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Sargujiha

सरगुजिहा कहनी- मितान

ढेरे जुनहा गोठ हवे। गांव कर उत्तर कती एगो झोपड़ी रहिस। उहां एगो महात्मा रहत रहिन । दिन भर भीख मांगे अउर रात में झोपड़ी में कीर्तन भजन करत रहें। गांव में उनकर चेला-चपाटी भी रहिन ! कीर्तन भजन करे वाला चेला। ओही चेला में एगो चेला रहिस बिसनाथ। पढ़ल-लिखल होसियार चेला। कीर्तन भजन करे में उसताज।

एक दिन बिसनाथ महात्मा जग भिनसारे पहुँचिस। ओकर चेहरा उदास रहिस । हाथ में एगो झोला रहिस। ओहर महात्मा ला पायलगी करके एक कती बइठ गइस। तब महात्मा कहिन – “का बात हवे बिसनाथ, कहां जात हवस का”?

“हाँ बाबा जी। ए गांव ला छोड़ के जात हवों। इहां काम धंधा नई चलत आहाय बनी-मजुरी नई मिलत आहाय । खाली खेती-बारी में गुजर नई होय” विसनाथ हर कहिस।

“कहा जाबे“-महात्मा पुछिन।

“”कहोंच। छेरमेड़ही, चाहे दुरूग, भिलाई। जिहां न काम भेटाए”। -बिसनाथ कहिस।

“परदेस में संगता कर लेबे। अऊर इमानदारी ले काम करबे। जा भगवान तोर भला करें” । महात्मा कहिन।

बिसनाथ बाबा जी कर गोड़ लागिस अउर रेंग देहिस।

बिसनाथ रेंगे लागीस । रेंगते-रेंगते ढेरे दुरिहां निकल गइस। अऊर पर गइस मझीन । पियास कर मारे ओकर कंठ हर सूखे लागिस। थोरक दूर जब निकल गईस तब एगो नरवा परीस। उहें बिसनाथ आंख मुंह धोइस, झोला ले बोथल बासी ला निकाल के खाइस। बासी खात घीर बिसनाथ हर एगो कछुआ ला देखिस कछुआ बिसनाथ कर गोड़तरी छिंटाल बासी ला खात रहिस। बिसनाथ हर थोरक बासी ला अऊर छिट देहिस कछुआ जीघा। खाय पी के बिसनाथ चले लागीस । ओही घीर ओ के महात्मा कर बात हर सुरता आय गईस – “बिसनाथ परदेस मे कोनों ला संगता कर लेबे”।

बिसनांथ अंजुरी मे उलेछ के कछुआ ला पकड़ लेहिस अऊर अपन पगरी कर ऊपरे खोंच लेहिस। अब ए जीघा माला कोन संगता मिलही। बिसनाथ सोंचिस चला परदेस कर साथी एही कछुआ हर रही। चलते-चलते ढेरे दुरिहां निकल गईस बिसनाथ। मझनिया खराए रहे । ओहर एगो आमा कर पेड़ तरी छहीआय बर ठहर गइस। थोरोक देर बाद बिसनाथ ओछही पेड़ तरी ओठेंग गइस। ओठेंगते ही ओला नींद आये गइस। तेकर ओकर नाक बाजे लागीस। ओही आमा फेड़ कर उपरे एगो सरप रहत रहिस अऊर एगो कऊओआ। दूनों में खूबेच दोस्ती रहिस।

बिसनाथ ला फेंड़तरी सुतल देखके कऊआ हर अपन मितान सरप ले कहिस – “ए मितान मैं हर ए मइनसे कर आंखी ला खाए कर बिचार करत हवों”।
त सरप हर कहिस – “कइसे खाबे मितान । ए मइनसे हर त जीयत आहाय । जीयत मनिसे कर आंखी ला भला कोनों हर खाए सकहीं”?
“एही ला त महूं सोचत हवों कि कइसे ये मनिसे कर आंखी ला खाओं ।” कुछ सोंच के कऊआ कहिस – “ए मितान तू ए मनिसे ला डंस देवा। डंसते ही मर जाही अऊर तब में एकर आंखी ला सुघ्धर ले खाए
सकहू”।
सरप सोंच में पर गइस । सोंच-बिचार के ओहर कऊआ ले कहिस- “बिना कसूर कर मैं किसे ए मनिसे ला डंसो। ए काम मोर संगे नी हो ही मितान”।
कऊओआ हर होसियार कर संघे धूर्त घाला रहिस । कहिस – “तू ये मनिसे कर तरपावां जीघा पेड़री मार के बइठ जावा । बाकी मोर ऊपर छोड़ देवा” । सरप ला अपन मितान कर कहना ला मानेक परीस। ओहर आमा पेंड़ ले धीरे-धीरे उतरीस अऊर बिसनाथ कर तरपावां जगे बडठ गइस। कऊआ उड़के एगो डार में बइठ गइस। अऊर अपन चोंच ले सूखल-सूखल
झूरी ला बिसनाथ कर तरपांवा में गिराएक लागीस । झूरी हर ठीक बिसनाथ कर तरपांवा में गिरे लागिस, अऊर बिसनाथ पीरा ले अपन गोड़ ला फटकारेक लागीस। गोड कर फटकारे ले तरपांवा जगे बइठल सरप ला घाव लागिस । घाव कर परते सरप हर फूफकार उठिस अऊर ताबर तोर बिसनाथ कर तरपांवा ला डसेक लागीस।

करिया नागीन कर बिख हर धीरे-धीरे चढ़ेक लागीस। बिसनाथ धीरे-धीरे बेहोस होय लागीस । अऊर आंखी हर पथराए लागीस । उते सरप कर मितान कऊआ कांव-कांव करत उतरीस अऊ बिसनाथ कर नाक में बइठ गइस । बिसनाथ कर आंखी हर पथसए जाए रहे । कऊआ अपन चोंच ले जइसने बिसनाथ कर आंखी ला ठोठमहूं सोंचिस तइसने बिसनाथ कर पगरी में खोंचल कछुआ हर अपन ढेंटू ला निकाल के अपन मुंह मे कऊआ कर ढेंटू ला इचेट लेहिस। अब तो कऊआ कर बुइध भुलाय गईस । जान
कर आफत पर गइस । अऊर ओहर कांव-कांव करेक लागीस ।

खोखरो में दुबकल सरप हर कहिस – “का होय गईस मितान ? काबर आंखी ला नइ खास” ?

कऊआ कर नरेटी हर चिपाए रहे । ओहर घरघरात-घरघरात कहिस – ‘एगो कछुआ हर मोर नरेटी ला चिप देहिस आहाय । किसनों बचावा मितान । नई त मोर जीउ निकल जाही” ।

सरप हर कहिस – “काबर रे कछुआ । छोड़ दे मोर मितान कर नरेटी ला। काबर एकस करत हवस ?

कछुआ हर कहिस — “नागराजा । जइसन तूंहर मितान कऊआ हवे। उसने मोर मितान ए मनिसे हर हवे। एहर मोला मितान बनाइस आहाय । मोला बासी खवाइस आहाय । मोला अपन पगरी में जगहा देहिस आहाय । आज ये मनिसे कर जान जात आहाय तूंहर कारन । नागराजा अपन मितान कर जीभ कर सवाद कर कारन तूं मोर मितान ला डंस देहा अब ओकर
जान जात आहाय । जइसे-जइसे मोर मितान कर जान जाही। ओइसे–ओइसे मैं तूहंर मितान कर जान ला लेहूं“।
सरप हर घबराए के कहिस – “मोर मितान ला बचाए दे कछुआ मैं तोर मितान कर जहर ला उतार देत हवों”। अइसे कहिके सरप खोखरो ले बाहिर आइस अऊर धीरे-धीरे बिसनाथ कर जहर ला उतारेक लागिस ।
जइसे-जइसे जहर उतरेक लागिस तइसे-तइसे बिसनाथ ला होस आएक लागीस । होस में आय के बिसनाथ हर कहिस – “हे राम । बहुत गहिर नींद में सूते रहें” ।
“अइसन नींद में तूहंर बइरी घाला मन झिन सूतें मितान । “-कछुआ हर कहिस ।
“मोला का होय रहिस” ? – बिसनाथ हर पुछिस ।
कछुआ हर कहिस – “ओ बात ला पीछू बताहूं”। अऊर एकिचधार कऊआ कर नरेटी ला अंइठ देहिस। कऊआ फड़फड़ाय के मर गइस ।
कऊआ कर मरते कछुआ हर कहिस – “मितान तुहंर आगू में बिसधर रेंगत आहाय । उठावा लाठी अऊर ओकर परान ले लेवा”। बिसनाथ लाठी उठाइस अऊर सरप कर जान ले लेहिस। आज कछुआ कर कारन बिसनाथ कर जान बांचिस। बिसनाथ हर कहिस – ” मितान तोर उपकार कर बदला जीनगी भर नी चुकाय सकों । बोल तें कहां रहे चाहत हवस में उहें तोला छोड़ देहूं” ।
कछुआ कहिस – “अपन घर हर सबला प्यारा होथे मितान। मोला ओही नरवा में छोड़ देवा। मोर परिवार संग मोला मिलाय देवा। मै। उन्हे खुस रहूं’। बिसनाथ उसने करीस । अऊर अपन गांव वापिस आय गइस ।
परदेस में भटके ले अच्छा हवे कि अपन दू छीना खेत कर सेवा करों।
सूखा-रूखा खाए के अपन॑ घर में आराम करों ।
बिसनाथ ला पाये के महात्मा घला ढेरे खुस होइन ।

– सुदामा राम गुप्‍ता
मुकाम /पोस्ट-बतौली
जिला-सरगुजा, छत्तीसगढ़
मो. 94255-85193