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गोठ बात

पुतरी के बिहाव – सुधा वर्मा

रमा आज बहुत खुस हावय। आज अकती हे, आज ओखर पुतरी के बिहाव हावय। रमा के संगवारी अनु घलो खुस हावय, काबर के रमा के पुतरी ओखर घर आही। दूनों संगवारी समधिन बनहीं। दू दिन पहिली ले तइयारी चलत हावय। रमा अउ अनु तेल मायन सब करिन। एक अँगना म दूनों झन बिहाव करत रहिन हे। दूनों के परिवार माय भरिन। सब झन खूब हँसी-मजाक करत रहिन हे। हरदाही खेलिन तब तो अइसे लगत
रहिस हे के सही के बिहाव होवत हावय। रमा के महतारी ह पुतरा-पुतरी बर सुघ्घर कपड़ा लेय रहिस हे। रमा अउ अनु बर सुघ्घर फराक लेय रहिस हे।
अनु के महतारी ह दूसर दिन खाये-पीये के इंतजाम करे रहिस हे। रमा अउ अनु अपन हाथ ले ड्राइंग पेपर ले के ओमा रंगीन पेन ले बिहाव के कारड तइयार करे रहिन हे। दूनों झन पारा के कई झन ल बिहाव के नेवता देय रहिन हे। रमा ह अपन इसकूल के सहेली मन ल घलो बलाय रहिस हे।
बिहनिया ले अंगना म सुघ्घर गुलाबी रंग के पाल परदा लगगे। किराया के लाली कुर्सी आगे। अंगना म एक डहर रमा के पुतरी दूसर डहर अनु के पुतरा के मड़वा गड़े रहिस हे। नवा बांस के नान-नान मड़वा। ओखर चारों कोती माटी के खांच बना के पीऊंरा अउ लाली चाऊंर ले सजाय रहिन हे। करसा ल घलो गोबर अउ धान ले सजाय रहिन हे। बीच-बीच म पिंवरा अउ लाली रंगे चाऊंर ल भरे रहिस हे। कांच अउ रक्षासूत्र ले करसा के मुँह ल सजाये रहिन हे। पर्रा म कांच अउ रंगीन पेपर लगाये रहिन हे। रमा टीकावन के समान लाने रहिस हे, छोटे-छोटे ग्यारा ठन बरतन, गैस चुल्हा, कुकर, मिक्सी। नान-नान तकिया गद्दा बनाये रहिस हे। अपन गिरहस्ती के जम्मों चीज ल सकेले रहिस हे। नान-नान मोटर साइकिल रखाय रहिस हे। अनु ह सुघ्‍घर लुगरा बनाये रहिस हे। मोती के चूरी बनाये रहिस हे। गला बर मोती के सेट अउ सोन कस चमकत हार लेय रहिस हे। पुतरा-पुतरी बर कलगीवाला मउँर लेय
रहिस हे। रमा के महतारी अउ अनु के महतारी मन गोठियात हावंय के लइका मन अपन मन के कतेक सुघ्‍घर सरी बुता ल करत हावंय। दाइज, चड़ाव सब इंतजाम अपन मन ले करत हावंय। अनु के महतारी ह काहत हावंय के दाइज म गाड़ी देना चाही। लइका मन बड़े होही त गाड़ी ल मुँह खोल के दाइज म मांगहीं।
“हाँ ये बात ता सही आय”
अनु के महतारी ह अनु ल बलाथे अउ कहिथे के तैं ह रमा ल कहिदे के हमन ल मोटर साइकिल झन देबे। हमन अपन पुतरा के बिहाव म कांही नई लेवन।
“काबर माँ”
“नही बेटा ये सब दाइज म आथे। नवा-नवा घर बनथे त बरतन भाड़ा देथें तेन ह बने बात आय फेर दूसर कांही समान नई लेना चाही।”
“हाँ माँ।”
सब झन तइयार हो के चार बजे बरात निकाल के बाहिर आगें। अपन घर ले मंदिर तक गीन अउ भगवान के दरसन कर के वापिस रमा घर आगें। रमा ह पानी ओरछ के बरात के सुवागत करिस। एक-एक ठन फूल धरइस अउ सरबत पियइस। सब झन मंडवा के आगू म कुर्सी म बइठे रहिन हे। रमा के, अनु के संगवारी मन नई आय रहिन हे। पारा परोस के मन आगे रहिन हे।
रमा अउ अनु के संगवारी मन नई आय रहिन हे त घेरी- भेरी दूनों दूवारी डाहर ल देखंय।
“काबर नई आवत हे”
सब झन कहिन चलव अब पानिगरहन के बेरा होगे हावय। एक डहर सोंहारी बनत रहिस हे। आलू चना के साग, बूंदी कढ़ही, तसमई, बूंदी लाडू, बिड़िया, बालू साही के खुसबू ह बगरत रहिस हे। अनु के महतारी ह कहिथे- “बिहाव के मुहुरत म देरी नई करना चाही।” चलव भई भांवर के बेरा होगे हावय।
रमा “हाँ-हाँ” कहिथे अउ सब झन टीकावन करे म लग जथें। टीकावन के बाद म भांवर परथे। रमा अउ अनु अपन-अपन पुतरी-पुतरा ल धर के भांवर पारथें। रमा अउ अनु पुतरी-पुतरा ल धर के सब के पांव परथे। अब एक ठक कुरसी म दूनों ल रख के सब झन खाये बर जाथें। खाना खात-खात रमा अपन सहेली मन के सुरता करथे। अनु घलो उदास हो जथे के ओखर सहेली मन नई अइन।
सब झन खाना खा के चल देथे। खाना के बने तारिफ घलो करथें। रमा अउ अनु एक जगह मंडवा तीर बइठे हावय। ओमन रमा के घर डहर बइठे हावंय। अनु ह कहिथे। अंजू ल फोन कर के पूछ न, के ओ ह कइसे नई अइस हे। रमा ह अपन पापा के मोबाइल ल लान के पूछथे के “अंजू तैं कइसे नई आयेस अउ संगवारी मन घलो नई अइन”
अंजू के जवाब सुन के रमा दंग रहिगे। अंजू ह कहिथे रमा हमर घर ले तोर घर ह दूरिहा हावय, सांझ कन जा के रात तक रूके ले परतिस। हमर घर म माँ-पापा कहिन के रात के बाहिर म नइ रहिना हे।
“अरे त हमर घर म तो अतेक झन हावय। फेर सगा घला हांवय अकेल्‍ला कहां हन।”
“नहीं रमा आज कल लड़की मन सुरक्छित कहाँ हावंय एक मिनट म कब कोन उठा के लेग जही पता नई चलय। माँ ह काहत रहिस हे अब कोनो भी मेर अकेल्ला झन जाबे एखरे सेती हमन कोनो नइ आयेन।”
“मोला फोन तो करे रहिथे मोर पापा लेय बर आ जतिस अउ रात के घर म छोड़ देतिस। येहा अतेक सोचे के का बात हे।”
“नहीं माँ काहत रहिस हे के जमाना अब कखरो ऊपर विश्वास करे के नोहय। भइगे इसकूल अउ इसकूल ले घर तक ही आना-जाना हे। बाकी बेरा म घर में ही रहना हे। अब हमरे मन संग आना-जाना।”
“ठीक हे अंजू, मैं फोन रखत हंव।”
“हाँ रख”
अनु के माँ पूछथे- “काय होईस”
रमा सब बात ल बताथे। अनु के संग-संग जतका झन रहिन हे, सब के चेहरा म चिंता के लकीर दिखे ले लगगे। अुन अउ रमा के माँ कहिथे- सही बात आय आज कोनो मेर बेटी सुरक्छित नइये। आज अतेक बड़ तिहार म हर साल बस सहेली मन संग म मनावय ते मन आज अलग-अलग हांवय। रंजू बलातिस ल हमू मन रात कन सायद ही भेंजतेंन। आज तिहार बार म घलो अपनेच्च घर म राहव। हमर जमाना कतेक बने रहिस। रात ले खेलत राहन। पारा मोहल्ला के मनखे मन संग कोनो भी चल दन। आज अइसना नइये।
अनु के माँ कहिथे आज लइका मन के अतेक बड़ तिहार ह सुन्ना होगे। अवइया बेरा म ये तिहार ल सब अपन घर म अकेल्ला मनाहीं। लइका मन के अतेक बड़ तिहार अउ अंगना सुन्ना होगे। येखर कल्पना करके ही रूह कांपे ले लग जथे। बेटी मन के बचपन-बचपन नोहय। काय ओमन ल बेड़ी म रखे जाय, तिजोरी म बंद करके रखे जाय। आज अनु, रमा अउ पूरा परिवार चुप बइठे रहिगे। कुछ देर तक सन्नाटा रहिस
हे। अचानक अनु के माँ ह कहिथे चलो भई बेटी बिदा कर रमा, हमन घर जाबों। सब झन बुझे मन ले उठथें अउ मसीन कस सब काम करथें। अपन पुतरी ल अनु के हाथ म दे के रमा कहिथे।
“अनु मोर पुतरी, मोर बेटी के धियान रखबे, ओला कभू अकेल्ला झन छोड़बे, राक्छस मन किंजरत रहिथें।” अउ ओखर आंखी के आंसू निकले ले लग जथे। ये वाक्य ह सबके मन ल झकझोर के रख देथे। अनु पुतरा-पुतरी अउ दाइज ल धरके आ जथे। मोटर साइकिल मड़वा म माढ़े रहिगे। आज तिहार के दिन के उदासी एक सवाल खड़े कर दिस। काये अब बेटी मन सामूहिक, सार्वजनिक तिहार नइ मना सकंय।
काये आज हमर बेटी मन तेलमाटी, चुलमाटी के नेंग बर मंदिर तक नइ जा सकंय।
काये हमर बेटी मन अपन खुसी बर, अपन तीज-तिहार म अकेल्ला मंदिर नइ जा सकंय।
हाँ सही बात आय अब ये सब बेटी मन बर नोहय। एक बेर फेर समे बदलत हावय। अब तो बुरका ले काम नइ चलय। अब बेटी ल लोहा के कवच म रखे ल परही, एक बेर फेर असिक्छा सुरसा कस अपन मुँह खोलही।
तिहार के खुसी एक छन म उड़ागे। पुतरी के बिहाव एक सवाल खड़ा कर दिस अपन सुरक्छा के बिहाव के पहिली अउ बिहाव के बाद।
– सुधा वर्मा