चुपरनहा साबुन

येदे अहि नाहकिस हे तउने देवारी फर्रा के गोठ आए बड़ दिन म अपन गाँव गए रहेंव, जम्मे जुन्ना संगवारी मन सो भेंट होए रहिस, गोठ बात म कतका बेर रात पहागे जाने नई पायेन| बिहनिया होईस तंहा चला तरिया जाबो बड़ दिन हो गए तरिया म नहाय नई हन, जमे संगवारी मन ला उनकर घर ले चला न कतका बेरा जाहा म जाहा त घटौन्धा म बैठे नई पाहा, तभे टेटका ह घर के भीतरी ले चिचिया के कहत हे तैं चल ना मै ह गरुआ ल ठोकान म…

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