हरि ठाकुर के ‘सुराज के पहिली संग्राम’ के अंस

सब ले जुन्ना देश हमर
धरम अउर संस्कृति के घर
राम कृष्ण अवतरिन हइहां
सरग बनाइन हमर भुयाँ।

सुग्घर सबले छत्तिसगढ़
कौशिल्या माता के घर
ओखर सुमरन कर परनान
जनम दिहे तैं राजा राम।

कलजुग मां जब पाप बढ़िस
बेरा उतरिस, रात चढ़िस
राजा-परजा दुनो निबल
परिन गुलामी के दल दल।

बनिया बन आइन अंगरेज
मेटिन धरम, नेम, परहेज
देस हमर सुख के सागर
बनिस पाप-दुख के गागर।

करिन फिरंगी छल-बल-कल
फूट डार के करिन निबल
बढ़िन फिरंगी पांव पसार
हमरे खा के देइन डकार।

करिन देस के सत्यानास
भारत माता भइस उदास
करिन फिरंगी अत्याचार
मचिस देस में हाहाकार।

हमर देस बन गे कंगाल
बनिन फिरंगी मालामाल
आइस सन्‌ सन्‍्तावन साल
देस धरिस रूप बिकराल।

बढ़िन वीर धर क्रांति मसाल
अठरा सौ सन्तावन साल
उठिस देस मा बड़ भूचाल
सुनौ वो ही गदर के हाल।

उठिन देस के बीर जवान
जुद्ध करे बर मन मा ठान
आगू बढ़ के छाती तान
करिन बड़े-बड़े बलिदान।

भड़किस सेना में अंगार
बाजे लगिस तोप तलवार
निकलिस वीर मराठा झुंड
गिरिस फिरंगी मन के मुंड।

रणचण्डी झांसी रानी
बोलिस आगी अस बानी
जफर बहादुर के तलवार
तात्या टोपे के ललकार।

धधके लगिस बीर बंगाल
दिल्ली के रंग होगे लाल
माचिस रकत के होले-फाग
आजादी के पहली राग।

कॉपिस अँगरेजी सासन
डोलिस लंदन के आसन
टूट परिन जब हमर जवान
भगिन फिरंगी ले के प्रान।

छत्तीसगढ़ भी ठोकिस ताल
अठरा सौ सन्‍्तावन साल
गरजिस वीर नारायन सिंह
मेटिस सबे फिरंगी चिन्ह।

ताल ठोंक के छाती तान
बढ़िस नरायन सिंह जवान
लिहिस हाथ में जब बंदूक
करिस निसाना वो अचूक।

इलियट रहिस कमीश्नर बंड
करिस तियार फौज परचंड
लेके स्मिथ करिस पयान
पहुँचिस जंगल सोनाखान।

धन-धन सोनाखान जिहाँ
जनमिम नरायन सिंह उहाँ
सेना देख फिरंगी तीर
मातिस खूब नारायण वीर।

दन दन देइस गोली दाग
मचिस लहू के होले-फाग
मचिस जुद्ध अइसन परचंड
अंगरेजन के घटिस घमंड।

रिहिस देवरी के जिमिदार
बनिस देस बर वो गद्दार
करिस फिरंगी मन के संग
बन गे ओखर लहू निरंग।

घिरिस नरायन सिंह जवान
तबले करिस जुद्ध घमसान
काँपे लगिस भुंया-आकास
बिछिस फिरंगी मन के लास।

आखिर घिरिस नरायन वीर
पलटिस पासा छूटिस तीर
स्मिथ नरायन सिंह ला बांध
रायपुर जेल मा देइन धांध।

आजादी बर बढ़ बढ़ के
लड़िस नरायन सिंह अड़ के
हँसत हँसत फाँसी चढ़गे
मर के नांव अमर करगे।

कर भारत माँ के जयकार
पहिरिन फाँसी के गलहार
कतको करिन वीर बलिदान
वो सहीद मन ला परनाम।

हरि ठाकुर

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