान मन धरती मईयाँ के पूजा-पाठ सुरु कर दीन। सात दिन के सरलग पूजा-अरचना ले धरती मईयाँ हा परगट होगे। धरती मईयाँ हा कहीस के सबो किसान मन अपन फसल के थोरकुन हिसा ला गरीब कमिया किसान ला घलाव देहू अउ कोनो ला छोटे-बङ़े झन कहिहव। एकर सेती सबो झन धान के दान देहव। अइसन करे ले ही ए अकाल हा मेटाही। जम्मो किसान मन हा धरती मईयाँ के बात ला मान लीन। तभे धरती मईयाँ हा अन्न-जल अउ साग के बरसा कर भंङार भर दीस। चारो मुङ़ा हा सुख मा भर गे। जेखर हाथ जउन जीनिस आइस तउन ला धर के मारे खुशी मा नाचे-गाए ला धर लीन। तभे ले ए परब मा नाच-गान के परचलन सुरु होगे। अन्न-जल अउ साग के बरसा करे के कारन धरती मईयाँ के नाँव साकम्भरी देवी परिस। अन्न-जल अउ साग के बरसा होइस तब छर-छर के अवाज होय लगीस। एखरे सेती ए परब हा छेरछेरा कहाइस। ए तिहार ला साकम्भरी जयन्ती के नाँव ले घलाव जाने जाथे। ए दिन सबो मनखे मन हा जात-पात,ऊँच-नीच,गरीब-बङहर धरम के भेदभाव ला भुला के धान के दान ला माँगे ला निकलथे अउ घरोघर दुवारी मा जाके कहिथे:- छेरछेरा-माई कोठी के धान ला हेरहेरा।
कइसे परीस परमपरा :-
छत्तीसगढ़ मा जब कलचुरी राजा मन हा अपन राज इस्थापित करीन ता रतनपुर ला अपन राजधानी बनाइन। राजा हा लगान मा अनाज लेवय। छेरछेरा याने पुस पुन्नी के दिन बाजा बजावत अउ गीत गावत, उतसव मनावत लगान वसूलत रहीस। फेर मराठा मन के राज मा लगान वसूलना बन्द होगे। तब पुस अंजोरी पुन्नी के दिन हा छेरछेरा तिहार मनाय के दिन बनगे। लगान वसूली ला जमींदार मन ला सउप दे गीस। अंग्रेज सासन काल मा घलाव छेरछेरा मनावत रहीस।
हैहयवंसी कोसल राजा परजापालक कलयान साय हा मुगल सम्राट जहाँगीर (कतकोमन हा जहाँगीर के जघा अकबर कथें) के सानिध्य मा आठ बच्छर अपन राजनीतिक गियान अउ युद्धकला बगराय के पाछू मा सरयू नदी के तीर के बामहन मन ला संग ले के अपन राजधानी रतनपुर लहुटीस। राजा ला घर आय सुनीन तहाँ ले परजामन हा रतनपुर मा दरस बर जुरियागे। छत्तीसगढ़ के जम्मो छत्तीसगढ़ के राजा मन घलाव राजा कलयान साय के सुवागत मा रतनपुर पहुँचीन। महल के मुहाँटी मा परजामन अपन राजा के दरसन करे बर खङ़े रहीन।
रानी फुलकेना हा मारे खुसी के परजामन ला सोना चाँदी के सिक्का निछावर करीन। कोसल राज मा भरपूरहा पइदावार होय रहीस। राजा कलयान साय हा परजा के परेम ला देख के सब्बो छत्तीसगढ़पति मन ला फरमान जारी कर दीस के अवइया पुस पुन्नी के दिन ला अपन राजा के घर लहुटे के सुरता ला बनाय राखे बर एला तिहार के रुप मा मनाय जाही। समे बीते ले ए तिहार हा छत्तीसगढ़ मा छेरछेरा तिहार के रुप मा मनाय जाय ला धर लीन। एखर संगे संग नजराना लुटाय के परतीक मा घर के दुवारी मा अवइया लोगन मन ला धान के दान दे जाय लगीन।
छेरछेरा सब्द के उत्पत्ति :-
जनश्रुति के अधार मा एक बेर भयंकर अकाल-दुकाल परीस, जीव-जंतु मन मरे ला धर लीस। मनखे मन दाना-दाना बर तरसे लगीन। तब एक झन महातमा हा कहीस के सौ आँखी वाली देवी दाई के पूजा-अरचना करे ले ए अकल-दुकाल हा टल जाही। महातमा के बात मान के गाँव-गाँव मा देवी पूजा-अरचना होय ला धरलीस। राजा हा खजाना खोल के पूजा ला पूरा करवाइस। देवी के आँखी ले अतका आँसू निकलीस के धरती के पियास बुझागे। खेती-बारी, किसानी हा फेर बने होय ला दर लीस। तब देवी हा आसीरबचन देवत कहीस – श्रेय: श्रेय:। याने सबके भला होवय। आगू चलके श्रेय: श्रेय: सब्द हा छेरछेरा मा बदलगे।
पउरानिक कथा के हिसाब ले वामन भगवान अउ राजा बलि के दान-पुन कथा ले छेरछेरा के संबंध जोङ़े जाथे। भगवान बिसनु हा वामन रुप धर के राजा बलि करा तीन पाँव भुँईयाँ माँगिस ता राजा बलि हा खुसी-खुसी भगवान ला दान दे दीस। एही कथा ले प्रेरना ले के लइकामन ला वामन रुप मान के गाँव मा घरो-घर धान के दान लेथे-देथे।
छेरछेरा के महत्तम :-
पुस अंजोरी पाख के पुन्नी के दिन सरी छत्तीसगढ़ हा उछाह अउ उमंग ले भरे होथे। सरी डहर आनंद के मेला लग जाथे। आज के
दिन सबो झन बरोबर होथे,एकमई होथे। जात-पात, छुआछुत,भेदभाव अउ गरीबहा-बङ़हर के भाव ला तियाग के सुनता के गीत गाथे। दान दे ले जादा दान ले मा खुसी मानथे। छेरछेरा हा एक परब ले जादा तिहार अउ अंतस के उतसव बन जाथे। ए परब-तिहार हा समाजिक समरसता के,सुनता के, आरथिक समानता अउ गरीब-असहाय मन के सहायता करे के संदेस बगराथे। हमर करम कमई मा सबो जीव-जंतु के सहजोग अउ हिसा रथे ता मनखे मन के तो होबेच करथे, पोगरी हमरेच भर नो हे। इही भाव ए छेरछेरा तिहार के सुग्घर संदेस हरय जेला जन-जन मा बगराय जाथे। रपोटे-सकेले ले जादा बाँटे-लुटाय मा सुख अउ सान्ती हावय। ए तिहार हा हमला अपन रोटी मिल बाँट के खाय के सिक्छा देथे। छेरछेरा हमर छत्तीसगढ़ राज के सुवसथ अउ स्वच्छ परंपरा हे।
दिन सबो झन बरोबर होथे,एकमई होथे। जात-पात, छुआछुत,भेदभाव अउ गरीबहा-बङ़हर के भाव ला तियाग के सुनता के गीत गाथे। दान दे ले जादा दान ले मा खुसी मानथे। छेरछेरा हा एक परब ले जादा तिहार अउ अंतस के उतसव बन जाथे। ए परब-तिहार हा समाजिक समरसता के,सुनता के, आरथिक समानता अउ गरीब-असहाय मन के सहायता करे के संदेस बगराथे। हमर करम कमई मा सबो जीव-जंतु के सहजोग अउ हिसा रथे ता मनखे मन के तो होबेच करथे, पोगरी हमरेच भर नो हे। इही भाव ए छेरछेरा तिहार के सुग्घर संदेस हरय जेला जन-जन मा बगराय जाथे। रपोटे-सकेले ले जादा बाँटे-लुटाय मा सुख अउ सान्ती हावय। ए तिहार हा हमला अपन रोटी मिल बाँट के खाय के सिक्छा देथे। छेरछेरा हमर छत्तीसगढ़ राज के सुवसथ अउ स्वच्छ परंपरा हे।
छेरछेरा मा डंडा नाच :-
छेरछेरा परब के एक महीना पहिली ले जवान चेलिक मन हा आपस मा डंडा नाच सीखे ला धर लेथें। एमा पन्दरा-बीस जहुँरिया मन के नान-नान दल-टोली बना लेथे। जेमन मुङ़ मा पागा पहिने रहिथें। पागा ला मंजूर पाँख अउ कउङ़ी ले रिऔगी-चिंगी सजाय रहिथें। नचइया मन हा अपन जेवनी हाथ मा डंडा धरके गोल घेरा बनाके नाचथें अउ एक दुसर के डंडा ला मारथें। नाच के बीच-बीच मा “कू है, कू है” के अवाज मुँह ल निकालथें अउ नाच ला अलग-अलग रंग देथें। गीत के सचरुवात गांव देवता के बंदना ले होथे। तहाँ “तरी हरी मोर नाना, मोर नाना रे भाई” कहिके गाना सुरु करथें। नाचे के तरीका अउ गीत अलग अलग होय के कारन ए नाच के नाँव घलाव अलग अलग नाँव होथे।
कइसे मनाथे छेरछेरा :-
हिन्दू धरम के मानियता अनुसार बच्छर भर के बारो महिना मा पुन्नी के संग कोनो ना कोनो तीज-तिहार अउ परब हा जुङ़े हावय। पुस अंजोरी पुन्नी के दिन दान-पुन के सरेस्ठ परब छेरछेरा के नाँव जुङे हावय। ए परब ला असनांद अउ दान के नाँव ले घलाव जाने जाथे। छेरछेरा के दिन बङ़े फजर ले असनांद के अपन देवता-धामी के पूजा-पाठ करके दान-पुन करे के सुग्घर परंपरा हावय। आज के दिन दान देवइया हा राजा बलि कस सुख अउ जस पाथे अउ दान लेवइया हा भगवान बिसनु बरोबर मने मन हरसाथे। ए दिन दुवारी मा आये याचक मन ला अपन समरथ अनुसार दान दे के अमर होय के,पुन कमाय के पबरित दिन आय। वामन रुप लइकामन सबले जादा ए छेरछेरा के परब मा खुस रहीथे। बङ़े बिहनिया ले इस्नान के छेरछेरा मांगे बर लइका,जवान अउ सियान मन हा अकेल्ला या फेर टोली बनाके, नाचत गावत, ओली, झोला, चुमङ़ी, बोरा, टोपली, टुकना, काँवर, कटोरा धर के घरो घर जाथे। गीत, भजन, डंडा-पचरंगा, सुआ,
करमा, ददरिया गा-बजा अउ नाच के दान दाता ला रिझा के दान मांगथे। छेरछेरा के दिन नंदिया मा नहाना अउ दान पुन करना बङ सुभ माने जाथे। ए दिन नंदिया तीर देवइस्थल मा मेला खच्चित भराथे। लइकामन मा सबले जादा मेला जाय के सउख होथे। छेरछेरा कूटे मा सबले जादा जोस इंखरे मन मा होथे। घरो घर जाके मुहाँटी मा जोर से एके संघरा कहीथे :-
करमा, ददरिया गा-बजा अउ नाच के दान दाता ला रिझा के दान मांगथे। छेरछेरा के दिन नंदिया मा नहाना अउ दान पुन करना बङ सुभ माने जाथे। ए दिन नंदिया तीर देवइस्थल मा मेला खच्चित भराथे। लइकामन मा सबले जादा मेला जाय के सउख होथे। छेरछेरा कूटे मा सबले जादा जोस इंखरे मन मा होथे। घरो घर जाके मुहाँटी मा जोर से एके संघरा कहीथे :-
छेरी के छेरा बरकनिन छेरछेरा
माई कोठी के धान ला हेरहेरा।
अरन बरन गोटी बरन
जभ्भे देबे तभ्भे टरन।
तारा रे तारा पीपर के तारा,
जलदी जलदी बिदा करव,
जाबोन दुसर पारा।
छेरछेरा के मतलब होथे कलयान। हमर सास्त्र मा कलयान के अरथ छत्तीसगढ़ मा छेरछेरा ले लगाय जाथे। छेरछेरा मा आनंद के गुरतुर गीत मा ए तिहार के दरसन अइसन हावय।
अन्नदान के परब आगे,घर मा झन लुकावा जी।
झोला,बोरी,ओली मा छेरछेरा के धान झोकावा जी।
डंडा नाचा करके संगी,ए तिहार ला मनाबो जी।
सुमत सुमत के ददरिया गाबो,जिनगी ला सरग बनाबो जी।
बोबरा सोंहारी नरियर के भोग,लछमी दाई मा चढ़ावा जी।
अन्नदान के परब आगे, घर मा झन लुकावा जी।
कन्हैया साहू “अमित” .शिक्षक
भाटापारा (छ.ग)
संपर्क ~ 9753322055
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