भगवान जगरनाथ के रथ यात्रा ल जिनगी जिये के प्रतीक कहे जाथे। जइसने रथ यात्रा के दिन भगवान ह अपन घर ले अपन भाई-बहनी के संग निकलते अउ उखर संगे-संग यात्रा करे बर आघु बड़थे, वइसने मनखे मन के जिनगी म अपन भीतर के विचार अउ गुन ल उमर भर संग ले के रेंगें ल पड़थे, विचार के संगे-संग अपन सगा संबंधी परिवार ल सब्बो ल उमर भर संग म धर के चलना चाहि, जइसे भगवान जगरनाथ ह अपन परिवार अपन भाई-बहनी के संग ल नइ छोडिस वइसने सब्बो मनखे ल भगवान के दिखाये रददा म चलना चाहि, भगवान जगरनाथ के दरसन करे ले ओखर यात्रा म सामिल होये मात्र ले मन ह पवित्र नइ होवय, भगवान के बताए गे रददा म चले ल लागथे, भगवान के गुन न धरे ल लागथे तभे भगवान अउ भकत दुनो के यात्रा ह सफल होथे, भगवान जगरनाथ के रथ यात्रा अउ भगत के जीवन यात्रा जेन सफल होये के बाद सीधा मोकछ के द्वार म ले जाथे, अउ यात्रा सुरु करे म पूरा परिवार अउ भाई-बहनी के बीच म जइसे मया दुलार बने रहिथे वइसे जीवन म अपार शांति अउ सफलता बने रहिथे, येहि सब चीज हे जेन भगवान ह अपन यात्रा ले सब्बो मनखे ल सिखाथे।
भगवान जगरनाथ ले जुड़े एक कहावत घलोक हवय कि एक राजा इन्द्रधुमान अपन सब्बो परिवार के संग नीलाचर सागर के तीर म बसे रहिस हे ओहि सागर म राजा ल लकड़ी के एक गट्ठा मिलथे अउ उहि लकड़ी के गट्ठा ले राजा के कहे म एक सियान मनखे ह भगवान जगरनाथ के मूर्ति बनाथे, वो सियान कोनो मामूली सियान नइ रहय, भगवान जगरनाथ के मूर्ति बनाये बर सियान के रूप धर के आये भगवान विसवकर्म रहिथे, भगवान विसवकर्म राजा संग एक सरत रखथे की जब तक मैं ये मूर्ति ल नइ बनालाव तब तक कोनो मनखे वो कुरिया म झन आहू, तभे मैं ये मूर्ति ल बनाहू, राजा ह भगवान के सरत मान लेथे अउ विसवकर्म भगवान ह मूर्ति बनाये के काम सुरु कर देथे, अब्बड़ दिन बीते के बाद जब राजा ल रहे नइ जाये त राजा ह ओ कुरिया के भीतरी जाये के विचार बनाथे अउ फेर एक दिन ओ कुरिया के भीतरी चल देथे, कुरिया के भीतरी जाये के बाद देखथे की अंदर म कोनो नइ हे, अउ मूर्ति ह आधा अधूरा बने हे येला देख के राजा ह अब्बड़ उदास होथे, अउ अपन गलती बर अपन आप ल कोसथे तभे भगवान जगरनाथ ह राजा के सपना म आके राजा ल कइथे की हमन ह इँहा अइसने रूप म रहना चाहत हन तै उदास झन हो। तै ओहि रूप म हमन ल इँहा बसा दे, फेर राजा ह उहा मूर्ति के स्थापना कर के मंदिर ल बनवाथे, अउ आज तक भगवान जगरनाथ ह ओहि रूप म उहा अपन भई बहनी संग निवास करथे अउ अपन भगत मन के कष्ट ल हरथे।
अइसने मनखे मन के जीवन म भगवान जगरनाथ के मूर्ति बरोबर जइसे हे वइसने रहना चाहिये, जादा पाये के लालच म अपन जिनगी के बने बेरा ल बरबाद नइ करना चाहि। तभे मनखे मन के जिनगी हँसी-ख़ुशी बितहि अउ फेर जिनगी म भगवान के करे करम ले सिख ले के बने-बने चलही।
अनिल कुमार पाली,
तारबाहर बिलासपुर छत्तीसगढ़।
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