भईया, बड़ कीमत के बोल। पानी हे अनमोल॥ पानी ले हे ये जीवन। नदिया, सागर, परबत, बन॥ पानी ले जिनगी हरियर हे। खुसियाली घर-घर हे॥ कवन बताही येकर मोल। पानी हे अनमोल॥ जीव जगत सबके अधार। पानी ले ये सब संसार॥ हंसी गोठ सब के सार। येकर महिमा अपरम्पार॥ बचावव बूंद-बूंद तौल। पानी हे अनमोल॥ कटगे जंगल, कमती होगे बरसा। जीव-जंतु मनखे के होगे दुरदसा॥ सही कर व येकर उपयोग। जंगल, झाड़ी, परकीरति संजोग॥ चेत रे मनखे, आंखी खोल। पानी हे अनमोल॥ आनंद तिवारी पौराणिक महासमुंद
Read MoreTag: Aanad Tiwari Pauranik
फागुन के दोहा
कहूं नगाड़ा थाप हे, कहूं फाग संग ताल। मेंहदी रचे हाथ म, अबीर, रंग, गुलाल॥अमरईया कोइली कुहकय, मऊहा टपके बन।पिंयर सरसों गंध होय मतौना मन॥पिचकारी धर के दऊड़य, रंग डारय बिरिजराज।उड़य रंग बौछार, सब भूलिन सरम अऊ लाज॥मोर पिया परदेस बसे, बीच म नदिया, पहाड़।मिलन के कोनो आस नहीं, बन, सागर, जंगल, झाड़॥जमो रंग कांचा जग म, परेम के रंग हे पक्का।लागय रंग चटख, नइ घुलय, बाकी रंग हे कांचा॥गोंदा, मोंगरा, फुलवारी महकै झूमय मन के मंजूर।अन्तस के नइये दूरी, तैं आबे, संगी जरूर॥लाल, पिंयर, हरियर रंग, रंग ले तन…
Read Moreलहुटती बसंत म खिलिस गुलमोहर : कहिनी
स्वाति ह मां ल पोटार के रोय लगिस। थोरिक बेरा म अलग होके कथे। मां मेंहा तोर दुख ल नइ देख सकंव। मेंहा तोर बेटा अंव। तोर पीरा तोर दुख अउ पहार कस बिपत ल समझथंव। बाबूजी ह अब कभू नइ लहुटय। ये जिनगी ह सिरिफ सुरता म नइ कटय ओ अम्मा। जिनगी म सबो ल हर उमर म कोनो साथी के सहारा के जरूरत परथे। जिनगी के एक-एक छन सहारा ह भगवान के दे हुए वरदान ये। ये ल हांसे जिए बर चाही। तैंहा परकास अंकल ल अपन साथी…
Read Moreहीरानंद सच्चिदानंद वात्सायन अज्ञेय के तीन कविता
सांपसांप! तोला सऊर अभी ले नई आईससहर म बसे के तौर नई आईसपूछत हंव एक ठन बात-जवाब देबे?त कइसे सीखे डसे बर-जहर कहां पाये? पुलजोन मन पुल बनाहींवो मन सिरतौन पाछू रहिं जाहींनहक डारही सेनारावन ह मरही जीत जाही राम हजोन मन बनईया रहिनवो मन बेन्दरा कहाहीं। बिहनिया जागेंव त…बिहनिया जागेंव त घाम बगर गे रिहिसअऊ एक ठन चिरई ह अभीच्चे गीत गावत रिहिस।मेंहा घाम ले कहेंव, मोला थोरिक गरमी देबे का उधार?चिरई ले केहेंव तोर गुरतुर बानी थोरिक उधार देबे का?कांदी के हरियर पाती ले पूछेंव- थोरिक हरियर सुघरई…
Read Moreगोरसी
अघन पूस के जाड़ तन ल कंपाथे। गोरसी के आंच ह तभे सुहाथे॥ हवा ह डोलय सुरूर-सुरूर। पतई पाना कांपय फुरूर-फुरूर॥ रुस-रुस लागय पातर गुलाबी घाम। जूड़ पानी छुए ले, कनकनावत हे चाम॥ लईका, सियान, जवान सबो मन भाथे। गोरसी के आंच ह तभे सुहाथे॥ गरीब बर नइए बने ओढ़ना- बिछाना। दांत किटकिटाये गा, नइए ठिकाना॥ छेना, भूंसा धरके, गोरसी ल धुक दे। फूंकनी म थोरिक के फूंक दे॥ येखरे भरोसा सुग्घर नींद आथे। गोरसी के आंच ह तभे सुहाथे॥ पताल भांटा येखर पलपला में उसन ले। गरम-गरम चहा इही…
Read Moreजाड़ के घाम
सुरूर-सुरूर हवा चलय, कांपय हाड़ चाम। अब्बड़ सुहाथे संगी, जाड़ के घाम॥ गोरसी के आगी ह रतिहा के हे संगी। ओढ़ना-जठना, गरीबहा बर तंगी॥ भुर्री अउ अंगेठा, अब सपना होगे भाई। लकड़ी अउ छेना बर, नई पुरय कमई॥ गरीबहा बर बदे हे, बिपत के नाम। अब्बड सुहाथे संगी, जाड़ के घाम॥ अंगाकर रोटी ल, चटनी के संग खाले। लाली चहा ल पी ले, गोठिया बता ले॥ पिड़हा म बइठ, अंगना म थोरिक। घाम ह लागय, रुस-रुस बड़ नीक॥ कुरिया अउ घर म नइए गा आराम। अब्बड़ सुहाथे संगी, जाड़ के…
Read Moreबाबागिरी
सावधान, बचके रहहू गा, साधू भेस म सैतान सिरी। चन्दन, दाढ़ी, जोगी बाना, चलावत हावयं बाबागिरी॥ बड़े-बड़े आसरम हे इंखर। चेली-चेली, कुकरम हे इंखर॥ सोना-चांदी, धन, दौलत हे। हवई जिहाज, कार दउड़त हे॥ माल-मलीदा, सान अउ सौकत, सबो मिलत हे फिरी। चन्दन, दाढ़ी, जोगी बाना, चलावत हावयं बाबगिरी॥ दिन म कीरतन, परबचन, बड़े-बड़े पंडाल। रतिहा दारू, बियर, मटन हे, झूमरत हे चंडाल॥ नाचयं आजू-बाजू सुग्घर टुरी जवान। पाप करम ल देख-देखके, अचंभा हे भगवान॥ पाप म्यूजिक म गावत हें ये वन, टू, थिरी। चन्दन, दाढ़ी, जोगी बाना, चलावत हावयं बाबगिरी॥…
Read Moreबरसा के बादर आ रे : कबिता
मयारू आंखी काजर कस छा रे।बरसा के बादर आ रे॥सुक्खा होगे तरिया, नरवा।बिन पानी के कुंआ, डबरा॥बियाकुल होगे जीव-परानी।सबो कहंय-कब बरसही पानी॥मोर मीत के केस छरिया रे।बरसा के बादर आ रे॥पंखा डोलावय हवा सरर-सरर।बरसे पानी झझर-झरर॥मेघ ह गरजय, घुमरय, बरसय।चिरई-चिरगुन, परानी मन हरसय॥मेघ-मल्हार तैं गा रे।बरसा के बादर आ रे॥सबके तन-मन ल जुड़ा दे।खेत-खार हरिया दे॥नदिया म धार बोहा दे।भुंइया ल हरियर रंग सजादे॥परब-तिहार ल ला रे।बरसा के बादर आ रे॥मयारू के गांव, अस्सी कोस नौ बासा।ऊंच-ऊंच डोंगरी, ऊंच अकासा॥सोर-संदेस के नइए ठिकाना।नइ होवय कभू आना-जाना॥घुमरत-घुमरत जाके तैं संदेसा ला…
Read Moreबरसा के बादर आ रे
मयारू आंखी काजर कस छा रे। बरसा के बादर आ रे॥ सुक्खा होगे तरिया, नरवा। बिन पानी के कुंआ, डबरा॥ बियाकुल होगे जीव-परानी। सबो कहंय-कब बरसही पानी॥ मोर मीत के केस छरिया रे। बरसा के बादर आ रे॥ पंखा डोलावय हवा सरर-सरर। बरसे पानी झझर-झरर॥ मेघ ह गरजय, घुमरय, बरसय। चिरई-चिरगुन, परानी मन हरसय॥ मेघ-मल्हार तैं गा रे। बरसा के बादर आ रे॥ सबके तन-मन ल जुड़ा दे। खेत-खार हरिया दे॥ नदिया म धार बोहा दे। भुंइया ल हरियर रंग सजादे॥ परब-तिहार ल ला रे। बरसा के बादर आ रे॥…
Read Moreकलजुगहा बेटा : नान्हे कहिनी
रतिहा के दस बजे के बेरा दसरी डोकरी के खैरपा ल कोनो लाठी मं ठठाइस अऊ जोर-जोर ले गारी देवत चिल्लाइस त बेचारी ह खटिया ले उठिस। खैरपा ल खोलिस, तभे ओखर जवान बेटा ह मन्द के नसा म गिरत-हपटत भीतरी आइस। बेटा के मुंह ह मंद के दुर्गन्ध म बस्सात रहय। बेटा ह चिल्लाइस ये दाई, मोला सौ रुपिया अभीच्चे दे, मोला खचित काम हे। दसरी डोकरी ह ओला गुस्सा म किहिस अरे नालायक, सबो जेवर-गहना ल जुआं, सराब म उड़ा दे हस। बहू ल घर ले भगा देहस…
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