छन्द के बारे में जाने के पहिली थोरिक नान-नान बात के जानकारी होना जरूरी है जइसे अक्छर, बरन, यति, गति, मातरा, मातरा गिने के नियम , डाँड़ अउ चरन, सम चरन , बिसम चरन, गन . ये सबके बारे मा जानना घला जरूरी हे. त आवव ये बिसय मा थोरिक चर्चा करे जाये. आपमन जानत हौ कि छत्तीसगढ़ी भाखा हर पूरबी हिन्दी कहे जाथे. हिन्दी के लिपि देवनागरी आय अउ छत्तीसगढ़ी भाखा घला देवनागरी लिपि मा लिखे अउ पढ़े जाथे.जेखर बरनमाला मा स्वर अउ बियंजन रहिथे. ये बरन मन ला…
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छन्द के छ : दू आखर
सुग्घर कविता अउ गीत, चाहे हिन्दी के हो, चाहे छत्तीसगढ़ी के, सुन के मन के मँजूर मस्त होके नाचना सुरु कर देथे. इही मस्ती मा महूँ अलवा-जलवा कविता लिखे के उदीम कर डारेंव. नान्हेंपन ले साहित्यिक वातावरन मिलिस. कविता अउ गीत त जइसे जिनगी मा रच-बसगे. बाबूजी के ज्यादातर कविता छन्द मा लिखे गये हें ते पाय के मोरो रुझान छन्द बर होना सुभाविक हे. अलग-अलग छन्द के बारे मा जाने के, सीखे के अउ लिखे के बिचार करके दुरूग, भिलाई, रइपुर, बिलासपुर के किताब दुकान मन ला छान मारेंव…
Read Moreदेवारी तिहार के बधई
[bscolumns class=”one_half”] अँधियारी हारय सदा , राज करय उजियार देवारी मा तयँ दिया, मया-पिरित के बार || नान नान नोनी मनन, तरि नरि नाना गायँ सुआ-गीत मा नाच के, सबके मन हरसायँ || जुगुर-बुगुर दियना जरिस,सुटुर-सुटुर दिन रेंग जग्गू घर-मा फड़ जमिस, आज जुआ के नेंग || अरुण कुमार निगम http://mitanigoth.blogspot.in [/bscolumns][bscolumns class=”one_half_last_clear”](देवारी=दीवाली,तयँ=तुम,पिरित=प्रीत,नान नान=छोटी छोटी,नोनी=लड़कियाँ, “तरि नरि नाना”- छत्तीसगढ़ी के पारम्परिक सुआ गीत की प्रमुख पंक्तियाँ, जुगुर-बुगुर=जगमग जगमग,दियना=दिया/दीपक,जरिस=जले, सुटुर-सुटुर=जाने की एक अदा,दिन रेंग=चल दिए,फड़ जमिस=जुआ खेलने के लिए बैठक लगना,नेंग=रिवाज)देवारी (सं० दावाग्नि) कछारों में दिखाई देनेवाला लुक। छलावा। उदा०: जानहुँ…
Read Moreकवित्त
हमरेच खेत के वो चना ला उखनवाके हमरेच छानी-मा जी होरा भुँजवात हे अपन महल-मा वो बैठे-बैठे पगुरावै देखो घर-कुरिया हमर गुंगवात हे. जांगर अउ नांगर ला जाने नइ जिनगी-मा सफरी ला छीये नइ दूबराज खात हे असली सुराज के तो मँजा इहि मन पावैं सपना सुराज के हमन ला देखात हे.. अरुण कुमार निगम आदित्य नगर, दुर्ग [छत्तीसगढ़]
Read Moreहमर मया मा दू आखर हे
हमर मया मा दू आखर हे इही हमर चिन्हारी जी तुँहर प्रेम के ढ़ाई आखर ऊपर परिही भारी जी. हमर मया मा खोट नहीं हे सोना – चाँदी, नोट नहीं हे त्याग-तपस्या मूल मंत्र हे झूठ – लबारी गोठ नहीं हे अजमा के तुम हमर मया ला देखव तो संगवारी जी…… तुँहर प्रेम के ढ़ाई आखर ऊपर परिही भारी जी. तुँहर प्रेम बस सात जनम के मया जनम-जन्मांतर के प्रीत किये दु:ख होवे संगी मया मूल सुख-सागर के अपना के तुम हमर मया ला देखव प्रेम-पुजारी जी…… तुँहर प्रेम के…
Read Moreछत्तीसगढ़ी गज़ल : पीरा संग मया होगे
अइसन मिलिस मया सँग पीरा,पीरा सँग मया होगे.पथरा ला पूजत-पूजत मा,हिरदे मोर पथरा होगे. महूँ सजाये रहेंव नजर मा सीस महल के सपना ला ,अइसन टूटिस सीस महल के आँखी मोर अँधरा होगे. सोना चाँदी रूपया पइसा गाड़ी बंगला के आगू मया पिरित अउ नाता रिस्ताअब माटी – धुर्रा होगे. किरिया खाके कहे रहे तयं तोर संग जीना-मरना हे किरिया तोड़े ,सँग ला छोड़े आखिर तोला का होगे . जिनगानी ब्यौपार नहीं ये मया बिना कुछू सार नहींतोर बिना मनभाये- संगी जिनगानी बिरथा होगे. अरुण कुमार निगम आदित्य नगर,दुर्ग(छत्तीसगढ़)अरूण कुमार…
Read Moreचैत-नवरात म छत्तीसगढ़ी दोहा 6 : अरुण कुमार निगम
मात-पिता के मान हो, गुरु के हो सम्मान।मनखे बन मनखे जीये, सद्बुद्धि दे दान।। ओ मईया …… लोभ मोह हिंसा हटे, काम क्रोध मिट जाय।सतजुग आये लहुट के, अइसन कर तयं उपाय।। ओ मईया …… अनपूरना के वास हो, खेत खार खलिहान।कोन्हों लाँघन झन रहै, समृद्ध होय किसान।। ओ मईया …… तोर बसेरा कहाँ नहीं, कन-कन तहीं समाय।जउन निहारे भक्ति से, तोर दरसन फल पाय।। ओ मईया …… अँचरा मा ममता धरे, नैनंन धरे सनेह।बिन मांगे आसीस मिलय, शक्ति समाये देह।। ओ मईया …… कटय तोर सेवा करत, जिनगी के…
Read Moreचैत-नवरात म छत्तीसगढ़ी दोहा 5 : अरुण कुमार निगम
कहूँ नाच-गम्मत कहूँ, कवी-सम्मलेन होय। कहूँ संत-दरबार सजै, कहूँ मेर कीरतन होय।। ओ मईया …… सिद्धि पीठ, मंदिर-मंदिर, जले जंवारा जोत। जेकर दरसन मात्र ले, काज सुफल सब होत।। ओ मईया …… कई कोस पैदल चलयं, हँस-हँस चढ़यं पहार। मन मा भक्ति जगाय के, भक्तन पहुँचय दुवार।। ओ मईया …… कोन्हों राखयं मौन बरत, कोन्हों करयं उपास। माँ टोला अर्पित करयं, सरधा अउ बिस्वास।। ओ मईया …… भक्ति-भाव म डूब के, ज्योती-कलस जलायं। नर-नारी नव राती मा, मन वांछित फल पायं।। ओ मईया …… माता-सेवा जब सुनय, मन मा उठय…
Read Moreचैत-नवरात म छत्तीसगढ़ी दोहा 4 : अरुण कुमार निगम
बम्लेस्वरी बल दान दे, मयं बालक कमजोर। तोर किरपा मिल जाय तो, जिनगी होय अँजोर।। ओ मईया …… दंतेस्वरी के दुवार मा, पूरन मनोरथ होय। सुन के मयं चले आय हौं, मन-बिस्वास सँजोय।। ओ मईया …… अरज करवँ माँ सारदा, दे शक्ति के दान। तयं माता संसार के, हम सब तोर संतान।। ओ मईया …… सुमिरत हौं समलेश्वरी, संकट काट समूल। तोर चरण अर्पण करवँ, मन सरधा के फूल।। ओ मईया …… माँ अम्बे झुलना झुलय, अमरैय्या के छाँव। सरधा भक्ति माँ झूम के, झुला झुलावे गाँव।। ओ मईया ………
Read Moreचैत-नवरात म छत्तीसगढ़ी दोहा 3 : अरुण कुमार निगम
दुर्गा के दरबार मा, मिटे, दरद ,दुःख, क्लेस। महिमा गावें रात-दिन, ब्रम्हा बिस्नु महेस।। ओ मईया …… किरपा कर कात्यायिनी, मोला तहीं उबार। तोर सरन मा आये हौं, भाव-सागर कर पार।। ओ मईया …… हे महिसासुर मर्दिनी, सुन ले हमर गोहार। पाप मिटा अउ दूर कर, जग के अतियाचार।। ओ मईया …… दरसन दे जग-मोहिनी, मन परसन हो जाय। कट जाय कस्ट, कलेस अउ, सबके नैन जुड़ाय।। ओ मईया …… सुमिरौं तोरे नाम ला, जस गावौं दिन-रात। सर्व मंगला सीतला, सुख के कर बरसात।। ओ मईया …… शैल पुत्री सिंहवाहिनी,…
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