कबिता : हाबे संसो मोला

हाबे संसो मोला, होगे संसो मोला ये देश के। भाई-भाई भासा बर लड़थे, बिपदा गहरावथे महाकलेस के॥ मंदिर-मस्जिद के झगरा अलग, सुलगावत रहिथे आगी। मया-पिरीत ल छोंड़ भभकावत बैरी पाप के भागी। बात-बात म खून-खराबा, भाई ल भूंजत हे लेस के॥ माँहगी होगे भाजी-भांटा, तेल, सक्कर, चाउर-दार। छोटे-बड़े, मंझला झपागे, धरम-करम होगे भ्रष्टाचार। माफिया सरगना, डाकू, डॉन, उड़ावै मजा, नकली माल बेंच-बेंच के॥ जम्मो अनैतिक धंधा के होवै कारोबार। चोरी-डकैती अपहरन के, फूलत-फरत हे बजार। डॉक्टर किडनी-विडनी बेंचय, बेटी बेंचावथे, सहर, नगर भेज-भेज के॥ कोनो नक्सलवादी बनगे, कोनो अतलंगहा आतंकवादी…

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कबिता : ये देस कइसे-कइसे होवत हे

ये देस म कइसे-कइसे होवत हे।जिहां बोहावय मया-पिरीत के गंगा, लहरावय जिहां लहर-लहर तिरंगातिहां मनखे-मनखे मन के हिरदे रोवत हे॥अती होगे गोला बारूद केरोज होवत हे गोली बारी।अतलंगहा मन अलगाव वाद के बोवत हे बम के बखरी बारी।मोर हरियर बाग बगिच्चा उजरत हे, नफरत घृणा के बिजहा बोंवत हे।छत्तीसगढ़ म नक्सली मनबोकरा, भेंड़ा कस पूजत हे।बारूद लगा के, सुरंग कोड़ के मनखे-मनखे ल धूंकत हेमोर सरग सरीख भुइंया म कइसे, खूने-खून के होली होवत हे।कैंकर बस्तर रोवय बोमफार के,बिहार झारखण्ड थर्रावय।ये बइरी मन बर धुंकी नइ आवय,न मउत के थोरको…

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जनम भूमि : कहिनी

किसमत कभू धीरे-धीरे बदलथे, कभू उदुपले। ऊंकरों गांव ले लाने मोटरा म सुख के जोरन जोराय लगिस। ऊंकर गुत्तुर-गुत्तुर छत्तीसढ़िया बोली अउ मीठ-मीठ चहा-पानी म अइसन आनंद आय के एक बेर जे पी डरे ते लहुटती म चार गिराहिक अउ जोरे। जिनगी के खींचतान, पेट बर पेज-पसिया के संसो मनखे ल कहां ले कहां पटक देथे। वाह रे! सन् पैंसठ-छैंसठ के दुकाल दाना-दाना बर लुलवागे मनखे अउ चारा-पानी बर तरसगे गाय गरूवा। गांव के गांव उसलगे। का किसान, का बसुंदरा, अपन नोनी-बाबू के मुंहू म चारा डारे बर घर म…

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