अशोक नारायण बंजारा के छत्‍तीसगढ़ी गज़ल

आंखी म नावा सपना बसा के रखवअपन घर ला घर तो बना के रखव।आंखी ले बढ़के कूछू नइये से जग माए-ला अपने मंजर ले बचा के रखव।सोवा परत म कहूं झनिच जाबे अंगना म चंदैनी सजा के रखव।बड़ कोंवर हे जीयरा दु:ख पाही गोरी के नजर ले लुका के रखव।दिन महीना बछर कभू मउका मिलहीअंतस ला अपन ठउका के रखव।बड़ दूरिहा हे- केई कोस हे रेंगनागोड़ ला फेर अपन थिरका के रखव। अशोक नारायण बंजारासिविल लाईन, बलौदाबाजार, जिला रायपुर मो. 94252 31018

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कहिनी – नवा अंजोर

नोनी मैं तो आन धर के छईहां नई खुंदे रहें, बुता करई तो जानते नई रहें। फेर मोर आदमी के बीते म जीनगी के ताना नना होगे। घर चलाय बर गहना गूंठा तक बेचागे। माय मइके मैं दिन के चार दिन बने राखही तहां…। नानमुन गोठ ह हूल मारे कस लागथे। एही पाय के मैं मिस्टरी बबा अउ रउतईन दाई संग-संग रांधे करे के काम करे लागे। कोनो काम छोटे बड़े नई होवै। काम करे म का के लाज। गांव के सियान मन कहिथें- परवार के बड़े अउ छोटे ल…

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नवा अंजोर कहिनी

नोनी मैं तो आन धर के छईहां नई खुंदे रहें, बुता करई तो जानते नई रहें। फेर मोर आदमी के बीते म जीनगी के ताना नना होगे। घर चलाय बर गहना गूंठा तक बेचागे। माय मइके मैं दिन के चार दिन बने राखही तहां…। नानमुन गोठ ह हूल मारे कस लागथे। एही पाय के मैं मिस्टरी बबा अउ रउतईन दाई संग-संग रांधे करे के काम करे लागे। कोनो काम छोटे बड़े नई होवै। काम करे म का के लाज। गांव के सियान मन कहिथें- परवार के बड़े अउ छोटे ल…

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कहिनी : आरो

‘भइया’ आखर ह अघ्घन ल हलोर देथे। ओखर हिरदे के तार झनझना जाथे। ये मनखे मोला का जान-सुन के चेता के गईस हे? का मैं ह चोर नो हँव। ओखर अंतस ले आरो आथे… नइ तैं ह चोर नइ अस। तैं कब ले चोर बन गए? अघ्घन कथे नई-नई मैं चोर हंव। अभी-अभी बने हंव। अ घ्घन ह ग्यारमी पढ़े रहीस। समझदार रहीस। फेर नारी परानी मन के तिरिक-तेरा अउ झगरा म अलगे हंड़िया कर डारे रहीस। एके म रहीन त ओला घर परिवार के जादा फिकिर नइ रहय। अब…

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