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चौपाई दोहा

महादेव के बिहाव खण्ड काव्य के अंश

शिव सिर जटा गंग थिर कइसे,
सोभा गुनत आय मन अइसे।
निर्मल शुद्ध पुन्‍नी चंदा पर
गुंडेर करिया नाग मनीधर।।
दुनो बांह अउ मुरूवा उपर,
लपटे सातो रंग के विषधर।
जापर इन्द्र घनुक दून बाजू,
शिव पहिरे ये सुरग्घर साजू ।।
नीलकण्ठ गर उज्जर भाव,
मन गूनत अइसे सरसाव।
भौरां बइठ शंख पर भूले,
तो थोरक मुहर मन झूले ।।
सेत नाग शिव तन मिले, जाँय नि चिटकों जान।
जीभ दुफनिया जब निकारे, तभे होय पहिचान ।।
पहिरे बधवा के खाल समेटे,
तेकर उपर सांप लपेटे।
आंखी तिसर कपार उपर में,
नाग जनेऊ पहिरे गर में॥
समुख मुड़ माला पहरे गर,
चुपरे मरघट राख देह भर।
अशुभ भेख साजे बरदानी,
गुन सागर मंगल के खानी।।
तिरसुल डमरू धर चुलबुलहा,
बइला चढे़ चलिन शिव दुलहा।
देख देव तिरिया मुसकायें,
कहैं अइसने दुलही भावें।।
अपन अपन वाहन चढ़ आइन,
सबों देब उंचे ढ़रियाइन।
देव सुघर देखत मन मोहें,
दुलहा मोहरन कोई नि सोहे।।
तब हरि हस के ये कहिन, मोर गोठ सुन लेव,
जत्था अपन अपन संग, अलग चलो सब देव॥
बर अस नई सुन्दरायं बरतिया,
देखत हंसही उदा घरतिया।
सुने के गोठ देव मन भाइन,
अपन अपन जत्था अलगाइन।।
सोज गोठ सुन शिव मुसकाइन,
भूंगी भेजिन गन बलवाइन।
केउ रूप के भूत जुरिन जब,
देखत भूतनाथ हांसिन तब॥
अड़गुड़ केश रंग के भुतुवा,
केश मेख के बड़ अजगुतुवा
कतको उलटा गोड़ हांथ के,
कतको नानिक बडे़ माथ के।।
गोरिया कोई कोई कलुठुवा,
कोई लंगडा कौई ठुठुवा।
कतवा, कुबरा घुमरा, दूबर,
कोनों के आंखी कपार उपर॥
घुमा दूबर पबरित अपबरित साज बड अड़गुड करे।
कौनों रकत चुपरे चले बड़ मूड़ हाडा़ ला धरे।।
कूकुर बिलाई कोल्हिया बाहन नहीं जावे गने।
भुतुवा परेत पिशाच के रंग ढंग बतावत नई बने॥
कूदे उफरैं भूत मिल, चुहुल करैं बड़ रंगढंग।
कोई देवता ला कहैं, खेलो हमरे संग संग॥

– गया प्रसाद बसेढि़या