छत्‍तीसगढ़ी गज़ल – देखतेच हौ अउ आदत बना लन

देखतेच हौ बाती तेल सिराय अमर देखतेच हौबुझागे हवय दियना हमर देखतेच हौछोड़ किसानी अफसर बनिहौं कहिके टूरा लटक गीस अधर देखतेच हौदूध गईया के मूंह लेगिस पहटिया मरिचगे बछरू दूध बर देखतेच हौचांउर दार के दाना नइहे घर मा लांघन भूख हे हमर बर देखतेच हौघर के भीतर चोर अमाय कर कहिबे सरमा ला नई खोज खबर देखतेच हौ। रामेश्‍वर शर्मारायपुर आदत बना लन हर पीरा सहे के आदत बना लन हर गोठ सुने के आदत बना लन सब संग छोड़के चल दिही एक दिन अकेल्‍ला रहे के आदत…

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फिल्मी गोठ : छत्तीसगढ़ी फिलीम म बाल कलाकार

एक-एक ईंटा, एक-एक पथरा, रेती-सीमेंट अउ बड़ अकन मकान बनाए के जीनीस ले मिस्री ह एक सुग्घर मकान, भवन, महल के निर्माण करथे। ठीक वइसने एक फिलीम के निरमान म नान-नान जीनीस अउ कई झन व्यक्ति के सहयोग ले होथे। फिलीम म बाल कलाकर मन के भूमिका ल घलो छोड़े नई जा सकय। चाहे वो फिलीम मुंबइया हो, बंगाली हो, दक्षिण भारतीय हो उड़िया हो या फेर हमर छत्तीसगढ़िया हो। छत्तीसगढ़िया फिलीम के बाल कलाकार ले मोर भेंट होईस त मोला लागिस कि छत्तीसगढिया फिलीम घलो बाल कलाकार के बिना अधूरा…

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फिल्मी गोठ: फिलमी लेखक अउ पारिश्रमिक 8 नव

छत्तीसगढ़ के फिलीम उद्योग म पटकथा अउ पटकथा लेखक मन बर उदासीनता दिखाई देथे। मानदेय के कमी या फेर फोकट म पटकथा लेना लेखक मन ल निरास कर दे हावय। बने लेखक अउ बने पटकथा के कमी के कारन इही आय। बने मानदेय के घोसना होय ले पटकथा पटा जही और छालीवुड म फिलीम के सुग्घर पंक्ति खड़ा हो जही। जब फिलीम हा परदा म दिखथे, हीरो नाचथे, हिरवइन झूमथे, खलनायक हा मार खाथे, गीत हा हिरदे म छा जाथे बाजा हा बढ़िया-बढ़िया बाजथे त सिरतोन म मजा आ जाथे।…

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फिल्मी गोठ : छत्तीसगढ़ी फिलीम म बाल कलाकार

एक-एक ईंटा, एक-एक पथरा, रेती-सीमेंट अउ बड़ अकन मकान बनाए के जीनीस ले मिस्री ह एक सुग्घर मकान, भवन, महल के निर्माण करथे। ठीक वइसने एक फिलीम के निरमान म नान-नान जीनीस अउ कई झन व्यक्ति के सहयोग ले होथे। फिलीम म बाल कलाकर मन के भूमिका ल घलो छोड़े नई जा सकय। चाहे वो फिलीम मुंबइया हो, बंगाली हो, दक्षिण भारतीय हो उड़िया हो या फेर हमर छत्तीसगढ़िया हो। छत्तीसगढ़िया फिलीम के बाल कलाकार ले मोर भेंट होईस त मोला लागिस कि छत्तीसगढिया फिलीम घलो बाल कलाकार के बिना…

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फिल्मी गोठ : फिलीम अउ साहित्य

को नों भी सुग्घर अउ महान फिलीम म या कहन कि जनप्रिय अउ मनप्रिय फिलीम म साहित्य के इसथान कहूं न कहूं जरूर रहिथे अउ कोनो फिलीम म साहित्य हे त निश्चित रूप ले वो महान कृति बन जाथे। हम बालीवुड के गोठ करन तब तो अइसन बड़ अकन फिलीम हा जुबान म आ जाथे, लेकिन जब हम छालीवुड माने छत्तीसगढ़ी फिलीम के बात ल लाथन त एक दू ठन फिलीम ला छोड़के अउ मोला फिलीम नइ दिखय जऊन म कोनो भी रूप म साहित्य के दर्शन होथे। साहित्य समाज…

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अश्लीलता के सामूहिक विरोध जरूरी हे

फिलमी गोठ आधा-आधा कपड़ा पहिरे टुरी मन के दृश्य के बहिष्कार होना चाही। अभी एखर बर कुछु नई करेन त ये मान लन कि ये बाढ़ हा हम सब ला बोहा के ले जाही। हमर मन बर बताए अउ देखाए बर कुछ नई रहहि, ऊटपटांग लिखना फिलिम के कहानी म मौलिकता के अभाव दिखना, दृस्य म अस्लीलता के प्रभाव बढ़ना ये सब छत्तीसगढ़ बर बने नोहय। हमर छत्तीसगढ़ी फिलिम उद्योग म अइसन खतरनाक-खतरनाक प्रयोगवादी मन आ गे हें कि अब तो अइसे लागत हे जइसे आम दरसक अउ खास दरसक…

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फिलिम बनाबो फिलीम बनाबो

ये फिलिम वाले मन के चरित्तर हा अब तो छत्तीसगढ़िया मन के समझ ले बाहिर हे। काबर कि जउन फिलिम उद्योग म तरी ऊपर फिलिम ह बनत हे तउन ला देखे के बाद आम दरसक माने छत्तीसगढ़िया मन ला छत्तीसगढ़ी के सुवाद हा नई मिल पवत हे। जम्मो फिलिम हा बालीवुड ला कापी ऊपर कापी करत हे। तइसे लागथे नहीं भलुक कापीच करते हावय। कथा पटकथा संवाद म नाममात्र के छत्तीसगढ़ी भासा के प्रयोग, गीत म नंगत के मार गारी के आखर, धुन अइसन कि लोकधुन हा कई कोस पाछू…

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छत्तीसगढ़ फिलिम के दर्सक ग्रामीण

छत्तीसगढ़ी फिलिम पीटावत काबर हे? ये सवाल खड़े हावय- काय निर्माता निर्देशक मन स्तर के फिलिम नई बनावत हे? हमर निर्माता निर्देशक मन बहुत बढ़िया गीत, संगीत, कथा, पटकथा, हास्य, रचनावत हे। उच्च तकनिक के उपयोग होवत हे। कोरी-कोरी कलाकार अभिनय म सर्व सम्पन्न हे। सोचे के विषय आय। छत्तीसगढ़ी भासा ल राजभासा के दरजा पाय के बाद घलो आज साहर के लोगन मन हा छत्तीसगढ़ी म नइ बोलत हे एखर कई कारण हो सकत हे जइसे ओमन ला छत्तीसगढ़ी बोले म सरम आवत होही या हो सकथे ओमन हा…

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संस्कृति के दरपन म बैर

छत्तीसगढ़ियापन आज के समय के मांग हे, दरसक के मांग ल फिलिम व्यवसाय हा नई स्वीकारही त निश्चित रूप ले फिल्म उद्योग के डूबना तय हे। प्रयोगवादी गीत दरसक के मनोरंजन बर बहुत जरूरी हे। फिलिम म हांसी-ठिठोली अउ उद्देश्य के संग-संग मया के अउ परंपरा के कथा हा घलो बहुत धूम मचाथे अउ गीत-संगीत के चटनी घलो सुहाथे। इही सबो बात ल लेके बनाइस निर्माता निर्देशक मनोज वर्मा हा ‘बैर’, ये फिलिम हा जादा नई चलिस त कम घलो नइ चलिस। माने जादा अउ कम म बरोबर के बात…

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छत्तीसगढ़ी फिलिम अउ संस्कृति

‘हमला अपन आप ला बदले के जरूरत नइए भलूक अपन आप ला चिन्हे के जरूरत हे। छत्तीसगढ़ म जउन छत्तीसगढ़िया फिलिम बनत हे ओमा धियान राखन कि कोनो भी दत्त खिसोर मन आके फिलिम बनाके हमर परम्परा के कबाड़ा झन करंय। ओला निर्माता निर्देशक अउ फिलिम के जम्मो पदवी ल लेय के अधिकार हे। फेर आम छत्तीसढिया मन ला बिगाड़े के अधिकार नई हे।’ संस्कृति परम्परा अउ वीर शहीद महान मन के पावन पबरीत माटी छत्तीसगढ़ म चापलूस, आडंबरबाज अउ अंधरा दउड़ दउड़हत बइपारी मन के सेखिया दिनोंदिन बाढ़हत जावत…

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