डोकरी-डोकरा के एक-एक सांस नाती नतरा ल देख के भीतर बाहिर होथे। जानों मानो ऊंकर परान नाती-नतरा म अटके रहिथे।’ ‘ये दुनिया मया पिरित म बंधाय हे तभे ये जुग ह तइहा-तइहा ले चले आत हे। एक सादा सुंतरी म गूंथे रंग-बिरंग के फूल कस सरमेट्टा गुंथाय हे। मया बर जात लगे न कुजात। घर-परिवार, पारा-परोस, गांव मुहल्ला सब नत्ता-गोत्ता मानत एक दूसर के सुख-दुख म काम आवत, अपन करज निभावत, हंसी-खुसी से जियत रेहे के सिक्छा देवत रहिथे ये मया-परेम। जिंकर हिरदे म जतेक परेम हे तेला कभू आंसू…
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- Devendra Kumar Sinha