छत्तीसगढी़ के अनन्य साधक
उपजत अनत अनत छवि लहही के मुहावरा ल चरितार्थ करने वाला कवि नारायण लाल परमार के जनम 1 जनवरी 1927 म गुजरात के अंजोरा (कच्छ) म होय रहिस फेर बचपने ले उन छत्तीसगढ़ म आइन अउ खांटी छत्तीसगढ़िया होके रह गइन। प्रायमरी स्कूल ले अपन केरियर के सुरूआत करके उन कॉलेज के प्रिसंपल तक के पद लॅ सुसोभित करिन। उन हिन्दी अउ छत्तीसगढी़ म गद्य अउ पद्य उपन्यास नाटक कहानी निबंध अउ कविता के दर्जन भर ले अधिक किताब के रचना करे रहिन जेमन के नाव ए प्रकार ले हवय –
उपन्यास-1.प्यार की लाज 2.छलना 3.पूजामयी काव्य कांवर भर धूप
4.रोसनी के घोसना पत्र खोखले सब्दों के खिलाफ 5.सब कुछ निस्पंद 6.कस्तुरी यादें विस्मय का वृन्दावन।
छत्तीसगढी़ साहित्य –
1.सोन के माली 2.सुरूजनई मरै 3.मतवार अउ दूसर एकांकी, अजय पाठक कथे आर्थिक तंगी घलोक म उंकर गीत मन जीवन ज्योति हर नई बुझ पाइस। प्यारेलाल गुप्त के सब्द म परमार जी के कविता म उंकर अपन व्यक्तित्व रइथे जेमा कला अउ कल्पना के अलग-अलग चलन होते हुए भी दोनो म संबंध सूत्रता बने रइथे। अउ एही एक सैली बनके ‘नई धारा’ बहाथे जेमा मन अउ प्रान सीतल हो उठथे।
परमार जी स्वयं म एक साहित्यिक संस्था रहिन अउ दर्जनों साहित्यकार मन के प्रेरना स्त्रोत रहिन। छत्तीसगढी़ के महान सपूत के इंतकाल 26 अप्रेल 2003 म हो गइस।