मंजूरझाल : किताब कोठी

तीरथ बरथ छत्तीसगढ म, चारों धाम के महिमा अन्न-धन्न भंडार भरे, खान रतन के संग म पावन मन भावन जुग-जुग गुन गावा अंतस किथे लहुट-लहुट ईंहचे जनम धरि — गुरतुर भाखा छत्तीसगढी — दया-मया के बस्ती बसइया ल कहिथें छत्तीसगढिया । छत्तीसगढी हे गुरतुर भाखा, मनभावन ये बढिया ।। चुहुक-चुहुक कुसियार के रस म, जीभन जउन सुख । अड्डसन हे दुध भाखा मनखे के मान बढाथै ।। भूखन के हे भूख मिटइया अन्न म भरे जस हंड्रिया । छत्तीसगढी हे गुरतुर भाखा, मनभावन ये बढिया ।। कुरिया भीतर गोठियाथै जांता,…

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किताब कोठी : अंतस म माता मिनी

अंतस म माता मिनी छत्तीसगढी राज भासा आयोग के आर्थिक सहयोग ले परकाशित प्रकाशक वैभव प्रकाशन अमीनपारा चौक, पुरानी बस्ती रायपुर ( छत्तीसगढ) दूरभाष : 0771-4038958, मो. 94253-58748 ISBN-81-89244-27-2 आवरण सज्जा : कन्हैया प्रथम संस्करण : 2016 मूल्य : 100.00 रुपये कॉपी राइट : लेखकाधीन अंतस म माता मिनी ( जीवनी) “दु:ख हरनी सुख बंटोइया, आरूग मया छलकैया बनी मंदरस, फरी अंतस, मरजादा धन बतइया माथ म चंदन, चंदा बरन, सेत बसन चिन्हारी नाव व धराये मिनीमाता, छत्तीसगढ के महतारी” अनिल जाँगडे ग्राम- कुकुरदी, पो-जिला बलौदा बाजार-भाटापारा (छ.ग. )पिन 493332 मो.…

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छत्तीासगढ़ी म परथंम धर्म उपदेशक संत गुरू घासीदास

भारतीय इतिहास म 19वीं शताब्दी पुर्नजागरण के काल कहाथे। छत्तीासगढ़ म घलु इही काल के अलग पहिचान मिलथे। इतिहास कार मन के मुताबिक छत्तीिसगढ़ म कलचुरी राज 1000 ई. काल के तीर -तरवार ले सन् 1740 ई.तक माने जाथे। कलचुरी गोड़ राजा रहिस, येखर सेती छत्तीेसगढ़ के गाँव, कस्बा, डोगरी-पहाड़ म बसे लोगन म आज तलक गोड़ संस्कृति देखब म मिलथे। सन् 1740 म नागपुर के मराठा भास्कर पंत अपन सैनिक मन संग जुद्ध म कलचुरी राजा ल हराके सन् 1741म छत्तीासगढ़ ल हथियालिस तहां खुब्बेच लुटपाट अउ अइताचार करीन।…

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एकलव्य

हर जुग म होवत हे जनम एकलव्य के। होवत हे परछो गउ सुभाव के कटावत हे अंगठा एकलव्य के। हर जुग म हर जुग म रूढ़ीवादी जात-पात छुआछूत भारत माता के हीरा अस पूत कहावत हे जनम-जनम अछूत। हर जुग म आज इतिहास गवाह हे एकलव्य बर द्रोनाचार के मन म का बर दुराव हे? का हे दोस? नान्हे फूल के काबर ये दुसार? दलित माता के कोख ले जनमे हे न! अतकेच के गुनाहगार का इहि ये गुनाह? होवत हे हीनमान, अइताचार संत गुनी के भारत म बरन बेवस्था…

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छत्तीसगढ़ी लोक कला के धुरी ‘नाचा’

‘जुन्ना समय अउ अब के नाचा म अब्बड़ फरक होगे हे। जुन्ना नाचा कलाकार मन रुपिया-पइसा के जगह मान सम्मान बर नाचयं गावयं। गरीबी लाचारी के पीरा भुलाके कला साधना म लगे राहयं, कला के संग जिययं अऊ मरयं। आज काल में नाचा म दिखावा जादा होथे कला साधना कमतियागे। फिलिम के गाना संग भद्दापन के चलन बाढ़गे। येकरे सेती शिक्षित लोगन मन नाचा ल हीन भावना ले देखे ले धरलिन। गांव म सहर के रिवाज परेतिन असन पिछिया गे हे। गांव के अपन रीति रिवाज, संस्कार, वेशभूषा सब बदले-बदले…

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