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Sargujiha कविता

सरगुजिहा व्‍यंग्‍य कबिता: लचारी

जीना दूभर होइस, अटकिस खाली मांस है।
बेटा अठवीं फेल, बहुरिया सुनथों बी.ए. पास है।।

झाडू-पोंछा बेटा करथे, घर कर भरथे पानी।
पढ़ल-लिखल मन अइसन होथें, हम भुच्चड़ का जानी।
दाई-दाउ मन पखना लागें, देवता ओकर सास है।
बेटा अठवीं फेल, बहुरिया सुनथों बी.ए. पास है।।

जबले घरे बहुरिया आइस, टी.बी. ला नइ छोड़े।
ओकर आगू नाचत रथे, बेटा एगो गोड़े।
रोज तिहार हवे उनकर बर, हम्मर बरे उपास है।
बेटा अठवीं फेल, बहुरिया सुनथों बी.ए. पास है।।

होत बिआह बदल गे बेटा, देथे हमला गारी।
अप्पन घर हर भुतहा, अउ मंदिर ससुरारी।
भाई-भाई में झगरा होथे, सारा ओकर खास है।
बेटा अठवीं फेल, बहुरिया सुनथों बी.ए. पास है।।

पाले-पोसे घिन हम देखेन, सपना गाड़ा-गाड़ा। .
होत बिआह बदल गे बेटा, अइसन पढ़िस पहाड़ा।
हमर सिखावन ला अब कहथें, दूनों झन बकवास है।
बेटा अठवीं फेल, बहुरिया सुनथों बी.ए. पास है।।

समधी बोले रहिस ये बेटी, जेकर घर में जाही।
ओकर घर ला चारेच दिन में, समधी सरग बनाही।
जीते-जीयत सरग में पहुंचब, ये हमला बिसवास है।
बेटा अठवीं फेल, बहुरिया सुनथों बी.ए. पास है।।

रामप्यारे रसिक