गीत

अन्न कुंवारी के जवानी: मन्नीलाल कटकवार

अन्न कुंवारी के जवानी
सब ल आशीष देत रे।
मोटियारी कस मुसकावत हे,
आज धान के खेत रे।

असाढ़ महिना चरण पखारै,
सावन तोर गुन गाव ।
भादों महिना लगर-लगर के,
तोला खूब नहवावै।
कुवांर महिना कोर गांथ के,
तोला खूब समरावे।
कातिक अंक अंग म तोर,
सोनहा गहना पहिरावै ।
तोर जवानी देख सरग के,
रंभा होगे अचेत रे।
मोटियारी कस मुसकावत हे,
आज धान के खेत रे॥

उमर जवानी के मस्ती म,
कसमकसात हे चोली।
ऐती ओती गिरगिर के,
बइहर संग करै ठिठौली।
बीच खेत ले करगा राणी,
देख-देख बिजरावत हे।
आन के सुख ल देख के अपन,
मन म ओ दुख पावत हे,
नाचत आज किसान मगन हो।
नाती पूत समेत रे।
मोटियारी कस मुसकावत हे,
आज धान के खेत रे॥

उज्जर धान के खेत दिखे,
जैसे बोहात हे गंगा।
करिया धान के खार दिखे,
जमुना के श्यामल रंगा।

मन्नीलाल कटकवार

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