कलप कलप के चिचियावत हे,
महतारी के अंचरा।
अब आंसू ले भीग जावत हे,
महतारी के अंचरा।।
पनही के खीला अब,
पांवे म गड़त हे।
केवांस के नार अब,
छानी मा चढ़त हे।।
सूते नगरिहा ल जगावत हे,
महतारी के अंचरा।….
कलप कलप…..
मरहा खुरहा जम्मो,
अंचरा म लुकाईस।
हमर बांटा के मया मा,
बधिया कस मोटाईस।।
दोगला मन ,पोंछा बनावत हे,
महतारी के अंचरा…
कलप कलप….।
पतवार बना देंन।
चोरहा मन ला घर के,
रखवार बना देंन।।
बइमानी मा चिरावत हे,
महतारी के अंचरा…
कलप कलप के….
राम कुमार साहू
सिल्हाटी, कबीरधाम
मो.नं.9340434893
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