आंखी म नावा सपना बसा के रखवअपन घर ला घर तो बना के रखव।आंखी ले बढ़के कूछू नइये से जग माए-ला अपने मंजर ले बचा के रखव।सोवा परत म कहूं झनिच जाबे अंगना म चंदैनी सजा के रखव।बड़ कोंवर हे जीयरा दु:ख पाही गोरी के नजर ले लुका के रखव।दिन महीना बछर कभू मउका मिलहीअंतस ला अपन ठउका के रखव।बड़ दूरिहा हे- केई कोस हे रेंगनागोड़ ला फेर अपन थिरका के रखव। अशोक नारायण बंजारासिविल लाईन, बलौदाबाजार, जिला रायपुर मो. 94252 31018
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कहिनी – नवा अंजोर
नोनी मैं तो आन धर के छईहां नई खुंदे रहें, बुता करई तो जानते नई रहें। फेर मोर आदमी के बीते म जीनगी के ताना नना होगे। घर चलाय बर गहना गूंठा तक बेचागे। माय मइके मैं दिन के चार दिन बने राखही तहां…। नानमुन गोठ ह हूल मारे कस लागथे। एही पाय के मैं मिस्टरी बबा अउ रउतईन दाई संग-संग रांधे करे के काम करे लागे। कोनो काम छोटे बड़े नई होवै। काम करे म का के लाज। गांव के सियान मन कहिथें- परवार के बड़े अउ छोटे ल…
Read Moreनवा अंजोर कहिनी
नोनी मैं तो आन धर के छईहां नई खुंदे रहें, बुता करई तो जानते नई रहें। फेर मोर आदमी के बीते म जीनगी के ताना नना होगे। घर चलाय बर गहना गूंठा तक बेचागे। माय मइके मैं दिन के चार दिन बने राखही तहां…। नानमुन गोठ ह हूल मारे कस लागथे। एही पाय के मैं मिस्टरी बबा अउ रउतईन दाई संग-संग रांधे करे के काम करे लागे। कोनो काम छोटे बड़े नई होवै। काम करे म का के लाज। गांव के सियान मन कहिथें- परवार के बड़े अउ छोटे ल…
Read Moreकहिनी : आरो
‘भइया’ आखर ह अघ्घन ल हलोर देथे। ओखर हिरदे के तार झनझना जाथे। ये मनखे मोला का जान-सुन के चेता के गईस हे? का मैं ह चोर नो हँव। ओखर अंतस ले आरो आथे… नइ तैं ह चोर नइ अस। तैं कब ले चोर बन गए? अघ्घन कथे नई-नई मैं चोर हंव। अभी-अभी बने हंव। अ घ्घन ह ग्यारमी पढ़े रहीस। समझदार रहीस। फेर नारी परानी मन के तिरिक-तेरा अउ झगरा म अलगे हंड़िया कर डारे रहीस। एके म रहीन त ओला घर परिवार के जादा फिकिर नइ रहय। अब…
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