कबिता : नवा साल म

 सुकवि बुधराम यादव के रचना  “डोकरा भइन कबीर ” (डॉ अजय पाठक के मूल कृति “बूढ़े हुए कबीर” का छत्तीसगढ़ी भावानुवाद ) के एक ठन बड़ सुघर रचना- नवा साल म  सपना तुंहर पूरा होवय, नवा साल म ! देस दुवारी म सुरुज बिकास  बरसावय संझा सुख सपना के मंगल गीत सुनावय अक्षत रोली दीया अउ चंदन, लेहे थाल म! कल्प रुख म नवा पात मन सब्बर दिन उल्होवंय सकल मनोरथ फल सिरजे बर भुइंया उरबर होवय फूल फुले होवंय रुखुवा के सब डगाल म!  लइकन मन के चेहरा म मुसकान ह छावय अउ सरलगहा नवा सरग के…

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ग़ज़ल : सुकवि बुधराम यादव

सुर म तो सोरिया सुघर – सब लोग मन जुरिया जहंय तैं डगर म रेंग भर तो – लोग मन ओरिया जहंय का खड़े हस ताड़ जइसन – बर पीपर कस छितर  जा तोर छइंहा घाम घाले – बर जमो ठोरिया जहंय एक – दू मछरी करत हें – तरिया भर ल मतलहा आचरन के जाल फेंकव – तौ  कहुं फरिया जहय झन निठल्ला बइठ अइसन – माड़ी  कोहनी जोर के तोर उद्दीम के करे – बंजर घलव हरिया जहय देस अऊ का राज कइठन – जात अऊ जम्मो धरम सुमत अऊ बिसवास के बिन –…

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जिनगी के बेताल – सुकवि बुधराम यादव

“डोकरा भइन कबीर “-बुधराम यादव (डॉ अजय पाठक की कृति “बूढ़े हुए कबीर ” का छत्तीसगढ़ी भावानुवाद ) के एक बानगी जिनगी के बेताल एक सवाल के जुवाब पाके अउ फेर करय सवाल विक्रम के वो खाँध म बइठे जिनगी के बेताल !     पूछय विक्रम भला बता तो अइसन काबर होथे ? अंधवा जुग म आँखी वाला जब देखव तब रोथें   सूरुज निकलय पापी के घर दर -दर मारे फिरय पुन्न घर जाँगर टोर  नीयत वाले के काबर हाल बिहाल ?   राजा अपन राज धरम ले करंय नहीं अब…

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गाँव कहाँ सोरियावत हें (छत्तीसगढ़ी कविता संग्रह के कुछ अंश )

जुन्ना दइहनहीं म जब ले दारु भट्ठी होटल खुलगे टूरा टनका मन बहकत हें सब चाल चरित्तर ल भूलगें मुख दरवाजा म लिखाये हावय पंचयती राज जिहाँ चतवारे  खातिर चतुरा  मन नई आवत हांवय बाज उहाँ गुरतुर भाखा सपना हो गय सब काँव -काँव  नारियावत हें देखते देखत अब गाँव गियाँ सब सहर कती ओरियावत हें ! कलपत कोयली बिलपत मैना मोर गाँव कहाँ सोरियावत हें ! -बुधराम यादव 

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छत्‍तीसगढ़ी गज़ल – हमरे गाल अउ हमरे चटकन

हमरे गाल अउ हमरे चटकन बांध झन बिन गुड़ के लड़वा सिरिफ बानी म घर हजारों के उजर गय तोर सियानी म। डहर भर बारूद हे बगरे सुन्‍ना घर कुरिया जिनगी जीयत हावय जइसे काला-पानी म। जंग ह जंगल ले सरकत सहर तीर आ गय लाश के गिनती होवत हे राजधानी म। रूई जइसे बिरथा गुड़ ल का धुनत बइठे बैरह होरा भूंजे लागिन तोर छानी म। हमर किसमत बस लिखे का पसर भर चांउरदेबे कब कुछ अउ सुदामा कस मितानी म। सांप अउ छुछुवा असन गति हमर होवत हे…

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गॉंव कहॉं सोरियावत हे : चार आखर – बुधराम यादव

चार आखर सत ले बड़े धरम, परमारथ ले बड़े करम, धरती बड़े सरग अउ मनुख ले बड़े चतुरा भला कउन हे । संसारी जमो जीव मन म सुख अउ सांति के सार मरम अउ जतन ल मनखे के अलावा समंगल कउनो आने नइ जानय । तभो ले बिरथा मिरिगतिस्ना म फंसे कइयन मनखे फोकटिहा ठग-फुसारी, चारी-चुगरी, झूठ-लबारी,लोभ-लंगड़, लूटा-पुदगी, भागा-भागी,मारा-मारी के पीछू हलाकान, हाँव-हाँव अउ काँव-काँव म जिनगी ल डारे कउआत रथें । सब जानत अउ सुनत हें संतोस ले बड़े दौलत अउ कउनो नइ हे, तभे तो निरजन बीहर, डोंगरी-पहरी…

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गॉंव कहॉं सोरियाव हे : गॉंव रहे ले दुनिया रइही – डॉ. चितरंजन कर

पहली संस्करन : 2010 मूल्य : एक सौ रुपए कृति स्वामी : बुधराम यादव प्रकाशक : छत्तीसगढ़ी साहित्य समिति, जिला शाखा, बिलासपुर (छ.ग.) आखर संयोजन : योगेन्द्र कुमार यादव छापाखाना : योगी प्रिन्टर्स, डी-1, सुपरमार्केट, अग्रसेन चौक, बिलासपुर (छ.ग.) मोबाइल : 094252 22806 सम्पर्क : बुधराम यादव `मनोरथ’, एमआईजी-ए/8, चंदेला नगर रिंग रोड नं.2, बिलासपुर (छत्तीसगढ़) मोबाइल : 097551 41676 गॉंव रहे ले दुनिया रइही   माँ अउ मातृभूमि ल सरग ले घलव महान कहे गये हे । मैं ह एम मातृभाषा ल घलव जोड़िहौं, काबर के हमन जइसन अउ…

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गॉंव कहॉं सोरियावत हे : अंखमुंदा भागत हें

कहे भुलाइन कनिहा कोहनीघुठुवा मुरूवा* माड़ी !पिसनही जतवा* ढेंकी* अऊमूसर धूसर कॉंड़ी*!पर्रा* बिजना* टुकना टुकनीपैली* काठा खाँड़ी !सेर पसेरी नादी* ठेकवा*दीया चुकलिया* चाँड़ी !लीटर मीटर किलो म अबजिनिस ह जमो नपावत हे! बटलोही* बटुवा थरकुलिया*कोपरा कोपरी हंडा!किरगी-किरगा* पाला* पौली*अउ दरबा* सत खडा!बटकी मलिया* गहिरही* ओहाथी पाँव कटोरा!फूल कांस थारी म परसयजेवन बहू अंजोरा!अब फकत फाइबर चीनी के घर घर सेट सजावत हें! नींद भर रतिहा ले जागंयअउ का म बुता ओसरावंय!चटनी बासी टठिया भरबेरा ऊवत पोगरावंय*!हंसिया कुदरी धरे हाथमुंड़ म डेकची भर पानी!पाछू पाछू चलय मंडलिनआगू चलय जहानी!अब तो आठ…

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