जाड़ मा हाथ पांव चरका फाटथे

सुर सुर सुर पुरवईया चले, रूख राई हालत हे।पूस के महीना कथरी, कमरा काम नई आवते॥सुटुर-सुटुर हवा मा पुटुर-पुटुर पोटा कांपत हे।पानी ला देख के जर जुड़हा ह भागत हे॥ब्यारा मा दौंरी बेलन के आवाज ह सुनावत हे।गोरसी भूर्री के मजा मनखे जम्मो उठावत हे॥खाय-पिये के कमी नईए लोटा-लोटा चाय ढरकावत हे।हरियर साग-भाजी ल मन भर झड़कावत हे॥पताल के फतका धनिया संग मजा आवत हे।मेथी के फोरन मा सब्जी अब्बड़ ममहावत हे।स्वास दमा में खांस-खांस के बिमरहा अकबकावत हे।सरसों तेल ल हांथ-पांव मा उत्ता धुर्रा लगावत हे॥गरीब ल कोन कहे…

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