अपनी बात साहित्य में गज़़ल का अपना एक विशिष्ट स्थान है। उर्दू साहित्य से चल कर आई यह विधा हिंदी व लोकभाषा के साहित्यकारों को भी लुभा रही है। गज़़ल केवल भाव की कलात्मक अभिव्यक्ति मात्र नहीं है, बल्कि यह जीवन के सभी पक्षों को स्पर्श करती चलती है। सामाजिक सरोकारों के अतिरिक्त युगीन चेतना विकसित करने का भी यह एक सशक्त माध्यम है। निश्चय ही परंपरावादी विद्वानों ने गज़़ल के संबंध में कहा है कि गज़़ल औरतों से या औरतों के बारे में बातचीत करना है,परंतु वर्तमान परिप्रेक्ष्य में…
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छत्तीसगढ़ी गज़ल
एक बेर मदिरालय मा, आ जातेस उप्पर वाले। दरुहा मन ल बइठ के तैं समझातेस उप्पर वाले। जिनगी के बिस्वास गँवागे ऊँकर मन म लागत हे, मिल-बइठ के अंतस मा,भाव जगातेस उप्पर वाले। हरहिंसा जिनगी जीये के भाव कहाँ समझथे ओमन, सुख-दुख संग जीये के तैं आस बँधातेस उप्पर वाले। तँही हर डोंगहार अउ डोगा के चतवार तँही हस, बुड़त मनखे ला तैं हर, पार लगातेस उप्पर वाले। दरुहा =शराबी, गँवागे =गुम गया, हरहिंसा =निश्चिंत; चतवार=पतवार, हस= हो, डोंगहार =नावीक, डोंगा= नाव, बुड़त =डूबते हुए। बलदाऊ राम साहू
Read Moreअपन-अपन भेद कहौ, भैरा मन के कान मा
अपन-अपन भेद कहौ, भैरा मन के कान मा। जम्मो जिनिस रख देवौ, ओ टुटहा मकान मा। झूठ – लबारी के इहाँ नाता अउ रिस्ता हे, गुरुतुर-गुरुतुर गोठियावौ,अपन तुम जबान मा। थूँके-थूँक म चुरत हे, नेता मन के बरा हर, जनता हलाकान हो गे , ऊँकर खींचतान मा। कऊँवा, कोयली एक डार मा, बइठे गोठियावै, अब अंतर दिखथे मोला, दुनो के उड़ान मा। गाँव के निठल्ला मन अब भले मानुस हो गे, लिख दे पुस्तक जम्मो, ‘बरस’ उनकर सनमान मा। भैरा= बहरा , जिनिस=वस्तु, टुटहा =टूटा हुआ, डार= शाख , गुरुतुर…
Read Moreछत्तीसगढ़ी गज़ल
घर-आँगन मा दिया बरे, तब मतलब हे। अँधियारी के मुँहू टरे, तब मतलब हे।। मिहनत के रोटी हर होथे भाग बरोबर, जम्मो मनखे धीरज धरे, तब मतलब हे। दुनिया कहिथे ओ राजा बड़ सुग्घर हे, दुखिया मन के दुख हरे, तब मतलब हे। नेत-नियाव के बात जानबे तब तो बनही अतलंग मन के बुध जरे, तब मतलब हे। सबके मन मा हावै दुविधा ‘बरस’ सुन ले, सब के मन ले फूल झरे, तब मतलब हे। बड़=बहुत;नेत-नियाव =नीति, अतलंग=उपद्रवी, बुध=बुद्धि। बल्दाउ राम साहू [responsivevoice_button voice=”Hindi Female” buttontext=”ये रचना ला सुनव”]
Read Moreदिखय नही ओर-छोर, त का करन
दिखय नही ओर-छोर, त का करन, पिरात हे पोर-पोर त का करन। दु – दू पइसा जोड़ेन जिनगी भर, सबो ल लेगे चोर, त का कारन। सबो ल हम अपने सही जानेन, नइ लेवे कोनो सोर त का करन। नइ सुहाय अब तो सुआ- ददरिया गजब करत हे शोर त, का करन। अब बदलगे दुनिया के चाल चलन, भट गे नवा अंजोर, त का करन। जिनगी के आस बुतागे अब तो, जिनगी लागे निपोर, त का करन। बल्दाउ राम साहू त का करन= तब क्या करें, पिरात हे= पीड़ा से…
Read Moreनेता मन नफरत के बिख फइलावत हे
1 नेता मन नफरत के बिख फइलावत हे, मनखे ला मनखे संग गजब लड़ावत हे. धरम-जात के टंटा पाले, सुवारथवस, राम-रहीम के झंडा अपन उठावत हे. अँधियार ले उन्कर हावय गजब मितानी, उजियार ला कइसे वो बिजरावत हे. उच्चा-टुच्चा , अल्लू-खल्लू मनखे मन, नेता बन के इहाँ गजब इतरावत हे. चार दिन कस चंदा कस हे जिन्कर जिनगी ‘बरस’ उन्कर बर, रात अंधियारी आवत हे. 2 नेक-नियत मा खामी झन कर, जिनगी ला निलामी झन कर. अपने सुवारथ बर तैं हर, दुनिया ला बदनामी झन कर. सुभिमान के जिनगी जी…
Read Moreबीड़ी ला सिपचा ले भइया
बीड़ी ला सिपचा ले भइया, मन ला अपन मढ़ा ले भइया. एती – ओती काबर जाना, रद्दा अपन बना ले भइया. दुनिया के सब रीत गजब हे, पैती अपन जमा ले भइया. जतका लंबा चद्दर हावय, ओतका पाँव लमा ले भइया. दुनिया ले एक दिन जाना हे, कर करम,पुन कमा ले भइया. कहे कबीर जग रोनहा हे, ये जग ला हँसा ले भइया. ‘बरस’ के बुध पातर हावय, अंतस अपन जगा ले भइया, बलदाऊ राम साहू 9407650457 (सिपचा ले = जला लो, एती-ओती = इधर-उधर, पैती जमा ले = स्थिति…
Read Moreलोककथा के शिक्षक- संत गुरु घासीदास अउ उंकर उपदेस
शिक्षक कोन? ये प्रश्न करे ले उत्तर आथे कि जउन मन के मलिनता ल दूर कर के भीतरी म गियान के परकास फइलाथे अउ अंतस के भाव निरमल करथे, सत के रद्दा बताथे, उही शिक्षक आय। कबीरदासजी कहिथे- ‘गुरु कुम्हार सिस कुंभ है, गढ़-गढ़ काडे ख़ोट।’ अर्थात् जउन शिष्य के अवगुन ल कुम्हार के भांति दूर कर के ओला सत गुन ले जुक्त बना दे। सत्यम्, शिवम् अउ सुन्दरम् के भाव बोध करा दे उही सद्गुरु आय। शास्त्र पुरान म गुरु के गजब महिमा गाये गे हे। फेर उही गुरु…
Read Moreछत्तीसगढ़ी भाषा म बाल-साहित्य लेखन के संभावना अउ संदर्भ
आज जोन बाल-साहित्य लिखे जात हे ओला स्वस्थ चिंतन, रचनात्मक दृष्टिकोण अउर कल्पना के बिकास के तीन श्रेणियों म बांटे जा सकत हे। चाहे शिशु साहित्य हो, बाल साहित्य हो या किशोर साहत्य, ये तीनों म आयु के अनुसार मनोविज्ञान के होना जरूरी हे। बाल साहित्य सैध्दांतिक आधारभूमि ले हट के बाल मनोविज्ञान म आधारित हो जाए ले बच्चामन के बिकास बदलत परिवेस म सामंजस्य बइठाये म सहायक हो सकथे, जोन छत्तीसगढ़ी साहित्य अभी हमर आगू म हे ओकर लेखन-विचार प्रक्रिया म विषय वस्तु के रूप म सामाजिक विसंगति, जनचेतना,…
Read Moreभगवान मोला गरीब बना दे
भक्त ह किहिस-”गरीब होय के अड़बड़ फायदा हे, गरीबी रेखा म नाम जुड़ जाय ताहने का कहना। दू रुपया किलो म चांउर मिल जाथे। सौ दिन के मंजूरी पक्का हे। हाजरी भर दे देव। कमास या मत कमास, तोर रोजी सोला आना मिलही। काकरो ददा म ताकत नइ हे जोन तोर मंजूरी ल कम कर सके। अस्पताल म जाबे तब फोकट म इलाज होथे। अउ केस बिगड़ गे त नगद मुवाजा मिलना ही मिलना हे। कोनो गड़बड़ करत हे त थोरकिन बाहिर आगे चिल्ला दे, मँय गरीब हों मोर नाम…
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