घूमें फिरे के सऊख कोन ल नी राहय? फेर मोर सऊख ल झन पूछ। फटफटी, मोटर, कार, रेलगाड़ी मोटरबोट पानी जिहाज, सब म कई पईत घूम डरे हौं। बस हवाई जिहाज भर बांचे रिहिस। दसों साल ने योजना बनावंव फेर समजोगे नइ बइठय। केहे गे हे न बिन समजोग के कांही कारज सिध्द नइ होय अउ ओखर उप्पर वाला के मरजी बिगन एक ठी पत्ता नइ डोलय। हर बखत हवाई यात्रा के योजना फैल खा जाय। सबले बड़े अड़ंगा तो माहंगी टिकस के आय। दूसर अड़ंगा राहय जानकारी के कमी।…
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छत्तीसगढ़ भासा के असली सवाल सोझ-सोझ बात
छत्तीसगढ़ म रा.ब.क्ष.ण. के उच्चारन नई होय। अउ उच्चारन नई होय तिही पाय के जुन्ना विद्वान मन ये वर्न मन ल वर्नमाला म सामिल नइ करिन अउ छत्तीसगढ़ी वर्नमाला म ये वर्न मन गैरहाजिर हे। तौ ये वर्न मन ल जब मन लगिस सामिल कर लौ अउ जब मन लगिस छटिया दौ, ये नीति ल ठीक नइ केहे जा सकय। हां, यदि सब विद्वान मन हिंदी के वर्नमाला बर बिना बदलाव के एकमत हो जाय तब बात दूसर रइही। तब अइसन म सब्द मन के दोहरा परयोग ले बांचे ल…
Read Moreकहिनी : ईरखा अउ घंमड के फल
– भगवान कृष्ण मंझनिया के आराम करत राहय। घमण्ड से चूर दुरयोधन भगवान के मुड़सरिया कोती बइठ के कृष्ण के नींद खुले के इंतजार करे लगथे। ओतके बेर अर्जुन घलो मदद के नाम से पहुंचथे। ओला देख के दुरयोधन के मन में भय समा जाथे के अर्जुन तो कृष्ण के फुफेरा भाई ए अउ ओखर झुकाव घलो पाण्डव कोती हे। दुरयोधन के जनम-जनम के सकलाय इरखा उबले लगथे।– अइसे कोन भारतवासी हो ही जेला रामायन अउ महाभारत के किस्सा बने नई लगत हो ही। ये दूनों ग्रंथ हरेक भारतवासी के…
Read Moreछत्तीसगढ़ी में मुहावरा के परयोग
लोक जीवन में बोलचाल में मुहावरा के बड़ महत्व हे। ये भाखा अउ बोली के सिंगार होथे। ये ह गोठ बात के बेरा म ओला परभावशाली अउ वजनदार बनाथे। ये गोठ बात ल पूरा करे के साथे -साथ सही समे अउ इस्थान में परयोग करे ले बोलइया-लिखइया के भाखा में परगट करथे। हमर छत्तीसगढ़ी घलो ह एक बड़हर भाखा आय। मय अपन बीच उठया-बैठइया साहित्यकार संगवारी मन ल पूछेंव कि मुहावरा ल छत्तीसगढ़ी म का कहिथे, तो कोनो सुलिनहा जवाब नइ दिन। कोनो ‘हाना’ बताइन तो कोनो ‘पटन्तर’ कहिन। जबके…
Read Moreचिल्हर के रोना
आज के समे अइसन उपाय तो चिल्हर के रोना बर करे नी जा सकय। काबर के चिल्हर के रोना एक, दू अउ पांच रुपिया के जादा रथे अउ एकर नोट छपना बंद हो गे हे। अरे बंद नी होय होही ते कमती जरूर हो गेहे। तेखरे सेती अब चिल्हर के रोना ल खतम नी करे जा सके। ये सबर दिन के रोना बन गे हे, अम्मर हो गे हे। सरकार चुमड़ी-चुमड़ी सिक्का बांटथे फेर कोजनी चारेच दिन म कहां उछिन हो जथे। चिल्हर के रोना फेर जस के तस। कतको…
Read Moreछत्तीसगढ़ के कर्जादार
आज छत्तीसगढ़ी ह राजभाषा बनगे हावय। राजधानी ले अतेक अकन अखबार निकलथे के अंगरी म गिनना मुसकिल हे। फेर एक ठन छत्तीसगढ़ी अखबार आज ले नई निकल पाइस। ये निमगा छत्तीसगढ़ अखबार निकाले म घाटा दिखथे। एक कालम तो होना चाही। दूसर राज्य म ऊंखर राजभासा के अखबार अउ पत्रिका दिखथे। छत्तीसगढ़ी ल राजभासा बनाय के घोसना होय दू बछर बीत गे। फेर कोनो डाहर ले नी जनाय के छत्तीसगढ़ी ह राजभासा बन गे हे। राजधानी ले अतेक अकन अखबार निकलथे के अंगरी म गिनना मुसकिल हे। फेर एक ठन…
Read Moreकबिता : बेटी मन अगुवागे
जमाना बदलगे झन करौ संगीबेटा-बेटी म भेद,बेटी मन अगुवागे चारों खुंटबेटा के रद्दा ल छेंक। पढ़ई-लिखई म अव्वल आथे,बेटा- मस्ती म समै बिताथेबेटी घरो के काम बुता म,सुग्घर दाई के हाथ बंटाथे। तभो ले तुंहर आंखी नइ उघरिस,बेटा के हावेच टेक। बेटी मन…॥बेटा के आस मा जे परवार बढ़ाहीमहंगाई वोला रोजे रोवाही,बहू के आए ले का हे गारंटी,बेटा तोला नइ ठेंगवा देखाही। आफिस, कछेरी अउ फौज पुलिस माकहूं डाहर तैं देख।बेटी मन अगुवा गे चारों खुंटबेटा के रद्दा ल छेंक॥ दिनेश चौहान शीतलापारानवापारा राजिम
Read Moreछत्तीसगढ़ ‘वर्णमाला अउ नांव’ एक बहस
‘ये पाती कई झन साहित्यकार करा पहुंचे हावय। दिनेश चौहान ह एक विचार सब ला सोचे बर देय हावय। स्वर, व्यंजन के सही उपयोग करना हे, पहिली वर्णमाला तय करव ओखर बाद अक्छर के उपयोग करे जाय। अक्छर अइसना होवय जेन ह आज ले सौ साल पहिली ले उपयोग म आवत हावय। ये पाती के उत्तर तो मिलबे करही, सब सोचही अउ एक सही रूप झटकुन आ जही।’ अभी तक नांव लिखे म हिन्दी के प्रभाव चलत हे। काबर के पढ़े-लिखे के भासा अभी तक हिन्दीच बने हवे। हमला पता…
Read Moreकहिनी : पिड़हा
न वा जमाना आय के बाद जुन्ना कतको चीज नंदावत जात हे। एमा सिल लोड़िहा, पिड़हा, जांता, झउंहा अउ कतको जिनिस सामिल हवय। जांता तो आज कल बिलकुले नंदा गे हे। गांव में घलो खोजबे तो मिलना मुसकिल हे। वइसने मिक्सी के आय ले पढ़े-लिखे माइ लोगन मन सिल लोड़िहा ल हिरक के नइ निहारय। पिलास्टिक के धमेला आय ले झउंहा नंदा गे अउ डाइनिंग टेबल अउ कुरसी आय के बाद पिड़हा घलो नंदाना सुरू हो गे हे। कभू सगा सोदर आय तो ऊंच आसन बर पिड़हा देना मुहावरा रिहिस।…
Read Moreजब पवन दीवान दऊड़ म अव्वल अइस
सुरता राजिम तीर के कोमा गांव म साहित्य म रुचि रखइया के कमी नइ हे। इही गांव काबर आसपास के बहुत अकन गांव म घलो साहित्यकार अउ कवि मन के अइसे छाप पड़े हे के लोगन अपन लइका के नाव घलो कवि मन के नाव जइसे धराय-धराय हवे। वइसे तो राजिम क्षेत्र के जम्मो भुंइया साहित्यकार मन बर बड़ उर्वर हे। राजिम जिहां पवन दीवान, पुरुषोत्तम अनासक्त, कृष्ण रंजन, छबिलाल अशांत, विशाल राही जइसे साहित्यिक सपूत मन जनम लिस। वइसने मगरलोड, किरवई अउ कोमा में घलो बड़े-बड़े साहित्यकार मन पैदा…
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