Categories
व्यंग्य

पंचायती राज के पंदरा अगस्त

इस्कुली कार्यकरम मं पंचायत बॉडी के सदस्य ल ही मुख्य अतिथि के खुरसी मं बिराजमान होना हे। सब ला खुरसी मिलना चाही। मास्टर मन तो सालभर खुरसी मं बइठ के खुरसी टोरत रइथें। मास्टर मन कोती ले हमर सेवा सत्कार होना चाही अउ एक बात के बिल्कुल धियान रखना हे के सब ला खुरसी जरूर मिलना चाही। उंकर झंडा-फंडा अउ गवई-बजई ले जादा अपन के मतलब रखना हे। अउ कोनो मास्टर हमर पंचायत बॉडी अउ गांव वाले के मीनमेख कहूं निकालिस ते उंकर सतपुरखा मं पानी रितोना हे। एक बात के अउ खियाल रखना हे के हम सब ला फूलपान मिलना चाही। हमर गर मं माला टंगना चाही। चोवा-चंदन लगना चाही। बीच-बीच मं चाहा-पानी के बेवस्था होवत रहना चाही।
बियंग
ते रह तारीख के रातकुन झंडा चौरा मेर इस्ट्रीट लाइट मं बइसका सेकलइस। पंचायत बॉडी के लगभग जम्मो सदस्य पधारे रिहिन। पटइल घलो एक जगा माढ़े राहै। कन्हार भर्री मं मटासी ढेला बरोबर। पंचायतीराज के सियानी मं पटइल उपराहा अउ बेजरूरत सियान आय। न्यू एंड यंग पंचायत बॉडी के राहत ले पटइल ल कोनो मुद्दा मं बोले बर मिलगे ते वोकर बनेजन किस्मत आय। सबो गांव के इही हाल। परटइल बर बोले कम, सुने जादा, अउ हां, हाव… हूं.. जेकर मुंह ले प्रेमपूर्वक निकले ते ला ठीक आदमी माने जाथें। सत्तर-अस्सी बरस के आस-पास ह उपयुक्त उमर होथे पटइल बर। याने पटइल ह नंवा जुन्ना होवत राहय अउ पटइल परम्परा चलत राहय। लोगन ल इही बिस्वास रथे के अइशने ढार्र नीति ले उन्नत गांव के सिरसन होथे ये पंचायती राज मां।
बइठक ठउर मं जुरियाय लोगन मं लगभग नब्बे फीसदी झन ठैं-दार तेवर चढ़े वाले राहे। एकझन रउत टुरा ह अपने-अपन उंडत कइथे- ”वैसाखू भइया, आस का गा? रीस झन करबे भइया। जादा नहीं, एके पउवा मारे हंव। दिन भर हरर-हरर गरुवा सन मं लगे रहिबे त अतेक बेर एकाध कनिक ले लेबे ते हांथ-गोड़ के पीरा माड़थे। ये दवई बरोबर ताय गा।” ”ले रे बइहा बने करे हस। कलेचुप रा।” लुंहगी म मेच्छा ल पोंछत रामलाल वोला टरकइस। अउ बुड़ुर-बुड़ुर टैं-टैं बेसूर ढर्रा गोठ माते राहे तइसने म ”थोरिक सुन हू गा भइया हो…” ढकारत सरपंच अंटियावत ठाड़िस। ताहन पंच मन घलो एकदम सोझियागे। एक सरपंच ह अपन गोठ पोरसन लागिस- ”आज सम्मार ये, काली मंगलवार हो ही।” ”हाव… काली मंगलवार हो ही, पक्का हे ये तो” गैंदू पंच ह अइसे मारिस टप ले जइसे डफरा के बाजे ले डमरू ह टुनटुनाथे। सरपंच काहन लागिस-” आज बइठक के मेन मुद्दा इही हे के परोन दिन माने बुधवार के पंदरा अगस्त आय। मोर बिचार हे के ये दिन गांव मं कम से कम बारा-एक बजत ले काम-काज बंद रखे जाए। खेत खार जवई बंद होना चाही।” सरपंच के गोठ ल सबोझन छिपरहा (कम) पानी के मेंचका के टर्र-टर्र ल धपोरवा कोकड़ा सहीं सुनत राहै। बात आगू बढ़िस-”वो दिन नान्हे बड़े सब ला इस्कूल मं सेकलाना हे, नौ बजत ले। सरकारी करमचारी के धियान रखना हे, के कोन आय हे अउ कोन नइ आय हे। पटवारी ल अपन हल्का मं होना चाही। पीएचसी, आयुर्वेदिक अउ वेटनरी के जम्मो करमचारी होना चाही। अपन-अपन ठउर-ठिकाना मा, नइते इंखर मुंड़ मं गाज गिराना हैं।” भीड़ ले आवाज आइस,”कोतवाल के छोंड़ भइया, काबर के वो हर अपन गांव के आदमी आय अपन आदमी आय। आखिर गांव के कुकुर ह गांव डहर ले भूंकथे। तभे बने होथे।” पटइल ल नइ सही गीस-”अरे, अइसे कइसे बनही रे बाबू हो, एक ल माई, एक ल मोसी। अरे भई कोतवाल तो घलो सरकारी व्यक्ति आय। वोखरो ऊपर कारवाही होना चाही।” पटइल के गोठ ततेरे असन लागिस। नाइकपारा वार्ड के पंच सरजू ला, कइथे-”पटइल बबा, तैं चुप हा गा। सियान आदमी के सेठियाहा बुध, हफ्ताभर के अमसुरहा दूध। जानस न काहीं।” पटइल के कुछु केहे के पहिली ले मरी खा के भकवाय कुकुरकस सबके सब चिल्लइन-”पटइल, तोर तइहा के बात ल बइहा लेगे। हमर आज पंचायती राज के जमाना हे, खाना हे, तभे गाना हे।” ताहन फेर ”टार बिया हो। आगी लगे तुंहर, पंचायती राज, घुड़साल मं गदहा सियानी। एक लोटा दूध मं बाल्टीभर पानी।” कुरमुरात पटइल टुंग-टुंग रेंगदीस बइठक ठउर ले। तांहन फेर सरपंच ह नरियाय असन गोठिअइस- ”इस्कूल के परभात फेरी के बखत लइका मन कम राहै चाहे जादा राहै, पर कोनों गुरुजी ह अब्सेंट नइ होना चाही। इस्कुली कार्यकरम मं पंचायत बॉडी के सदस्य ल ही मुख्य अतिथि के खुरसी मं बिराजमान होना हे। सब ला खुरसी मिलना चाही। मास्टर मन तो सालभर खुरसी मं बइठ के खुरसी टोरत रइथें। मास्टर मन कोती ले हमर सेवा सत्कार होना चाही अउ एक बात के बिल्कुल धियान रखना हे के सब ला खुरसी जरूर मिलना चाही। उंकर झंडा-फंडा अउ गवई-बजई ले जादा अपन के मतलब रखना हे। अउ कोनो मास्टर हमर पंचायत बॉडी अउ गांव वाले के मीनमेख कहूं निकालिस ते उंकर सतपुरखा मं पानी रितोना हे। एक बात के अउ खियाल रखना हे के हम सब ला फूलपान मिलना चाही। हमर गर मं माला टंगना चाही। चोवा-चंदन लगना चाही। बीच-बीच मं चाहा-पानी के बेवस्था होवत रहना चाही। सोंप-सुपारी के डब्बा मं आगू मं माढ़े रहना चाही। हमन निकाल-निकाल के खावत राहन, जइसे डबरा मं सड़बड़ाय सियानहा भइंस्सा ह पगुरात रइथे। रेगुलर टीचर मन हमर आजू-बाजू मं ठाढ़े राहे। भइंसा चरवाहा असन अउ ये सिक्छाकर्मी टूरा मन हमर आगू-पाछू होवत राहैं कोकड़ा असन। अरे भई, जेखर बर तो हम पांच साल बर चुनाय हावनजी, इङी मान-सम्मान पाय बर अउ रूतबा मारे बर।” एकझन पंच हर बीच मं किहिस-”हम किसान आदमी आन गा। खेत खार ल घलो देखे ला लागही। बनिहार-वनिहार लेगे लाने ला लागही, त अइसे मं अंदरा-पंतरा अगस्त थोड़े न देखबोन जी। ये पंदरा अगस्त के सामिल होय मं हमर पेट नइ भरै रे भई।” ”अरे छोड़ना रे रामनाथ, ये सब देखे जाही। अरे हम गांववाले आन। हम पंच-सरपंच, हम सियान। चित-पट दूनो हमर ये। ये सब हमर ऊपर हे कतेक बेर का करना हे ते हा। अपन हांथ जगन्नाथ।” उपसरपंच के भाखा निकलीस-”इस्कूल मं लइकामन के कार्यकरम होय के बाद हम ला माईक ल पोगराना हे। जतेक झन ल जौन बोलना हे बोलहू। कोन ल काय बोलना हे हमर ऊपर हे। अउ नास्ता करे बिना कोनों ल नई टरना हे। परसाद ह ठोमा पसर मिलना चाही। धियान रखहू परसाद म फर-फूल, मिठई-विठई होना चाही। सेव-बूंदी एक बार चल सकथे, फेर ठोमा-पसर ना। गय, वो पटइल के चना-मूर्रा के जमाना हा।” उपसरपंच दांत निपोरत मुंह बांधिस। देखते-देखते रात घलो गहरागे। पंचायतीराज के पंदरा अगस्त मनई के बेवस्था के गोठ ल सुन-सुन के रात घलो अस्कटागे। आखिर म सरपंच कइथे-”अगर अभी होय बेवस्था के मुताबिक पंदरा अगस्त मनाही त समझेन ये सो के पंदरा अगस्त ह हन्डरेड परसेंट सक्सेस होइस।” अब पंचायती बाडी मं बिराजे सुरा-सुंदरी घलो खसकन लागिस। तभेच्च इस्ट्रीट लाइट हर घलो कव्वागे- ”अब जाव ना रे पंचायतारण्य के सिसी पुत्र हो, भलेच बेरा होगे अउ चुम्मुक ले आंखी ल मुंदिस।”

टिकेश्वर सिन्हा
गब्दीवाले