जिनगी जीये के रहस्य : महाशिवरात्रि

देवता मन के देव महादेव ला प्रसन्न करे खातिर महाशिवरात्रि के परब हा सबले बड़े परब माने जाथे। वइसे तो बारो महिना अंधियारी पाख के चउदस के रात हा शिवरात्रि के रात कहाथे फेर फागुन महिना के अंधियारी पाख के चउदस के रात हा महाशिवरात्रि कहाथे। ए महाशिवरात्रि के परब हा परमपिता परमात्मा शिव के अवतरन के रात माने गे हे। गरुड़ पुरान, स्कंद पुरान, पद्म पुरान, अग्नि पुरान मन मा ए महापरब के महत्तम के वर्णन हावय। भगवान शिव के ए पावन परब मा वरत, उपास रखे ले काम, क्रोध, लोभ, मोह जइसन बिकार मन ले मुक्ति देके परमसुख, शांति अउ एश्वर्य मन के प्राप्ति होथे।
हमर वेद पुरान मन के हिसाब ले ए दिन भगवान भोलेनाथ हा सागर मंथन ले निकले कालकूट नाव के जहर ला जनकल्याण खातिर पिये रहिन। ए जहर हा सागर मंथन मा अमृत ले पहिली निकले रहिस। ए भयंकर कालकूट जहर हा सरी संसार ला समाप्त कर सकत रहिस। सरी संसार ला बचाये बर भगवान भोलेनाथ हा बड़ सिधवा अउ भोलापन ले ए जीवलेवा जहर ला अपन कंठ मा धारण करीन अउ नीलकंठ कहाइन। जीवलेवा जहर के पिये ले शिशशंकर के शरीर के ताप हा सरलग बाढ़े ला धर लिस। इही ताप ला जुड़ुवाय खातिर शिवलिंग उपर सरलग जलधार डारे के परम्परा शुरु होइस हे। जल अभिसेक ले शिवजी ला ठंड़ई मिलथे। जुड़वास करइया जम्मों जीनिस के शिवलिंग मा अरपन करना शुभ माने जाथे। जौन भगत मन हा सरलग शिवलिंग मा जल अरपन करथें वो मन ला सुख-शांति अउ आनंद मिलथें।



कतको गियानी-धियानी मन के कहना हे के ए दिन शिव अउ देवी पार्वती के शुभ बिहाव होय रहिस हावय। एखरे सेती आज के दिन कतको जघा मा भगवान शिव के बरात बड़ धूमधाम ले निकाले जाथे। शिव बिहाव के उत्सव ला बड़ उछाह के संग महा उत्सव के रुप मा मनाथे। ए संसार के सबले अलग अउ अलौकिक बिहाव शिव पार्वती के बिहाव के उत्सव ला माने गे हावय। देवी पार्वती के महतारी बाप हा ए बिहाव ला संसार के सबले बड़े महा बिहाव बनाय खातिर कोनो कसर नइ छोड़ना चाहीन। सरी संसार भर ला नेवता भेजे गीस। देवी-देवता, ऋषि-मुनि, सरी नदियाँ-पहाड़ मन ला नेवता नेवतीन। बिहाव के तियारी अउ सजावट विश्वकर्मा जी ला सौपें गे रहिस। फूल, कली, तोरन, कमल, आमापान, केराडार ले सरी सजावट करे गिस। सबले सुग्घर ऊँच जघा दूल्हा राजा बर रखे गिस। सरी देवी-देवता मन हा पहिली ले आके अपन-अपन जघा अउ आसन मा विराजमान होगे रहीन। सबला अगोरा रहिस हे दूल्हा बने शिवजी अउ ओखर बरतिया मन के। नियत समय मा बरात आगे, राजा हिमवान अउ रानी मैना भगवान शिव के अलौकिक रुप ला देख के अकचका गे। भगवान शंकर के माथा मा दूज के चंदा मुकुट बनगे, तीसर आँखी हा सुग्घर माथा के गहना बनगे। कान के तीर मा लपटे साँप मन हा कान के करनफूल (कुण्डल) बनगे, घेंच मा लपटाये नागराज हा कंठहार बनगे। सरी देंह मा चुपराये भभूती राख हा ममहावत चंदन के लेप बनगे। बघवा के छाला हा रेशमी कपड़ा बनगे, भगवान शिवशंकर हा अपन सादा बइला मा बइठे सबले सुग्घर दिखत रहीन।

सरी संसार ले आये बरतिया मन हा हाँसत, गावत, नाचत अउ डमरु, दुन्दुभी, शंख बजावत बरात मा शामिल होइन। सरी जीव-जन्तु, भूत-पिशाच, बइहा-भूतहा मन अपन पालक पशुपतिनाथ के बिहाव मा बड़ उच्छल मंगल के संग संघरे रहीन। शिवबिहाव मा जुरियाय जम्मों बरतिया मन के वर्णन मोर कवि हिरदे हा अइसन करे के प्रयास करे हावय।

शिव बिहाव के बरतिया वर्णन (सरसी छंद)

बिकट बरतिया बिदबिद बाजँय, चाल चलय बेढ़ंग।
बिरबिट करिया भुरुवा सादा, कोनो हे छतरंग।।
कोनो उघरा उखरा उज्जट, उदबिदहा उतलंग।
उहँदा उरभट कुछु नइ घेपँय, उछला उपर उमंग।
रोंठ पोठ सनपटवा पातर, कोनो चाकर लाम।।
नकटा बुचुवा रटहा पकला, नेंग नेंगहा नाम।
खरभुसरा खसुआहा खरतर, खसर-खसर खजुवाय।
चिटहा चिथरा चिपरा छेछन, चुन्दी हा छरियाय।।
जबर जोजवा जकला जकहा, जघा-जघा जुरियाय।
जोग जोगनी जोगी जोंही, बने बराती जाय।।
भुतहा भकला भँगी भँगेड़ी, भक्कम भइ भकवाय।
भसरभोंग भलभलहा भइगे, भदभिदहा भदराय।।
भकर भोकवा भिरहा भदहा, भूत भसड़हा भरमार।
भीम भकुर्रा भैरव भोला, भंडारी भरतार।।
मौज मगन मनमाने मानय, जौंहर उधम मचाय।
चिथँय कोकमँय हुदरँय हुरमत, तनातनी तनियाय।।
आसुतोस तैं औघड़दानी, अद्भूत तोर बिहाव।
अजर अमर अविनासी औघड़, अड़हा अमित हियाव।।

शिव बिहाव के ए सुग्घर दृश्य मा एक खास संदेश ए छिपे हे के ए सरी संसार मा अकारथ कुछुच नइ हे। प्रकृति के रचना मा अइसे कुछू काँही नइ हे जौन हा अबिरथा हे, अकारण हे। प्रकृति मा सबके महत्तम हे फेर चाहे वो हा जीव-जंतु, साँप-बिच्छी, धतूरा-भाँग, जहर-महुरा, पाना-पथरा, राख-धुर्रा, भूत-प्रेत, जकला-पगला जइसन जीनिस होवय। एखर एक संदेश एहू हे जेखर कोनो नाथ नइहें, जौन अनाथ हे, जेला ए संसार मा कोनो मानय, ना भावय अइसन मन ला शिवजी अपन संग मा राखथे, पोटारथे।
ए अद्भूत अउ अलौकिक बिहाव के रचना पालनहार भगवान विष्णुजी हा करे रहीन। दुल्हीन महादेवी पार्वतीजी के भाई भगवान विष्णुजी जी ला माने जाथे। ए बिहाव के अघुवा भगवान विष्णुजी हा हरय। विष्णुजी हा संरक्षक घलो हरँय। ए मन हा जानथे के जब तक भगवान शिव हा तपसी रुप मा रही तब तक ए सृष्टि ला उदासी अउ विनाश ले बड़भारी खतरा हे। एखरे सेती शिवजी ला संसारिक मोह-माया कोती आकर्षित करे के सख्त जरुरत हावय। एखर बर शिवजी के बिहाव देवी पार्वतीजी ले होना खच्चित हावय। महाशिवरात्रि के दिन विष्णुजी के अगवानी मा आज शिवजी हा तपसी के चोला ला तियाग के सुग्घर दूल्हा के भेस धरे हे। वोहा शिव ले शंकर बनत हावय। एखर अर्थ हे के भगवान भोलेनाथ दुनियादारी के रद्दा मा चले खातिर तियार हे।

शिवजी हा अपन सुवारी ला भरपूरहा मान-गौन दीन हे। अपन सुवारी ला बरोबर के दरजा दीन हे, सुवारी के सरी इच्छा के के सम्मान करीन हे। अमर होय के रहस्य ला घलाव बताइन हे। अइसन मा जौन हा अपन सुवारी के मान नइ करय ते मन कइसे अपन आप ला शिवभक्त कही सकथे।
शिवजी अउ पार्वतीजी के बिहाव हा ए संसार ला एक सुग्घर शिव संदेश देथे। शिवजी के जिनगी हा ओखर असल संदेश हरय। शिवजी जगत के जरुरत के हिसाब ले काम ला करथें। वो मन जोगी अउ तपसी हे तभो बिहाव करथे अउ वोला आदर्श रुप मा निभाथें। शिवजी देखाथें के ए जग ले भागे बिन भौतिक अउ अध्यात्मिक जगत के बीच मा संतुलन कइसे बनाये जा सकथे। एला संसारिक बँधना मा बँध के कइसे अध्यात्मिक रहे जा सकथे।
ए प्रकार महाशिवरात्रि के जिनगी मा बड़ महत्तम हावय। सिरिफ पूजा-पाठ, उपास-धास अउ अराधना के परब ले जादा जिनगी जीये के असल अउ सरल ढ़ंग ए महापरब हा सरी संसार ला सीखोथे। हमन ला चाही के ए महाउत्सव सार संदेश ला जिनगी ला उत्सव बनाय मा सदुपयोग करना चाही।

कन्हैया साहू “अमित”
शिक्षक-भाटापारा (छ.ग)
संपर्क 9753322055
9200252055
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