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व्यंग्य

मोर तिर बोट हे …

एक गांव म किसिम किसिम के मनखे रहय। कन्हो करिया कन्हो गोरिया, कन्हो अमीर कन्हो गरीब, कन्हो निरबल कन्हो बलवान, कन्हो चरित्रवान कन्हो चरित्रहीन, कन्हो दयालु कन्हो निरदई, कन्हो अऊ काहीं …। सबला अपन अपन कनडीसन उपर गरब रहय। मऊका मउका म, गोरिया हा करिया उपर जबरन भारी परे बर धरय त, अमीर हा गरीब उपर … कभू बलवान हा निरबल ला जबरन डरवावय त, चतित्रहीन हा चरित्रवान के छीछालेदर कर देवय। निरदई के आगू म दयालु हा घुटना टेके बर मजबूर रहय। उही गांव म अइसे कतको परानी रहय, जेकर तिर गरब करे बर, कुछुच नी रहय। इही मन असहाय कस, सुसवाय रहय पांच बछर ले। येमन न कभू मान जानिन न सममान …। जे पातिस ते दू ठोसरा मार के निकल लेतिस। गांव म जब कहीं होय तब, अइसन अपनेच चलइया मन, अपन अपन गुन, बल अऊ समपती के गरब करय अऊ ओकरे प्रदरसन करके निरीह परानी ला डरुवाय। गांव गंवई के रहवइया मन, कभू डर, कभू लालच, त कभू मजबूरी म, जम्मो गरबवान मन के बात सुने बर, ऊंकर सममान अऊ सेवा करे बर मजबूर रहय। अतेक पान म मन नी माढ़य, त अइसन परदरसनकारी गरबी मन, निरीह जनता के छाती म बइमानी अऊ भरस्टाचार के मूंग दरय। जनता जब बिरोध करय तब, उनला सिरीफ इही कहिके चुप करा देवय के, तोर तिर काये हे तेमा … तोर इज्जत करबो, तोर मान करबो, तोर बात मानबो …।

तभे देस म बड़े जिनीस कार्यकरम, चुनाव तिहार आगे। तिहार जइसे अइस, तपइया मनखे मन के, सुभाव चाल चेहरा अऊ चरित्र जम्मो बदलगे। चेहरा म उदुपले भोलापन आगे, चाल म इमानदारी खुसरगे, सुभाव म नरमी हमागे अऊ चरित्र निरमल होगे। अब येमन अपन इही गुन के बखान करत, जगा जगा किंजरे लागिस अऊ जनता ला बताये लगिस के, सिरीफ अऊ सिरीफ हमर तिर, इही जम्मो गुन हे बाकी मन सिरीफ भरमावत हे। जनता तिर अभू घला कुछ नी रहय, बपरा हा येकर ओकर मुहुं ताकत रहय। जे पाये ते ओकर ओली म चार पइसा डार के, भरमाये के कोसिस करत रहय। तिहार के दिन आगे, सांझ होवत ले फटाका फोरे के बेर आगे।
अहनकार भरभराके गिरगे। जनता बता दिस के ओकर तिर सिरीफ बोट हे …।

हरिशंकर गजानंद देवांगन
छुरा.