गाँव म गरीब जनता खातिर चलाये जात योजना मन उपर आधारित
गाँव गाँव आज शहर लागे,
चकचक ले चारो डहर लागे !
फूलत हे फूल मोंगरा विकास के,
ओलकी कोलकी महर महर लागे !
जगावत हे भाग अमृत बनके ,
जे गरीबी हमला जहर लागे !
संसो दुरियागे देख नवा घरौंदा,
खदर जेमा ढांके हर बछर लागे !
काया पलटत जमाना हे ललित,
सांगर मोंगर होगे जे दुबर लागे!
रद्दा गढ़त अब बिन संगवारी के,
रेंगत अकेल्ला जिंहा डर डर लागे !
घात सुग्घर निखरत रूप भूंइया ला,
देखव बने , झन काकरो नजर लागे !
ललित नागेश
बहेराभांठा (छुरा) 493996