नशा – नाश के जड़ होथे
एला तेहा जान।
पइसा – इज्जत दूनो होथे
जगा – जगा अपमान।।
जेहा पीथे रोज दारू
दरूहा ओहा कहाथे।
लोग लइका के चेत नइ करे
अब्बड़ गारी खाथे।।
थारी, लोटा, गहना, सुता
सबो बेचा जाथे।
भूखन मरथे सबो परानी
तब होश में आथे।।
छोड़ दे अब तो दारू – गांजा
जीवन अपन सुधार।
भक्ति भाव में मन लगाले
कर जीवन उद्धार।।
महेन्द्र देवांगन माटी
पंडरिया (कवर्धा )
छत्तीसगढ़
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