ऊंखर जउंहर होय, मुरदा निकले, खटिया रेंगे, चरचर ले अंगुरी फोरत बखानत रहय। का होगे या भऊजी, काकर आरती उतारत हस, राम राम के बेरा। नांगर धर के खेत रेंगत पूछत रहय छन्नू अपन परोसीन ल। चुनई लकठियाथे तंहंले कइसे मोहलो मोहलो करथे किरहा मन। तेंहा परिवार के मुखिया हरस कहिके, मोर नाव ले रासन कारड बना दीन। खुरसी पइन, तंहंले कारड निरस करत हे बइरी मन। आहू, ये पइत वोट मांगे बर, तुंहर पुरखा नी देखे होही ततका देखाहूं। भऊजी के गारी बखाना अतरीस त, छन्नू समझावत कहिस – गलत सलत मनखे के फेरा म, कतको पातुर मनखे मन पिसावत हे भउजी। खुरसी ल खुस करे बर कारड बनइया जुम्मेदार मन, हमर बिगाड़ करीन। गारी देना हे त उही मन ला दे, तब फबही। तोरो रासन कारड म कुछु गलती नजर अइस होही भऊजी, तेकर सेती निरस करे होही – छन्नू लमबा चउड़ा फेंके लागीस, भऊजी के कनकालीन मुहूं ल थोकिन सांत देखीस तब। भउजी के एड़ी के रिस तरूवा म चढ़गे, हमन छ्त्तीसगढ़िया आन बाबू, मिहनत अऊ ईमानदारी हमर लहू म दउड़त हे, लबारी मार के कन्हो ल धोका नी देवन।
करबेलवा पारसद के दसखत नी रिहीस, सिरीफ ओकरे सेती हमर रासन कारड निरस होगे। अऊ कतका गारी गल्ला देतीस भऊजी तेकर पहिली, छन्नू ओला सलाह दे डारीस – नगर पंचइत म, एक झिन बाबू साहेब, सिरीफ अइसनहेच प्रकरन के, जांच परताल करके नावा कारड बनाए बर बइठे हे। अपन पूरा कागज पातर ल, धर के जा, अऊ बनवा डार।
हफता सिरागे कारड बनवाये के चक्कर म। हक खा गे भउजी, नगर पंचइत के चक्कर लगा लगा के। वोकर मुहूं फेर बाजे लागीस बिहिनिया ले। छन्नू फेर सुन डारीस। काबर बखानथस या, जेकर कारड गलती ले निरस होये हे , बपरा मन मनखे तो बइठारे हे ओखरे कारड बनाये बर। भऊजी के पारा अऊ गरमा गे। हव सही बत ये बाबू, जेकर ल जानबूझ के निरस करे हे तेकर कन्हो सुनवई निये। कभू ये कागज, कभू वो कागज, कभू पटवारी के पूछी टमड़, कभू तहसीलदार के धुर्रा बर तरस। ऊप्पर ले ढमढेकवा पारसद ………तूमन ल नी चिनहंव कहि के दसखत नी करय। ये पइत आबे बिन गड़हन के डमचगहा …….., उही दिन बताहूं तहूं ल। खेती खार के दिन म, सरी काम बूता ल छोंड़ के जतका चक्कर कटवाहे, तेकर मउका परे म जरूर हिसाब मांगहूं।
दू चार पइसा खरचा नी करबे भउजी, त हफता अऊ महीना का, बछर भर घूमे बर लाग जही। छन्नू के गोठ भउजी ल फिकर म डार दीस। खरचा पानी कतका देबर लागही न कतका। का मुसकल म जिनगी चलत हे। घर म कहीच नी बांचय। बोनस के लालच म धान ल खेत ले सुसइटी पहुंचा डरय। भउजी सोंचत रहय – बईमान मन के घर म दू तीन कारड हाबे। एक रूपया म चऊंर पावथे, अऊ दस बारा रूपया किलो म बेंचत हे। इही कोचिया मन के एको कारड निरस नी होय हे।
सबो झिन ल लांघन भूखन रेहे बर लागही भउजी, कारड अऊ कुछ दिन नी बनही त। तोर इमानदारी के सेती दूसर के खेत म मजदूरी के समे आवथे – ननंद के टेचरही, भऊजी के हिरदे म बान कस गोभागे। कतको झिन किहीन तोर ननद के नाव ले अलग, तोर सास के नाव ले अलग कारड बन जाही, फेर भऊजी सब झिन ल, अपन जवाब ले निरूत्तर कर देवय। वो कहय के एक चूलहा बर एके कारड होना चाही। ननद के तीर म ओकर ईमनादारी के लहू बाहिर निकले कस दिखत हे। सोंचे लागीस – ओकरो घर दू तीन ठिन कारड होतीस, वहू मन फुदर फुदर के खातीन। ओकर धियान टूटीस, जब लइका चिचियावत अइस। का होगे रे, काबर बड़ नरियावत हस ? रामू कका घर के कारड बनगे दई, उही ल बतावत हंव। ओहा सेठ हरे बेटा, तेकर सेती ओकर कारड बन गीस, हमन गरीब किसान अन, लमबा सवास भरत सोंचे लागीस।
पन्दरही नहाकगे। भऊजी के गारी बखाना नी सुने ल मिलीस त, छन्नू हाल चाल पूछे बर ओकर घर पहुंचीस। गोरसी तापत चूनी रोटी खावत, भउजी अऊ भइया बइठे रहय। पीढ़हा म बइठत छन्नू पूछीस – कारड बनगे गा भइया। इही ल पूछ, कोन जनी काये काये उदीम करके बनवइच के दम लीस। कइसे बनीस या भउजी, मोरो खेत म दू चार दिन कहीं बूता निये, महूं भिड़तेंव।
पारसद करा लिखवाय अऊ ओकर दसखत ले बर लागही। काये लिखवाहूं ? तेंहा इही वार्ड के रहवइया अस, अऊ ओहा तोला जानथे कहिके, परमानित करही। अइसन म मोर कारड कइसे बनही भऊजी ? मोला पारसद, न देखे हे न चिनहे। देख बाबू, पांच बछर म एक घांव बटन चपक के अपन फरज ल पूरा कर देथन, तेकर सेती हमन सिरीफ वोटर आवन, हमन ला कोन चिनही। टोपी वाला मनके जी हूजूरी कर, उंकर छोटे मोटे काम फोक्कट म निपटा, उंकर आघू पीछू किंजर, तब तिहीं ह वोटर ले वोट बन जबे। तोर हरेक काम बहुतेच असानी ले पूरा होवत जाही। अइसे भी कन्हो सरकारी जोजना वोट बर बनथे, वोटर बर नी बने।
पंदरह दिन ले महूं, पारसद ल बिहिनिया बिहिनिया ले सलाम बजायेंव, ओकर जिंदाबाद के नारा लगायेंव, मोला चिन डरीस। मोर काम कर दीस। फेर अतकेच म बात नी बनीस, काऊनटर म खड़े होये के समे हुलिया बदल डारेंव। छत्तीसगढ़ी म झिन गोठिया, गिटिर पिटिर हिनदी अऊ अनगरेजी के दू चार अकछर रट्टा मार। कपड़ा लत्ता चुकचुक ले पहिर के सुघ्घर बाजर बनके बाबू साहेब के आघू म खड़ा होजा।
अइसन म बाबू साहेब हा, तैं छत्तीसगढ़िया नोहस, गरीब नोहस, झूठ बोलत हस कहिके भगा दिही तब ? इहीच तो बात हे बाबू …। तैं गरीब छत्तीसगढ़िया बनके लइन म लगे रहिबे, तब तोला जरूर खेदार दिही। इही पायके गैर छत्तीसगढ़िया मन रूपया किलो चऊर ल पहिली झोंकावत हे। तैं गांव गरीब अऊ छत्तीसगढ़िया होये के, मूल भावना ल तियाग। अपन देहें ले छत्तीसगढ़ियापन ला उतार, चोला ल बदल। वोटर ले वोट बन। न सिरीफ रासन कारड बलकी तोर हरेक काम पूरा होही, सासन के जम्मो जोजना के फायदा तुहींच ल मिलही। अऊ नी कर सकस, त पछतावत बइठे रह, अइसे भी छत्तीसगढ़िया के भाग म, धान के कटोरा धर के दाना दाना बर लुलुआना लिखायेच हे। एला भोगेच ल परही, चाहे हांस के, चाहे रो के।
हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन
छुरा.