मानसून

तैं आबे त बनही,मोर बात मानसून।
मया करथों मैं तोला,रे घात मानसून।

का पैरा भूँसा अउ का छेना लकड़ी।
सबो चीज धरागे रीता होगे बखरी।
झिपारी बँधागे , देवागे पँदोली।
काँद काँटा हिटगे,चातर हे डोली।
तोर नाम रटत रहिथों,दिन रात मानसून।
तैं आबे त बनही,मोर बात मानसून—–।

तावा कस तीपे हे,धरती के कोरा।
फुतका उड़त हे , चलत हे बँरोड़ा।
चितियाय पड़े हे,जीव जंतु बिरवा।
कुँवा तरिया रोये,पानी हे निरवा।
पियास मरत हे,डारपात मानसून।
तैं आबे त बनही,मोर बात मानसून।

झउँहा म जोरागेहे ,रापा कुदारी।
बीज भात घलो,जोहे अपन बारी।
नाँगर के नास नवा,नवा जोंता डाँड़ी।
तोरे अगोरा म , धड़के बड़ नाड़ी।
लोग लइका मन जोहे,तोर बाट मानसून।
तैं आबे त बनही,मोर बात मानसून……।

छत्ता मैनकप्पड़ खुमरी बरसाती।
खड़े हे मुहाटी म,धरके मोर नाती।
फाँफा फुरफुन्दी ल,झटकुन उड़ादे।
झिंगुरा बिंधोल के , गीत सुनादे।
देखा मँजूरा ल,नाचत गात मानसून।
तैं आबे त बनही,मोर बात मानसून।

धरती के कोरा ल,हरियर करदे।
पानी बरसा झट खुसी तैं भरदे।
थेभा म तोरे हे, मोरे जिनगानी।
तैं आबे त गाही,कर्मा मोर बानी।
खाहूँ खेत म बासी अउ भात मानसून।
झन तरसा तैं आजा लघिनात मानसून।
तैं आबे त बनही,मोर बात मानसून…..।

जीतेंद्र वर्मा”खैरझिटिया”
बाल्को(कोरबा)



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