गज़ल – ओखी

तोर संग जब जब मोर जीत के दांव होती आही,
पासा के चले बर चाल तोला बस गोंटी चाही!

कभू नीलम कभू हुदहुद कभू धरे नाव सुनामी,
मोला करे बरबाद अब तोला तो ‘ओखी’ चाही!

मोर घर कुंदरा उड़ागे तोर रूप के बंड़ोरा म,
उघरगे लाज बचाये बर दू गज लंगोटी चाही!

आगी बरथे मोर पेट तोर रुताये पानी ले,
ए दांवा बुताय बर नानकुन कुटका रोटी चाही!

घेरी बेरी डराथस हम ल तै डरपोकना जान,
पेट चीर के ले आनथन जब हम ल मोती चाही!

तहस नहस करके फूलवारी अब जादा झन हांस
मै नव सिरजन कर लेहुं नजर सिरीफ चोखी चाही!

ललित नागेश
बहेराभांठा (छुरा)
४९३९९६
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