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कविता

कहॉं जाबो साहर

कहॉं जाबो साहर काबर जाबो साहर मिहनत पूजा गॉंव इस्सर भूईया सरग हमर पेरके जॉंगर पीबोन पसिया करम के डारा झर्राबो जाही कहॉं रे मोती बरोबर बोहत पसीना पझर चंदा सुरूज कस जग म ऑंखी दाई ददा के लाठी अन सेवा बजावत कोरा म रहिबो जाही पहा रे उमर धान कटोरा छत्तिसगढ़ म नइहे कुछू के […]

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व्यंग्य

बड़े दाई

होवत बिहनिया गांव सन्न होगे, बड़े दाई नई रहीस सुनके मोर माथा सुखागे। बड़े दाई के सांवर चेहरा, लटी बंधाये पोनी कस फक्क सफेद बाल, अइसे लागय जइसे पटवा के रेसा के गट्ठा ल बड़े दाई ह अपन मुंड़ म खपल लेहे। ओकर बड़े – बड़े गोटारन कस आंखी मोर आंखी म झलकगे। भरे तरिया के […]

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व्यंग्य

बियंग : रचना आमंतरित हे

ए खभर ल सुनके कतको अनदेखना इरखाहा मन के छाती फटइया हे। हमन बड़ गरब गुमान से सूचित करत हावन के साहित जगत म जबरन थोपे-थापे, लदाए-चढ़े साहितिक संसथा ‘धरती के बोझ’ हॅं अपन नवा किताब ‘‘बेसरम के फूल’’ के परकासन करके अतिसीघरा साहित जगत म अति करइया हे। जेन हॅं तुहर घुनावत टेबुल म […]