छत्तीसगढ़ी गजल

दसो गाड़ा धान हा घर मा बोजाय हे जरहा बिड़ी तबले कान म खोंचाय हे. एक झन बिहाती, चुरपहिरी दूसर देवरनिन मा तभो मोहाय हे. हाड़ा हाड़ा दिखत हे गोसाइन के अपन घुस घुस ले मोटाय हे. लगजाय आगी फैसन आजकल के आघू पाछू कुछू तो नइ तोपाय हे. तिनो तिलिक दिखही मरे बेर लहू ला दूसर के जियत ले औंटाय हे. चंदैनी मन रतिहा कुन अगास जइसे खटिया म अदौरी खोंटाय हे. न खाय के सुख कभू न पहिरे के भोकला संग म गॉंठ ह जोराय हे. स्व.बसंत देशमुख…

Read More

बसंत ‘नाचीज’ के छत्तीसगढी गजल

बिना, गत बानी के  घर, नाना नानी के डोकरी, डोकरा बिन, दवई पानी के आय डोली, काकर ढेला रानी के लगत कइसन हो होरा छानी के ऊंचा है दाम काहे कानी के बतावथस अइसन देबे लानी के दिखथे करेजा कस तरबुज चानी के बके आंय बांय बेइमानी करके कर दान, पुन ऊना नि कभू दानी के मरगे खा पुड़िया देव किसानी के। बसंत ‘नाचीज’ सौगात जोन-1 सड़क-2-ए न्यू आदर्श नगर, दुर्ग

Read More