गीत

सिवनी (नैला) के चैत नवरातरी के संतोषी मेला

छत्तीसगढ़ म मेला ह हमर समाज संसकिरिती म रचे-बसे हावय जेखर कारन येखर हमर जीनगी म अब्बडेच़ महत्तम रखथे। माघी पून्नी ले जम्मों छत्तीसगढ़ म मेला भराये के सुरू हो जाथे। चाहे वोह राजीम के मेला हो, चाहे शिवरीनारायन के मेला, चाहे कोरबा के कंनकी मेला, चाहे कौड़िया (सीपत) के मेला, चाहे पीथमपुर (चांपा), चाहे सिवनी (नैला) जांजगीर के संतोषी मेला होवय।
मेला के मतलब मोर अनुसार मेला-मिलाप एक माध्यम हावय। काबर के मेला बर गांव के छोटे से छोटे किसान से ले के बड़का किसान मन तक अपन बेटी मन ल, अपन सगे-संबंधी मन ल मेला बर लेहे-नेवते जाथे। अउ एक तरह से मेला ह छोटे-बड़े के भेद-भाव घलो ल मिटाय के सुघ्घर माघ्यम हाबय। मेला एक बछर म एकेच बार लगथे। एकर कारन एकर आउ जादा महत्तम हाबय। छत्तीसगढ़ म मेला उहे लगथे जहां भगवान के प्रति विशेष महत्तम अस्थान हाबय। यानि के जिहां देवता विराजित है उहां बने भक्ति-भाव से चाहे ओ हा तीन दिन के मेला होवय, चाहे पांच दिन के, चाहे नव दिन के। जेतका दिन के मेला ओ गांव के लोगन मन निश्चित करे हाबय तकता दिन तक मेला ह भराथे। ये सब मेला म सिवनी(नैला) के संतोषी मेला के अलगेच अस्थान हाबय अउ शायद पूरा छत्तीसगढ़ म ये मेला ह अपन अलग रूप म पहिचाने जाथे काबर के ए मेला ह चैत नवरात्रि से सुरू हो के नवमीं तक रईथे। अउ माता संतोषी के विधि-विधान से पूजा पाठ करे जाथे। साथ ही मेला भराथे जेमा लोगन मन माता के दर्शन के बाद घूमे जाथे अउ अपन-अपन जरूरत के हिसाब से समान घलो लेथे। लोगन मन सादी-बिहाव के खरीददारी घलो इहां ले करथे। आनी-बानी के खाये के जिनीस जेमा छत्तीसगढ़ के परसिध उखरा-चना के संगे-संग चना चरपटी खाय के अगलेच मजा हावय। एखसंग झूला अउ टूरिंग टाकिज घलों मनोरंजन के साधन रईथे।
जिला मुख्यालय जांजगीर-चांपा ले मात्र 6 कि.मी. दुरिहा म नैला-बलउदा रद्दा के बीच म पड़़ते मॉं संतोषी के धाम सिवनी (नैला) मोर ममा दाई के गांव। जहां विराजे हे मॉं संतोषी। हिंदू नव बछर चैइत नवरात्रि म मोर जानत म छत्तीसगढ़ भर म केवल इहे के संतोषी मंदिर म नव दिन तक जोत जलथे अउ मेला भी भराथे अउ कुआंर नवरात्रि घलो म जोत जलथे। मॉं संतोषी के परति मनखेमन के मन म अपार आस्था हाबय। तभे तो इहां दूरिहा-दूरिहा ले मनखे मन अपन मनो कामना ले के आथे अउ ओमन के मनोकामना मॉं ह जरूर पूरा करथे मॉं संतोषी ह। भक्त मन भूईयां नापत इहां पहुंचते। पिछू पैतालीस बछर ले इहां मेला भरात आवथे। मंदिर के भीतर म मर्ॉ संतोषी के मूरती हावय अऊ ओखर चारो मुड़ा म नव दुर्गा के मूरती भी अस्थापित हाबय। मंदिर के दुआरी म बजरंग बली के मूरती हे अउ मंदिर के सामने म बिसालकाय कालभैरव जी के मूरती हावय।

प्रदीप कुमार राठौर ’अटल’
ब्लाक कालोनी जांजगीर
जिला-जांजगीर चांपा
(छत्तीसगढ़)

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