गुरू जी अउ नाँग देवता के पीरा

आज बड़े मुंदरहा गुरू जी के नींद उचटगे। अलथी-कलथी देवत बिहिनिया होगे। जइसे कुकरा बासिस, गुरू जी हर रटपट उठ के तियार होय ल लगिस ”अइसे तो बड़े मुंदारहा ले गुरू जी हर कभू नई उठे सूरूज देव जब अगास में चढ़ जाथे तब इंकर बिहिनिया होथे?” अइसने सोंचत मास्टरिन हर ओला पूछ पारिस। ”आज का हो गे हे, बड़े बिहिनिया ले लकर-धकर तियार होवत हो?” मास्टरिन के सवाल ल सुन के गुरू जी हर अकबका गे। ओहर कहिस- ”तोला नइ मालूम का, आज 5 सितंबर हे?” ”5 सितंबर हे…

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भाईचारा अउ शांति के संदेश देथे ईद-उल-फितर

रोजा रखना फाका रखना नो हे, बल्कि येमा अल्लाह के अराधना, लोगन ले सद् बेवहार करना अउ गुनाह ले बचे के भाव हे। येमा अहसास हे कि गरीब मनखे मन कोन तरह ले भूख-पियास म सही के जिनगी बिताथे। ये भाव हर मनखे ल मनखे बने रहे के संदेश देथे। रोजा हर समे मन म शुभ-विचार देथे। सब के भीतर मानवता के भाव जगाथे अउ जीवन के उध्दार करथे। रोजा कोनो प्रक्रिया नो हे बल्कि ये हर सनमार्ग म जाय के बिधि आय। सबो धरम के परब अउ तिहार मन…

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नवगीत : गाँव हवे

तरिया-नरवा, घाट-घटौदा, सुग्घर बर के छाँव हवे हाँसत-कुलकत दिखथे मनखे अइसन सुग्घर गाँव हवे। खेत-खार हे हरियर-हरियर सुग्घर बखरी-बारी हे लइका मन हे फूल सरीखे घर-द्वार कियाँरी हे। मिहनत करे गजब किसान चिखला बुड़े पाँव हवे। हँसी-ठिठोली हम जोली संग गाये गीत ददरिया कौनो दिखथे गोरा-नारा कौनो दिखथे करिया। सुख-दुख हावै गंगा-जमुना मया-पिरित ठाँव-ठाँव हवे। जात-धरम के भेद भुला के सब संग मीत-मितानी हे सरमरस बन के जीना-मरना गाँव के सुग्घर कहानी हे। बड़े बिहनिया चिरई ह गाथे अउ कँऊवा के काँव हवे। –बलदाऊ राम साहू

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छत्तीसगढ़ी ग़ज़ल : मितानी

इही ल कहिथे मितानी संगी बनथे जउन ह  छानी  संगी। दुख के घड़ी म आँसू पोंछय ओकर गजब कहानी  संगी। अनीत-रद्दा म जब हम रेंगन कहिथे करु-करु बानी  संगी। झन राहय टुटहा कुरिया  फेर राहय गजब सुभिमानी  संगी। जिनगी म कतको बिपत आये करय  झन  ओ  नदानी  संगी। बलदाऊ राम साहू  9407650458

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छत्तीसगढ़ी ग़ज़ल : सत्ता धारी

जउन  हर  सत्ता  धारी  हे। उही  मन  तो   बैपारी   हे। जिनकर डमरु बजात हावै, सही  मा  ओ  ह  मदारी हे। बिरथा  बात  मुँहू  म आथे, उही  ला  कहिथे  गारी  हे। जउन   हर  पी  माते  हावै उनकर घर  म  कलारी  हे। दुरपती ला सरबस  हारिन, उही मन सच म  जुवारी हे। कलारी=शराब की दुकान –बलदाऊ राम साहू

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छत्तीसगढ़ी ग़ज़ल : कइसे मा दिन बढ़िया आही

कइसे मा दिन बढ़िया आही। कइसे   रतिहा  अब  पहाही। गाए बर  ओला  आय  नहीं, कइसे ओ हर ताल मिलाही। बिन सोचे काम जउन हर करही, ओ हर पाछू  बड़  पछताही। अब तो  मनखे  रक्सा  बनगे, मनखे के जस कौन ह  गाही। साधु के संग जउन हर करही, ओ मनखे हर सरग म  जाही। पखरा पूजे  म  क  होवत  हे, मन पूजौ जिनगी  तर  जाही। ‘बरस’ बात ला सुन  लाबे  तैं, आज नहीं तब  काली  जाही। रतिहा =रात, पखरा पत्थर, काली=कल। –बलदाऊ राम साहू

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छत्तीसगढ़ी ग़ज़ल

झन फँसबे माया के जाल, सब  के  हावै  एके  हाल। कतको   तैं   पुन   कमाले, एक दिन अही तोरो काल। कौनो   इहाँ  नइ  बाँचे  हे, बड़का हावै जम के गाल। धन-दौलत  पूछत हे कौन, जाना हे  बन  के  कंगाल। कौन देखे  हे  सरग-नरक, पूछौ तुम मन नवा सवाल। अंत समे मा पूछ  ही कौन, कतका हावै तोर कर माल। ‘बरस‘ कहत हे सोझ-सोझ, नइ  हे तुँहर  कौनो  लेवाल। जम=यम,कतका=कितना, लेवाल=खरीददार, सोझ-सोझ=सीधा-सीधा, तँहर=तुम्हारे। –बलदाऊ राम साहू 

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नवगीत छत्तीसगढ़ी

जावन दे तैं घर छोड़ दे नोनी अब तो मोला जावन दे तैं घर। छेरी-पटरू लुलवावत होही बिन चारा-पानी के कब तक हम गोठियायवत रहिबोन कहनी अपन जवानी के । अभी उमर कचलोईहा हावय मिलबोन आगू बछर। खेत-खार बारी-बखरी के करना हे तइयारी बईठाँगूर, कमचोरहा कही के देथे दाई हर गारी। मिहनत कर के चढ़बोन नसैनी तब जाबोन उप्पर । हरहिन्छा जीनगी जीये बर जतन करे बर परही सोच बिचार के काम करे मा मन के दुविधा टरही । बिन नेत के छवावय नही छानी के खदर । 2. सावन…

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छत्तीसगढ़ म जनचेतना के उन्नायक संत गुरु घासीदास

संत परंपरा के मनखे मन जन-चेतना के बिकास म अपन योगदान दे के समाज ल एक नवा दिसा देथे। समाज में अइसे कतको बिसगति समा जाथे, जोन ह समाज ल आगू नइ बढ़न दे। धीरे-धीरे समाज म एक जड़ता आ जाथे। आम मनखे मन ये जड़ता ल अपन जीवन म अपना लेथे अउ रूढ़ता के कारण एला संस्कृति के हिस्सा मान बइठथे, परुं जोन मनखे मन भीतरी म आत्म-चेतना होथे, वो हा ये जड़ता ल टोरे के अपन बिचार समाज ल देथे। समाज ह कभू नवा बिचार ल सोझे नइ…

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छत्तीसगढ़ी बाल गीत

सपना कहाँ-कहाँ ले आथे सपना। झुलना घलो झुलाथे सपना। छीन म ओ ह पहाड़ चढ़ाथे, नदिया मा तँऊराथे सपना। जंगल -झाड़ी म किंजारथे, परी देस ले जा जाथे सपना। नाता-रिस्ता के घर ले जा के, सब संग भेंट करथे सपना। कभू हँसाथे बात-बात मा, कभू – कभू रोवाथे सपना। कभू ये हर नइ होवै सच, बस, हमला भरमाथे सपन। -बलदाऊ राम साहू

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