छत्तीसगढ़ महिमा

रंग ले रंग जिनगानी छत्तीसगड़ के भाए अबड़ के पानी बानी अउ कहानी रंग ले रंग जिनगानी बड़का बड़का हावय खदान किसम किसम के होथे धान तगड़ा तगड़ा हवय किसान मेहनत मया हे जिंकर मितान नोहय लबारी नइए चिनहारी भूख पियास बादर पानी गहिरी गहिरी नरवा बोहाथे उंचहा उचहा पहाड़ सोभाथे हर्रा बहेरा तन सिरजाथे नून चटनी संग बासी सुहाथे तीजा तिहारे बर बिहाव रे बाजे बाजा आनी बानी मंदिर मंदिर इतहास हवय कन कन म एकर सुवास हवय भगवान इहां बनवास सहय रिसि मुनियन के सुॅंवास हवय कतेक बखानौ…

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सरग म गदर

बिसनू लछमी के सादी के सालगिरह रहय।उन दोनो सरग म बइठे बिचार मगन रहिस हे। बिग्यान के परगति कहव के, सुस्त मस्त अउ पस्त खुपिया बिभाग के चमाचम कारसैली के कमाल कहव, के कुकुर मन संग बिस्कुट खावत खावत संगत के असर कहव चाहे तुहर मन करय ते इतफाक से कहव बिसनू लछमी के दिमाक के बात ल पिरथीवासी मन पिहिलीच ले सुंघिया डरिन। सब लोक ले एकक झिन प्रतिनिधि पहुचगे।मिरितलोक म खलक उजरगे।एक करोड़ मनखे पेल दिन बेसरम फूल धरे धरे। जेमा सब के सब भारत के राहय। भारत हॅं…

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नकाब वाले मनखे

अभीन के समे हॅ बड़ उटपटॉग किसम के समे हे। जेन मनखे ल देख तेन हॅ अपन आप ल उॅच अउ महान देखाए के चक्कर म उॅट उपर टॉग ल रखके उटपटॉग उदीम करे मा मगन हे। ंअइसन मनखे के उॅट हॅ कभू पहाड़ के नीचे आबेच नइ करय। आवस्कता अविस्कार के महतारी होथे ए कथनी ल मथानी म मथके अइसन मनखे मन लेवना निकाले बर गजब किसम किसम के उदीम करत रहिथे। मिहनत करइया मन के कभू हार नइ होवय सही बात घलो ए। इन मन हॅ आजकल अहसनेच…

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अब लाठी ठोंक

चर डारिन गोल्लर मन धान के फोंक । हकाले म नइ मानय अब लाठी ठोंक ।। जॉंगर चलय नही जुवारी कस जान । बिकास के नाम म भासन के छोंक ।। भईंस बूड़े पगुरावय अजादी के तरिया । जिंहा बिलबिलावत हे अनलेखा जोंक ।। खेत मन म लाहसे हे खेती मकान के । दलाल मन उड़वावत हे झोंक भाई झोंक ।। सोन के चिरइया ल खावन दे खीर । बॉंचे खूंचे पद ल आरकछन म झोंक ।। चिटिकन जघा नइहे धरे बर इमान के । भिथिया म कोनो मेर टॉंग…

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बिमोचन – पुरखा के चिन्हारी

श्री प्यारे लाल देशमुख जी के तीसरइया काव्य कृति हरे पुरखा के चिन्हारी। जेमा कुल जमा डेढ़ कोरी रचना समोय गे हे। किताब के भूमका डॉ. विनय कुमार पाठक जी कम फेर बम सब्द के कड़क नोई म बांधे छांदे हे। जेन कबिता ल किताब के पागा बनाए गे हे वो हॅ आखरी-आखरी म हे। शीर्षक कहूं ले लेवय फेर शीर्षक के सार्थकता हॅ रचना अउ रचनाकार के सार्थकता ल सिध करथे। आखरी म होके के घला पुरखा के चिन्हारी हॅ सहींच में कवि अउ ओकर कृत्तित्व के सार्थतकता ल…

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सरद्धा

बिहिनिया -बिहिनिया जुन्ना पेपर ला लहुटा – पहटा के चांटत – बांचत बिसाल खुरसी म बइठे हे। आजे काल साहर ले आहे गांव म। ज्यादा खेती खार तो नइहे फेर अतेक मरहा तको नइहे। ददा साहर में नौकरी करत रहिस हे। अपनो ह पढ़ई करत -करत इस्कूल म साहेब होगे हे। आना जाना लगे रहीथे। “जय शंकर भोले।” बिसाल दुवारी कोती ला मुड़ के देखथे। चुकचुक ले गोरिया, उंचपुर, छरहरा बदन के मनखे दुवारी म ठाढ़े हे। चक्क सुफेद धोती झकझक ले झोलझोलहा कुरता, देखे म मलमल अस कोवंर। टोटा…

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का आदमी अस

अपन भासा के बोल न जाने, अपन भासा के मोल न जाने। जनम देवईया जग के पहिली, मॉ सबद के तोल न जाने।। पर भासा ल हितु मानथस।। झुंड म चले जिनावर हिरना, कीट पतंगा पंछी परेवना। संग भाई के चले न दु दिन, भूले, न पूछे पियारी बहना।। दाई ददा ल दुर भगाथस।। धरम करले धाम बनाले सत करम कर काम बनाले। धन दौलत कुछु साथ न जावे जिनगी म कुछु नाम कमा ले।। मानुस कस जी मानुस अस।। अपन हक छीने बर जान हितुवा अउ बइरी पहिचान। खाले…

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बाढ़ ले आये बढ़वार

असाड़ बुलक गे सावनों निकलइया हे लपरहा बादर हा घुम घुम के भासन दे दे के रहि गे। बिजली घलो दू चार घॅव मटमटाइस । किसान मुहू फारे उप्पर डाहर ल देखत बोमियावत हे – गिर भगवान गिर। उप्पर वाले भगवान ह भुइया के भगवान ल फेर एक घव बेकुफ बना दिस। बेकुफ का बनाए बर लगही किसाने खुद बेकुफ हे। सरकार ह बोर कोड़वाय के मसीन निकाल देहे। मरहा खुरहा किसान के नान मुन डोली डांगर खेत खार ल खनके नाहर बना दे हे त तुम उप्पर वाले ल…

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गुरू अउ सिस्य के संबंध

गुरू ह मुक्ति के दुवार होथे त सिस्य ह मुक्ति दुवार के तोरन – धजा, बंदनवार होथे। मुक्ति के दुवार ए सेती काबर के दुनिया के छल परपंच दुख संताप के बोहावत बैतरनी नदिया ल पार कराथे गुरू हॅं। गुरूच ह अग्यान के घपटे अंधियारी म जोगनी कस जुगुर – जागर सही फेर रस्ता देखावत गियान के जगमग- चकमक अंजोर तक ले जाथे। अतके भर नही गुरूच हॅं सिस्य ल वो परम आतमा के घलो बोध कराथे , जेन ए जगत बिधाता ए। एकरे सेती तो कहे गे हवय के…

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बरखा गीद

बेलबेलहीन बिजली चमकै बादर बजावै मॉंदर घूमके नाचौ रे झूम झूमके मात गे असढ़िया हॅ, डोले लागिस रूख राई भूंइया के सोंध खातिर, दउड़े लागिस पुरवाई बन म मॅजूर नाचे बत्तर बराती कस झूम के सिगबिग रउतीन कीरा, हीरू बिछू पीटपीटी झॉंउ माउ खेलत हे, कोरे कोर कॉंद दूबी बरखा मारे पिचका भिंदोल के फाग सुन सुनके खप गे तपैया सुरूज, खेत खार हरिया गे रेटही डोकरी झोरी ल देख , जवानी छागे जोगनी झॅकावै दीया भिंगुर सुर धरै ऑंखी मूंदके भूंइया के कोरे ल मुड़ी, नांगर बइला धर किसान…

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