पहिचान: भूपेंद्र टिकरिहा के कविता

छत्तीसगढ़ी मा लिखन, पढ़न, गोठियान, तभे जागही छत्तिसगढ़िया सान। अपढ़, गंवार जेला कहिथन अपन भाखा मा गोठियाथें, पढ़े लिखे नोनी बाबू मन बोलब मा सरमाथें, बेरा-बेरा म बखान करे बर थोरको झन सकुचान। हिन्दी बोलन, झाड़न कस के अंगरेजी, जउन जइसे ओकर बर ओइसने जी, अपन भाखा भाखे ले मया पिरित लागथे, जस अमरित समान सबले पहिली हम हिन्दुस्थानी तेकर पाछू आनी बानी, रिंग बिग सिगबिग फूल खिले हमर देस के इही कहानी, फुलवारी के हम कइसन फुलवा बोली-भाखा दय पहिचान। भूपेंद्र टिकरिहा छत्‍तीसगढ़ी भाषा के लेखक और साहित्‍यकार Chhattisgarhi…

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