Mahesh Pandey Malang

छत्‍तीसगढ़ी व्‍यंग्‍य कविता

1 मोर तीर मोर स्कूल के लइका मन पूछिस गुरुजी पहले के बाबा अउ अब के बाबा म काय काय… Read More

6 years ago

लघुकथा : बड़का घर

जब मंगल ह बिलासपुर टेसन म रेल ले उतरिच तव रात के साढ़े दस बज गय रहिस। ओखर गाड़ी ह… Read More

6 years ago

जनतंत्र ह हो गय जइसे साझी के बइला

मोटा थे नेता, जनता खोइला के खोइला बिरथा लागथे एला सँवारे के जतन, जैसे अंधरा ल काजर अँजाई हे।। करलइ… Read More

6 years ago

महेश पांडेय “मलंग” के छत्तीसगढ़ी कविता

बुद्धि ला खूंटी मा टांग के, भेड़िया असन धँसा जाथन ढोंगी साधु सन्यासी बर, फिलगा असन झपा जाथन कभू आसाराम… Read More

6 years ago