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परेवा गीत: बाबूलाल सिरीया दुर्लभ

उड़िया जा परेवा तंय, ले के संदेस, मोर पिया के देस
पामगढ़ जाबे फेर सवरीनारायन, अंगना म लागे हवय आमा के पेड़।
गर्रा-धूंका अस तंय जाबे, अऊ ओसने आ जाबे,
रूख-राई के छंइहा म झन कोनो मेर सुरताबे।
झनिच बिलमबे कोनो मेर न, झन करवे कहूँ अबेर।
उड़िया जा परेवा तयं॥

चील- कँउवा-बाज हें अब्बड़ साव-चेती जाबे,
सिकारी मन के माया जाल म जाके झन झोरसाबे।
मोर दया-मया तंय संग ले जा, तोर होही रखवार। उड़िया जा. ॥

महनंदिया म पानी मिलही, चंडीगढ़ म चारा,
तरिया तीर म ऊंखर महल हे, बड़का हवय बियारा।
जंह एक पेंड आमा होही, अऊ दुई पेड़ जाम। उड़िया जा. ॥

मुचमुच हांसत संही चंदैनी, आँखी मन ल मोहय,
अउ गुलाब अस गाल, कान म गोंदा खोंचे होहय।
तंय चीन्ह लेबे बंधवा मोर, झन होबे हइरान। उड़िया जा. ॥

खांध में ओरमे होही पोतिया, पहिरे धोवा-धोती,
माथा म चंदन के टिपका, जइसे माढ़े मोती !
वोही हवय मोर मन के हीरा, वो ही हवय चितचोर ! उड़िया जा॥

कहिबे अकती म ले के आ जाही मोर बर डोली,
अली-गली म सब संगवारिन, मारयं बोली-ठोली।
जर-जर के तन खोइला होगे, होगे मरे बिहान। उड़िया जा॥

मोर अंतस पीरा ल सब, उन ला तंही बताबे,
उनकर सरी संदेसा ल तंय मोर सो ले के आबे।
सिरतो तोर अगोरा म मोर अरझे रही परान। उडिया जा.॥

चढ़े जवानी ल चुहकत हे, ऊंखर मया के माहू,
मोर बिपत म ठाढ़ हो जा, तोर जनम-जनम गुन गाहूँ।
तंय पंछी के जात परेवा, मनखे ले वो पार। उड़िया जा.॥

बाबूलाल सिरीया दुर्लभ