अपनी बात साहित्य में गज़़ल का अपना एक विशिष्ट स्थान है। उर्दू साहित्य से चल कर आई यह विधा हिंदी व लोकभाषा के साहित्यकारों को भी लुभा रही है। गज़़ल केवल भाव की कलात्मक अभिव्यक्ति मात्र नहीं है, बल्कि यह जीवन के सभी पक्षों को स्पर्श करती चलती है। सामाजिक सरोकारों के अतिरिक्त युगीन चेतना […]
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छत्तीसगढ़ी गज़ल
एक बेर मदिरालय मा, आ जातेस उप्पर वाले। दरुहा मन ल बइठ के तैं समझातेस उप्पर वाले। जिनगी के बिस्वास गँवागे ऊँकर मन म लागत हे, मिल-बइठ के अंतस मा,भाव जगातेस उप्पर वाले। हरहिंसा जिनगी जीये के भाव कहाँ समझथे ओमन, सुख-दुख संग जीये के तैं आस बँधातेस उप्पर वाले। तँही हर डोंगहार अउ डोगा […]
अपन-अपन भेद कहौ, भैरा मन के कान मा
अपन-अपन भेद कहौ, भैरा मन के कान मा। जम्मो जिनिस रख देवौ, ओ टुटहा मकान मा। झूठ – लबारी के इहाँ नाता अउ रिस्ता हे, गुरुतुर-गुरुतुर गोठियावौ,अपन तुम जबान मा। थूँके-थूँक म चुरत हे, नेता मन के बरा हर, जनता हलाकान हो गे , ऊँकर खींचतान मा। कऊँवा, कोयली एक डार मा, बइठे गोठियावै, अब […]
छत्तीसगढ़ी गज़ल
घर-आँगन मा दिया बरे, तब मतलब हे। अँधियारी के मुँहू टरे, तब मतलब हे।। मिहनत के रोटी हर होथे भाग बरोबर, जम्मो मनखे धीरज धरे, तब मतलब हे। दुनिया कहिथे ओ राजा बड़ सुग्घर हे, दुखिया मन के दुख हरे, तब मतलब हे। नेत-नियाव के बात जानबे तब तो बनही अतलंग मन के बुध जरे, […]
दिखय नही ओर-छोर, त का करन
दिखय नही ओर-छोर, त का करन, पिरात हे पोर-पोर त का करन। दु – दू पइसा जोड़ेन जिनगी भर, सबो ल लेगे चोर, त का कारन। सबो ल हम अपने सही जानेन, नइ लेवे कोनो सोर त का करन। नइ सुहाय अब तो सुआ- ददरिया गजब करत हे शोर त, का करन। अब बदलगे दुनिया […]
नेता मन नफरत के बिख फइलावत हे
1 नेता मन नफरत के बिख फइलावत हे, मनखे ला मनखे संग गजब लड़ावत हे. धरम-जात के टंटा पाले, सुवारथवस, राम-रहीम के झंडा अपन उठावत हे. अँधियार ले उन्कर हावय गजब मितानी, उजियार ला कइसे वो बिजरावत हे. उच्चा-टुच्चा , अल्लू-खल्लू मनखे मन, नेता बन के इहाँ गजब इतरावत हे. चार दिन कस चंदा कस […]
बीड़ी ला सिपचा ले भइया
बीड़ी ला सिपचा ले भइया, मन ला अपन मढ़ा ले भइया. एती – ओती काबर जाना, रद्दा अपन बना ले भइया. दुनिया के सब रीत गजब हे, पैती अपन जमा ले भइया. जतका लंबा चद्दर हावय, ओतका पाँव लमा ले भइया. दुनिया ले एक दिन जाना हे, कर करम,पुन कमा ले भइया. कहे कबीर जग […]
शिक्षक कोन? ये प्रश्न करे ले उत्तर आथे कि जउन मन के मलिनता ल दूर कर के भीतरी म गियान के परकास फइलाथे अउ अंतस के भाव निरमल करथे, सत के रद्दा बताथे, उही शिक्षक आय। कबीरदासजी कहिथे- ‘गुरु कुम्हार सिस कुंभ है, गढ़-गढ़ काडे ख़ोट।’ अर्थात् जउन शिष्य के अवगुन ल कुम्हार के भांति […]
आज जोन बाल-साहित्य लिखे जात हे ओला स्वस्थ चिंतन, रचनात्मक दृष्टिकोण अउर कल्पना के बिकास के तीन श्रेणियों म बांटे जा सकत हे। चाहे शिशु साहित्य हो, बाल साहित्य हो या किशोर साहत्य, ये तीनों म आयु के अनुसार मनोविज्ञान के होना जरूरी हे। बाल साहित्य सैध्दांतिक आधारभूमि ले हट के बाल मनोविज्ञान म आधारित […]
भगवान मोला गरीब बना दे
भक्त ह किहिस-”गरीब होय के अड़बड़ फायदा हे, गरीबी रेखा म नाम जुड़ जाय ताहने का कहना। दू रुपया किलो म चांउर मिल जाथे। सौ दिन के मंजूरी पक्का हे। हाजरी भर दे देव। कमास या मत कमास, तोर रोजी सोला आना मिलही। काकरो ददा म ताकत नइ हे जोन तोर मंजूरी ल कम कर […]