सरगुजिहा लोक गीत – जाड़ा

हाय रे जाड़ा
हाय रे जाड़ा
ऐसो एतेक बैरी हो गे
ठिठुरत हवे हाड़ा
हाय रे……..

भिनसारे गोदरी में दुबके सूते रहथो,
कईसे उसरी काम बूता मने मने कहथो,
अकड़ल हाथे हाय रे दाई
कईसे झाड़ो,आंगन बाड़ा
हाय……….

हालू हालू उसरा के बूता घामा तापत रहथों,
जीते जायल घामा उते खटिया खींचत रहथों,
छिंड़हा कांचे जाथो त पानी हर लागे कारा
हाय रे………।

जईसे जईसे सांझ होते थर थर कांपे लगथन,
गोरसी ला जराए के जम्मो लिघे बईठे रहथन,
दोना पतरी खिलत रहथों कोन मांजे भाड़ा
हाय रे जाड़ा
हाय रे………

मधु गुप्ता “महक”

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