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चँदेनी के माँग में फागुन: पुरुषोत्तम अनासक्त

चँदेनी के माँग में फागुन बसै।
तब चेहरा में पावों लाल-लाल फूल॥
हवा में कोन जनी का बात हे
महमहावत हे दिन, महमहावत रात हे,
चँदेनी के माँग में फागुन बसै।
तब चेहरा में पावों परसा के फूल॥

उतरे हे सपना के रंग।
जैसे भावत हे बादर के संग,
चँदेनी के मिलकी में फागुन उतरै,
तब चेहरा में पावों मोंगरा के फूल॥

बिजली, सम्हर के दिया-बाती बरै
पुतरी के आँखी में काजर परे
चँदेनी के अँचरा में फागुन उतरै ।
तब चेहरा में पावों आमा के मउर॥

चँदा के जीभ, सुरुज बिजरावै,
आँखी के पानी, आँकी-ओगरावै,
चँदेनी के आँखी में सपना उतरै।
तब चेहरा में पौवों सुकुवा के फूल॥

पुरुषोत्तम अनासक्त