कहॉं जाबो साहर

कहॉं जाबो साहर काबर जाबो साहर मिहनत पूजा गॉंव इस्सर भूईया सरग हमर पेरके जॉंगर पीबोन पसिया करम के डारा झर्राबो जाही कहॉं रे मोती बरोबर बोहत पसीना पझर चंदा सुरूज कस जग म ऑंखी दाई ददा के लाठी अन सेवा बजावत कोरा म रहिबो जाही पहा रे उमर धान कटोरा छत्तिसगढ़ म नइहे कुछू के खानी सोन चिरैया फुदगत चरथे दाना जम्मो डहर धरके असीस दाई ददा के भूईया के कोरा म उतरबो सरग खजाना इंहे भरे हे चल नॉंगर धर धमेन्द्र निर्मल

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बड़े दाई

होवत बिहनिया गांव सन्न होगे, बड़े दाई नई रहीस सुनके मोर माथा सुखागे। बड़े दाई के सांवर चेहरा, लटी बंधाये पोनी कस फक्क सफेद बाल, अइसे लागय जइसे पटवा के रेसा के गट्ठा ल बड़े दाई ह अपन मुंड़ म खपल लेहे। ओकर बड़े – बड़े गोटारन कस आंखी मोर आंखी म झलकगे। भरे तरिया के पानी कस लहरा मारत बड़े दाई मोर आंखी म घेरी – भेरी झूले लागिस। मोर कान ल भरमा भूत धर लिस – बड़े दाई मोर नांव ल लेके बलावत हे का ? गजब दिन बाद…

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बियंग : रचना आमंतरित हे

ए खभर ल सुनके कतको अनदेखना इरखाहा मन के छाती फटइया हे। हमन बड़ गरब गुमान से सूचित करत हावन के साहित जगत म जबरन थोपे-थापे, लदाए-चढ़े साहितिक संसथा ‘धरती के बोझ’ हॅं अपन नवा किताब ‘‘बेसरम के फूल’’ के परकासन करके अतिसीघरा साहित जगत म अति करइया हे। जेन हॅं तुहर घुनावत टेबुल म दिंयार चरत माढ़े फोकट फालतू किताब मन संग धुरियावत दांत निपोरत साहित के नाक ल काटे म कोनो किसिम ले कसर नइ छोड़य। पढ़इया के मन म घलो फुसका असर नइ छोड़य। जानबा रहय के…

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