गोविन्द राव विट्ठल के छत्तीसगढ़ी नाग-लीला के अंश

सब संग्रवारी मन सोचे लगिन कि, पूक, कोन मेर खेलबो, विचार जमगे। जमुना के चातर कछार में, जाके खेल मचाई। दुरिहा के दुरिहा है अउ, लकठा के लकठा भाई।। केरा ला शक्कर, पागे अस, सुनिन बात संगवारी। कृष्ण चन्द्र ला आगू करके, चलिन बजावत तारी।। धुंघरू वाला झुलुप खांघ ले, मुकुट, मोर के पाँखी। केसर चन्दन माथर में खौरे, नवा कवंल अस आंखी।। करन के कुंडल छू छू जावै, गोल गाल ला पाके। चन्दा किरना साही मुसकी, भरें ओंट में आके।। हाथ में बंसुरी पांव में पैजन, गला भरे माला…

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