सरगुजिहा गीत- रूख ला लगाए डारबो

माथ जरे झिन मझिनहां कर घामा, छांहा बर रूख ला लगाए डारबो।
रूखर दिखे झिन परिया-पहार हरियर बर रूख ला लगाए डारबो।

फूल देथे-फर देथे
अउर देथे छाया।
काठ कोरो देथे बगरा
देथे अपन माया।।
बड़खा साधु कस हवे जी मितान, एहिच बर रूख ला लगाए डारबो।

आमा कर हठुली घलो
मउहा कर मदगी घलो।
जमती कर ठेठी तले
पाकर कर फुनगी।।
नान कुन गांछी ला जोगावन सयान तेकरे से घोरना घोराए डारबो।

जंगल कर रूख जमों
बरखा ला बलाथे।
भुइयां ला दाब राखेल
बोहाए झिन बचाथे।।
बगरा पतई हर देथे खातू, खातू कर ढोड़गा खोदाए डारबो।

मेवा गरिबहा कर
रंडमेवा जानन
बईर पाका तेन्दू चार
गुरतुर खाई मानन
एहिच कर हमर दुरा हें ढेरेच पेंड़ ला लगाए डारबो।

ढेंकी अऊ तिरही
मुसर अउ बहना।
कठखोला जबर दउआ .
ह गोरू कर गहना।
रूख हवें हमर जिनगी कर अधार तेकर बर रूख ला लगाए डारबो।

है झूरी ला बिन-बिन
बने आगी सुलगाथन।
एही ले रांध-बांट
पतरी हें खाथन।।
सुघ्धर रांधथे सुवारिन मन, झूरी बर रूख ला लगाए डारबो।

पुरखा-पुरनिया सब झन
बिरिछ ला लगाइन।।
मर-खप, टुडर गइन ‘
ओमन नई खाए पाइन
झिन ललाए मरे, न भुइंया झुराए, तेकरे बर रूख ला लगाए डारबो ।

जीवन नाथ मिश्र
विवेकानंद नगर
अम्बिकापुर
जिला- सरगुजा (छ.ग.)

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