जयलाल कका के नाच

जयलाल कका ह फुलझर गॉव म रहिथे। वोहा नाचा के नाम्हीं कलाकार आय। पहिली मंदराजी दाउ के साज म नाचत रिहिस। अब नई नाचे । उमर ह जादा होगे हे। बुढ़ुवा होगे हे त ताकत अब कहां पुरही । संगी साथी मन घलो छूट गे हे। कतको संगवारी मन सरग चल दिन। एक्का दुक्का बांचे हे, तउनो मन निच्चट खखड़ गेहें। गॉव के जम्मों लोगन वोला कका कहिथें। सब छोटका बड़का वोला गजब मान देथें। कतरों झन रोजाना वोकर तीर म संकलाथें अउ वोकर गोठ बात ल सुनथें। तईहा जमाना…

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छत्‍तीसगढ़ी कथा कंथली : ईर, बीर, दाउ अउ मैं

– डॉ. दादूलाल जोशी ‘फरहद’ लोक कथाओं के लिए छत्तीसगढ़ी में कथा कंथली शब्द का प्रयोग किया जाता है। यह वाचिक परम्परा की प्रमुख प्रवृत्ति है। कथा कंथली दो शब्दों का युग्म है। सामान्य तौर पर इसका अर्थ कहानी या कहिनी से लिया जाता है किन्तु वास्तव में इसके दो भिन्न भिन्न अर्थ सामने आते हैं। इसका ज्ञान तब होता है, जब कथा वाचक लोक कथा कहना शुरू करता है। छत्तीसगढ़ में प्रायः लोक कथाकार बतौर भूमिका निम्नांकित पक्तियों को दीर्घ कथा प्रस्तुत करने के पूर्व बोलता हैः- कथा आय…

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छत्तीसगढ़ी गज़ल के कुशल शिल्पी: मुकुन्द कौशल

डॉ. . दादूलाल जोशी ‘फरहद’ जब भी गज़ल विधा पर चर्चा होती है , तब कतिपय समीक्षकों का यह मत सामने आता है कि गज़लें तो केवल अरबी , फारसी या उर्दू में ही कही जा सकती है। अन्य भाषा ओं में रचित गज़लें अधिक प्रभावी नहीं हो सकती । शायद इसीलिए अन्य भाषा ओं और खासकर हिन्दी में कही गई गज़लें सहजता से स्वीकार नहीं की गई। चाहे वह दुश्यन्त कुमार हो या कुँवर बेचैन , रामदरश मिश्र या फिर चन्र्ससेन विराट , सभी को सहमति – असहमति के…

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तीन छत्तीसगढ़ी गज़ल

दादूलाल जोशी ‘फरहद’ (1) सच के बोलइया ला ,जुरमिल के सब लतिया दीन जी । लबरा बोलिस खांटी झूठ , त तुरते सब पतिया लीन जी ।। हमू ल बलाये रिहीन बइठका मा , फेर मिलिस नहीं मौका , कोन्दा लेड़गा मान के मोला , अपनेच्च मन गोठिया लीन जी ।। न कुछु करनी हे ,न कुब्बत हे , आंखी मा बंधाये हे पट्टी , पर निन्दा करइया पापी मन हिरदे ल अपन करिया लीन जी ।। मेहनत करइया भूखे रहिगे , भर के लबालब कोठी , उंकर थारी के…

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दादूलाल जोशी ‘फरहद’ के छै ठन कविता

दू डांड़ के बोली ठोली 1. हिरदे म घात मया , आंखी म रीस हे । फागुन के महिना म, जस फूले सीरिस है।। 2. सुघ्घर – सुघ्घर दिखथे , जस मंजूर के पांखी । कपाट के ओधा ले , झांकत हे दू ठन आंखी ।। 3. अंइठे हावस मुंह ल , करके टेंड़गा गला । करंग गेहे अंगरा, भीतर म पलपला ।। 4. बाहिर ले बइरी असन , अन्तस म मितान । अइसन म डर लागथे , कइसे के गोठियान ।। सुम्मत के गोठ सुम्मत के तुम गोठ करौ…

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जानबा : दादूलाल जोशी ‘फरहद’

नाव – दादूलाल जोशी ‘फरहद’ ददा – स्व.खेदूराम जोशी दाई – स्व.पवनबाई जन्मन – 04/01/1952 पढ़ईलिखई – एम.ए.हिन्दी पीएच.डी. जनम जगा-गाँव फरहद पो0 सोमनी, तह. जिला-राजनांदगाँव (छ.ग.) हुनर – कविता कहानी निबन्ध लिखना। हिन्दी छत्तीसगढ़ी दूनों म। सम्पादन, अभिनय, उद्घोषक। किताब – ‘अब न चुभन देते हैं कांटे बबूल के‘ कविता संघरा ‘आनी बानी’ भारतदेश के चउदा राजभाषा म लिखे कविता मन के छत्तीसगढ़ी अनुवाद। सम्पादन – सत्यध्वज, अपन चिन्हारी, आरम्भ, पतरिका अउ किताब के। करतब – छत्तीसगढ़ी लोक कलामंच ‘‘भुईंया के सिंगार’’ दल्लीराजहरा म बारा बछर ले उद्घोशक अउ…

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छत्तीसगढ़ी कविता मा लोक जागरन के सुर

छत्तीसगढ़ राजभाषा आयोग के महाधिवेशन दिनाँक 23/24 फरवरी 2013 म पढ़े गए आलेख डॉ.दादूलाल जोशी ‘फरहद’ साहित्त के बिसय मा जुन्ना गियानी लेखक मन हा अघात काम करें हें । साहित्त के कतना किसिम के अंग होथे ,उंकर सरूप अउ बनावट कइसे रहिथे ? उनला रचे -बनाये के का नियम होथे ? ये सब्बो के बारे मा फरिहा-फरिहा के गोठ-बात लिखे गे हे। साहित्त के लिखे -पढ़े के का फायदा हे , तउनो ला गियानी मन बताये हें। उंकर बिचार मा साहित्त के लिखे -पढ़े के खासगी नफा , आनन्द…

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चना के दार राजा, चना के दार रानी

छत्तीसगढ़ी व्यंग्य चना के दार राजा, चना के दार रानी, चना के दार गोंदली कड़कत हे। टुरा हे परबुधिया, होटल म भजिया झड़कत हे। शेख हुसैन के गाये गीत जउन बखत रेडियों म बाजिस त जम्मों छत्तीसगढिया मन के हिरदे म गुदगुदी होय लागिस। गाना ल सुनके सब झन गुनगुनावंय अउ झूमरे लागंय। सन् साठ अउ सत्तर के दसक म ये गाना ह रेडियो म अब्बड़ चलिस। वो जमाना म टी. वी. चैनल के अता-पता नइ रिहिस हे। अब रेडियो नंदाती आ गे। मोबाइल, टी. वी. चैनल अउ सी. डी.…

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