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कविता

दोहा : गरमी अऊ पानी

गरमी आवत देख के, तोता बोले बात।
पाना नइहे पेड़ मा, कइसे कटही रात।।

झरगे हावय फूल फर, कइसे भरबो पेट।
भूख मरत लइका सबो, जुच्छा हावय प्लेट।।

नदियाँ नरवा सूख गे, तरिया घलव अटाय।
सुक्खा होगे बोर हा, कइसे प्यास बुझाय।।

पानी खातिर होत हे, लड़ई झगरा रोज।
मार काट होवत हवय, थाना जावत सोज।।

टपकत हावय माथ मा , पसीना चूचवाय।
गरम गरम हावा चलत, अब्बड़ घाम जनाय।।

कइसे बांचे जीव हा , चिन्ता सबो सताय।
पानी नइहे बूंद भर, मोला रोना आय।।

महेन्द्र देवांगन माटी
पंडरिया (कवर्धा )
छत्तीसगढ़
8602407353
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One reply on “दोहा : गरमी अऊ पानी”

suresh nirmalkarsays:

bad sughhar he mati bhaiya

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