मोर माटी के पीरा ल जानव रे संगी, छत्तीसगढ़िया अब तो जागव रे संगी। परदेशिया ल खदेड़व इँहा ले, बघवा असन दहाड़व रे,संगी। मोर माटी के पीरा ल जानव रे संगी छत्तीसगढ़ी भाखा ल आपन मानव रे संगी। दूसर के रददा म रेंगें ल छोडव, अपन रददा ल अपने बनाव रे संगी। छोड़ के अपन महतारी ल दुख म, दूसर राज झन जवव रे संगी। मोर महतारी के पीरा ल, जानव रे संगी। अपन महतारी भाखा ल, बगराव रे संगी। मोर माटी के चिन्हारी ल, अब झन मिटाव रे संगी,…
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माटी के महिमा हे करसि के ठंडा पानी
जइसे-जइसे महीना ह आघु बढ़त हे, वइसने गरमी ह अउ बाढ़त जात हे, गरमी ले बांचे के खातिर सब्बो मनखे ह किसिम-किसिम के उपाय करथे, काबर के अब्बड़ गरमी म रहे ले स्वास्थ जल्दी खराब होथे, फेर अइसे गरमी के बेरा म अपन स्वास्थ के बढ़ धियान रखे ल लगथे, काबर के येहि बेरा म सूर्य देव के किरपा अब्बड़ रहिथे सब्बो परानी जीव जगत बर। अउ सूर्य देव के किरपा ले कोनो नइ बचें अब्बो बर बराबर किरपा करथे सूर्य देव ह। वइसे गरमी के बेरा हो चाहे अउ…
Read Moreछतीसगढ़ी भाखा
जागव जी जवान, जागव जी किसान। छत्तीसगढ़ी भाखा ल, अपन मानव जी सियान। माटी के मया ल माटी बर बोहाव, छत्तीसगढ़ी भाखा ल, अपन करेजा म जनाव। महतारी के भुइँया, अपन छत्तीसगढ़ ल जानव आघु बढ़ा के येला,येखर मया ल पाव। जागव जी जवान, जागव जी किसान। अपन महतारी भाखा ल गोठियाव जी सियान। छत्तीसगढ़ीं दाई के कोरा म, मया अब्बड़ पाव। साँझ-बिहनिया दाई के सेवा म अपन जिनगी ल बनाव। अनिल कुमार पाली, तारबाहर बिलासपुर छत्तीसगढ़। प्रशिक्षण अधिकारी आई टी आई मगरलोड धमतरी। मो.न.-7722906664,7987766416
Read Moreछत्तीसगढ़ी बोलबो
मया के मधुरस करेजा म घोलबो, गुरतुर बोली छत्तीसगढ़ी ल बोलबो। भाखा हे मोर बड़ सुघ्घर-सुघ्घर। सारी जिनगी मिल-जुल के लिखबो, बोली हे हमर बढ़िया भाखा हे, गोठियाये के मन म बड़ अभिलासा हे। सारी जगहा अपन बोली-भाखा ल, बगराबो छत्तीसगढ़ी भाखा गोठियाबो। जुन्ना-नवा परंपरा ल अपनाबो, छत्तीसगढ़ी संस्कृरिति ल सब्बो ल जनाबो। संगी-जहुरिया संग छत्तीसगढ़ी गोठियाबो। अपन बोली भाखा ल अपनाबो। जोहार छत्तीसगढ़ के नारा सब्बो जगहा लगाबो, छत्तीसगढ़ी गोठियाबो, छत्तीसगढ़ी गोठियाबो। अनिल कुमार पाली, ‘जुगनी’ तारबाहर बिलासपुर छत्तीसगढ़। प्रशिक्षण अधिकारी आई टी आई मगरलोड धमतारी मो.न.-7722906664,7987766416 ईमेल:- anilpali635@gmail.com
Read Moreप्रभु हनुमान जइसे भगत बनना चाही
पूरा भारत देस के कोंटा-कोंटा म भगवान श्री राम के नाव हे अउ ओखर नाव के संगे-संग श्री राम जी के सबले बड़े भक्त हनुमान के नाव सब्बो कोती लेहे जाथे, जइसे श्री राम के बड़े भक्त भगवन हनुमान हवयं, वइसने भगत अउ कोनो अब ये दुनिया म नइ हो सके, हनुमान जी ह अपन भगवान राम के सेवा म अपन पूरा जीवन ल लगा दे रहिस हे, अउ अपन भगवान के बिना ओला अउ कोनो दूसर चीज के मोह माया नइ रहिस हे, काबर के जेकर तीर ओकर भगवान…
Read Moreमाटी के पीरा
मोर माटी के पीरा ल जानव जी। अपन बोली भाखा ल मानव जी। छत्तीसगढ़िया बोली भाखा ला। अपन जिनगी म उतारव जी। सब्बो छत्तीसगढ़ीया भाई, छत्तीसगढ़ी भाखा गोठियाव जी । हम अपनाबो ता सब अपनाही। अपन भाखा म गुरतुर गोठियाही। जान के माटी के मया ला। माटी के पीरा ला दुरिहा भगाही । मयारू हे मोर महतारी भाखा। ओखर मया म बोहाव जी। बन के नानकुं लइका कस। अपन महतारी के मया ल जानव जी। मोर माटी के पीरा ल जानव जी। महतारी भाखा ल गोठियाव जी। अनिल कुमार पाली…
Read Moreमोर महतारी
मोर महतारी बढ़ दुलारी, मया हे ओखर मोर बर भारी। अंचरा म रखे के मोला, झुलाथे मया के फुलवारी। महेकत रइथे मोर दाई के, घर अंगना अउ दुवारी।।। जग जानथे महतारी ह, होथे सब्बो ल प्यारी। कोरा म धर के लइका ल, जिनगी करथे उज्यारी। मोर महतारी बढ़ दुलारी, मया भरे हे ओखर म भारी। अनिल कुमार पाली तारबाहर बिलासपुर छत्तीसगढ़। प्रशिक्षण अधिकारी आई.टी.आई मगरलोड धमतरी। मो.न.-7987766416 ईमेल:- anilpali635@gmail.com [responsivevoice_button voice=”Hindi Female” buttontext=”ये रचना ला सुनव”]
Read Moreछत्तीसगढ़ी गीत-ग़ज़ल-छंद-कविता
होगे होरी तिहार होगे – होगे होरी के, तिहार गा। कखरो बदलिस न,आदत ब्यवहार गा। करु बोली मा,अउ केरवस रचगे। होरी के रंग हा, टोंटा मा फँसगे। दू गारी के जघा, देय अब चार गा। कखरो बदलिस न,आदत ब्यवहार गा। टेंड़गा रेंगइया हा,अउ टेंड़गा होगे। ददा – दाई ,नँगते दुख भोगे। अभो देखते वो , मुहूँ फार गा। कखरो बदलिस न,आदत ब्यवहार गा। पउवा पियइया हा,अध्धी गटक दिस। कुकरी खवइया हा,बोकरा पटक दिस। टोंटा के कोटा गय , जादा बाढ़ गा। कखरो बदलिस न,आदत ब्यवहार गा। घर मा खुसर के,बरा-भजिया…
Read Moreरंग डोरी होली
रंग डोरी-डार ले गोरी, मया पिरीत के संग म, आगे हे फागुन मोर नवा-नवा रंग म। झूमे हे कान्हा-राधा के संग म, मोर संग झुम ले तै, रंग के उमंग म। रंग ले भरे गोरी, तोर लाल-लाल गाल हे, होरी म माते, तोर रंग के कमाल हे। फ़ाग गए फगुनिया, जियरा बेहाल हे, रात भर बाजे नंगाडा, सुर अउ ताल हे। रंग म तै मात ले गोरी, रंग के तिहार हे, हरियर अउ लाल, तोर म दिखथे बवाल हे। रंग के तिहार, होली रंग के तिहार हे, नवा-नवा रंग म,…
Read Moreसिक्छा ऊपर भारी पड़े हे अंधबिस्वास
विकसित होत गांव-सहर म जतना तेजी ले सिक्छा ह आघु नई बढहे हे, तेखर ले जादा तेजी ले अंधबिस्वास के विकास होईस हे। सबले जादा हमर भारत देस म अंधबिस्वास के मानने वाला मनखे मन हवय। ओहु म अंधबिस्वास ल माने म अनपढ़ मनखे मन ले जादा पढ़े-लिखे मनखे मन मानथे। अउ बाबा-बइगा मनके झांसा म आके अपन बिसवास ल गवां डारथे। जुन्ना बेरा म जब मनखे मन मेर कुछु साधन बनेले नइ रहिस हे तब ग्यानी बाबा बइगा मनके तीर जाके ग्यान के बात सीखे ल मिलये, लेकिन अभी…
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